इंदौर। विजयदशमी पर देशभर में भले ही रावण दहन की परंपरा हो, लेकिन इंदौर में कुछ भक्त ऐसे भी हैं जो रावण दहन की परंपरा का सालों से विरोध कर रहे हैं. यही वजह है कि इंदौर जिला न्यायालय में रावण के पक्ष में बाकायदा एक केस चल रहा है. जिसमें रावण दहन को गलत मानते हुए कोर्ट में दलीलें पेश की जा रही हैं. मामले में हाल ही में सुनवाई भी हुई थी.
रावण दहन का विरोध
देशभर में रामायण के अलग-अलग कथानकों में राम के साथ रावण के चरित्र को भी बखूबी दर्शाया गया है. उड़ीसा, तमिलनाडु समेत अन्य राज्यों की रामायण की कृतियों में कई स्थानों पर रावण को श्रेष्ठ बताया गया है. रावण चौकी प्रकांड विद्वान पंडित थे. कोर्ट में दलील दी गई है कि दुनियाभर में 24 प्रकार की अलग-अलग भाषाओं में रामायण की रचना हुई है. सभी ग्रंथों ने दशानन को महात्मा बताया है. नतीजतन देशभर में रावण को मारने वाला एक तबका दशहरे पर रावण दहन के खिलाफ है. यही वजह है कि बीते कुछ सालों में देश में विभिन्न स्थानों पर भगवान श्रीराम के अलावा अब रावण के मंदिर भी आकार ले रहे हैं. रामायण भक्तों का भी एक बड़ा समूह दशहरे पर रावण की पूजा अर्चना करने के साथ ही रावण दहन का पुरजोर तरीके से विरोध कर रहा है.
इंदौर जिला कोर्ट में दी गई ये दलीलें
इंदौर जिला न्यायालय में रावण दहन के खिलाफ बाकायदा एक जनहित याचिका प्रस्तुत की गई है. जिस पर कोर्ट में हाल ही में सुनवाई हुई है. यह याचिका इंदौर के रावण भक्त मंडल की ओर से प्रस्तुत की गई थी. जिसमें दलील दी गई थी कि रावण प्रकांड पंडित थे, और उनके कथानक को रामायण में गलत तरीके से दर्शाया गया है. इसके अलावा याचिका में यह दलील भी दी गई कि रावण दहन के कारण देशभर में हर साल दशहरे पर प्रदूषण का स्तर दोगुना हो जाता है. लिहाजा इसपर रोक लगाई जाए.
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रावण दहन को लेकर कोर्ट में सुनवाई जारी
जिला कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई शुरू कर दी है. जिसमें रावण के पक्ष में तरह-तरह के विद्वानों के मत एवं प्राचीन इतिहास और दस्तावेज प्रस्तुत किए जा रहे हैं. बीते शनिवार को कोर्ट ने इस मामले में फिर पैरवी की. जिसमें दोनों पक्षों की बहस के बाद पूरे मामले में फैसला सुरक्षित रखा है. हालांकि इस मामले में अगली सुनवाई कोर्ट में ही 23 अक्टूबर को होगी.
परदेसीपुरा में रावण का भव्य मंदिर
इंदौर के परदेसी पुरा में 2010 में लंकेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना की गई थी. यहां रावण की प्रतिदिन पूजा होती है. इसके अलावा मंदिर की देखभाल करने वाले महेश गोहर द्वारा यहां रावण भक्त मंडल की स्थापना की गई है. जहां प्रतिवर्ष दशहरे के अवसर पर रावण की हवन-पूजन और आरती होती है. वही कन्याओं के पदों कर पूजन के बाद प्रसाद का वितरण भी होता है. इसके अलावा यहां रावण की लगातार उपासना की जाती है. मान्यता है कि ऐसा करने से सुख-समृद्धि के साथ ज्ञान की प्राप्ति होती है.
मध्य प्रदेश में रावण से जुड़ा समृद्ध इतिहास
मंदसौर के राजा की सुपुत्री मंदोदरी से रावण का विवाह हुआ था. उसके बाद ही 'दशपुर' का नाम मंदसौर हुआ. जिले के खानपुरा में आज भी रावण को पूजा जाता है. यहां करीब 800 साल पुरानी मूर्ति भी मौजूद है. इसके अलावा विदिशा में रावण ग्राम में भी करीब 600 साल पुराने काले पत्थर की रावण प्रतिमा मौजूद है. यहां पूरा गांव रावण की पूजा करता है.
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उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में भी यही परंपरा है, यहां लोग अपने बच्चों का मुंडन-संस्कार रावण की छाया में करते हैं. माना जाता है कि रावण की छाया में मुंडन संस्कार कराने से बच्चे भी रावण की तरह बुद्धिमान और विद्वान होते हैं. एक इतिहासकार ने उत्तर प्रदेश के गौतम बुध नगर के विशरखा ग्राम को रावण का जन्म स्थान बताया है. यहां भी लोग रावण को जलता हुआ देखना पसंद नहीं करते हैं.
इसके अलावा बैतूल जिले के सारणी और पात्र खेड़ा में भी आदिवासी युवा संगठन द्वारा रावण का विरोध शुरू किया गया है. उज्जैन के ग्राम पिपलोदा में भी रावण का मंदिर है. यहां भी प्रतिदिन रावण की पूजा होती है. छिंदवाड़ा जिले के अमरवाड़ा ग्राम में भी रावण का मंदिर बनवाया गया है. इसके अलावा जबलपुर के पाटन में भी रावण का मंदिर तैयार कराया गया है.