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स्वच्छता को आदत बनाने से शुद्ध हुई इंदौर की हवा, प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के आंकड़े आए सामने

इंदौर ने पिछले तीन साल से लगातार स्वच्छता में हैट्रिक लगाई है. सफाई के कारण स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले धूल के कणों में भी कमी देखी गई है.

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Published : Mar 18, 2019, 8:21 PM IST

प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के आंकड़े आए सामने

इंदौर। स्वच्छता अभियान में तीसरी बार नंबर वन आने के बाद शहरवासियों का भी सफाई के प्रति नजरिआ बदलाने लगा है. आर्थिक राजधानी अब प्रदेश की सबसे स्वस्थ राजधानी बनती जा रही हैं. ये बात प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के आंकड़ें बया कर रहे हैं.

इंदौर ने पिछले तीन साल से लगातार स्वच्छता में हैट्रिक लगाई है. सफाई के कारण स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले धूल के कणों में भी कमी देखी गई है. साल पहले शहर में धूल के कणों का सालाना औसत 120 से 130 माइक्रोग्राम के आसपास रहता था. उसमें धीरे-धीरे कमी आई है. इस साल का औसत देखें तो PM (पर्टिकुलर मैटर) 2.5 में 20% कमी दर्ज की गई है. तेज गति से शहर में वाहन बढ़ रहे हैं, उसकी तुलना में यह बहुत ही सकारात्मक बदलाव हुआ है.

प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के आंकड़े आए सामने

प्रदूषण वैज्ञानिक के मुताबिक महानगरों में ऐसे धूल के कण अत्यधिक होते हैं. ये इंसान को सबसे ज्यादा हानि पहुंचाते हैं. इंदौर में भी एक समय ऐसा था जब हवा में धूल के कण मानक से 3 गुना ज्यादा थे. स्वच्छता अभियान की शुरुआत के बाद से ही आंकड़ों में लगातार कमी आई है. इसका सबसे ज्यादा फायदा PM (पर्टिकुलर मैटर) 2.5 धूल कणों में हुआ है. ये कण स्वास्थ्य के लिए सबसे ज्यादा हानिकारक होते हैं जो सीधे ब्लड में जाकर मिलते हैं और खतरनाक बीमारियों को जन्म देते हैं.

पिछले तीन साल के मुकाबले में डेंगू, मलेरिया, टाइफाइड जैसी बीमारियों की संख्या और मौतों के आंकड़ों में कमी देखने को मिली हैं. यदि इंदौर में स्वच्छता को लेकर जागरूकता बनी रही तो इंदौर देश के उन शहरों में भी शामिल हो जाएगा, जिनकी हवा में प्रदूषण की मात्रा बहुत कम है.

इंदौर। स्वच्छता अभियान में तीसरी बार नंबर वन आने के बाद शहरवासियों का भी सफाई के प्रति नजरिआ बदलाने लगा है. आर्थिक राजधानी अब प्रदेश की सबसे स्वस्थ राजधानी बनती जा रही हैं. ये बात प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के आंकड़ें बया कर रहे हैं.

इंदौर ने पिछले तीन साल से लगातार स्वच्छता में हैट्रिक लगाई है. सफाई के कारण स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले धूल के कणों में भी कमी देखी गई है. साल पहले शहर में धूल के कणों का सालाना औसत 120 से 130 माइक्रोग्राम के आसपास रहता था. उसमें धीरे-धीरे कमी आई है. इस साल का औसत देखें तो PM (पर्टिकुलर मैटर) 2.5 में 20% कमी दर्ज की गई है. तेज गति से शहर में वाहन बढ़ रहे हैं, उसकी तुलना में यह बहुत ही सकारात्मक बदलाव हुआ है.

प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के आंकड़े आए सामने

प्रदूषण वैज्ञानिक के मुताबिक महानगरों में ऐसे धूल के कण अत्यधिक होते हैं. ये इंसान को सबसे ज्यादा हानि पहुंचाते हैं. इंदौर में भी एक समय ऐसा था जब हवा में धूल के कण मानक से 3 गुना ज्यादा थे. स्वच्छता अभियान की शुरुआत के बाद से ही आंकड़ों में लगातार कमी आई है. इसका सबसे ज्यादा फायदा PM (पर्टिकुलर मैटर) 2.5 धूल कणों में हुआ है. ये कण स्वास्थ्य के लिए सबसे ज्यादा हानिकारक होते हैं जो सीधे ब्लड में जाकर मिलते हैं और खतरनाक बीमारियों को जन्म देते हैं.

पिछले तीन साल के मुकाबले में डेंगू, मलेरिया, टाइफाइड जैसी बीमारियों की संख्या और मौतों के आंकड़ों में कमी देखने को मिली हैं. यदि इंदौर में स्वच्छता को लेकर जागरूकता बनी रही तो इंदौर देश के उन शहरों में भी शामिल हो जाएगा, जिनकी हवा में प्रदूषण की मात्रा बहुत कम है.

Intro: इंदौर शहर स्वच्छता में तीसरी बार नंबर वन रहा क्योंकि शहर में सफाई के प्रति अपने नजरिए में बदलाव लाया गया शहर के लोगों की बदली आदत काला लोगों को ही मिला है शहर आर्थिक रूप से समृद्धि ही नहीं हुआ बल्कि लोगों की सेहत में भी सुधार देखा गया है यह बात पिछले 3 साल के प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से निकाले गए आंकड़े कह रहे हैं


Body:इंदौर ने पिछले 3 साल से लगातार स्वच्छता अभियान में हैट्रिक लगाई है साथ ही सफाई ने कई क्षेत्रों में भी शहर को अग्रणी शेरी में रखा है सफाई के कारण स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले धूल के कणों में भी इंदौर शहर में कमी देखी गई है 4 साल पहले शहर में धूल के कणों का सालाना औसत जहाँ 120 से 130 माइक्रोग्राम के आसपास रहता था उसमें धीरे-धीरे कमी आई है खास बात यह रही है कि स्वच्छता में नंबर वन बने शहर में इस साल का औसत देखें तो pm10 और पीएम 2.5 में गिरावट आई है यह गिरावट 20% कम रही है लेकिन जिस गति से शहर में वाहन बढ़ रहे हैं उसकी तुलना में यह बहुत ही सकारात्मक बदलाव है पीएम 2.5 तो वर्ष 2018 में घटकर उसके मानक से भी नीचे आ गया है जबकि इन कणों का आकार मानव के फेफड़े और खून पर सबसे ज्यादा रहता है प्रदूषण वैज्ञानिक के मुताबिक महानगरों में ऐसे धूल के कण अत्यधिक होते हैं जो कि इंसान को सबसे ज्यादा हानि पहुंचाते हैं और इंदौर शहर में भी एक समय ऐसा रहा है जब हवा में धूल के कण मानक से 3 गुना ज्यादा थे स्वच्छता अभियान की शुरुआत के बाद से ही इस में लगातार कमी आ रही है और सबसे ज्यादा फायदा पीएम 2.5 धूल कणों में हुआ है यही स्वास्थ्य के लिए सबसे ज्यादा हानिकारक होते हैं जो कि सीधे ब्लड में जाकर मिलते हैं और खतरनाक बीमारियों को जन्म देते हैं

सफाई व्यवस्था में बदलाव का असर अन्य क्षेत्रों में भी देखने को मिला है इंदौर में डेंगू का वायरस भी हर साल बदलता है पिछले साल की बीमारी के मरीजों की संख्या और मौतों के आंकड़ों में जरूर कमी देखने में आई है गंदगी और मक्खियों से फैलने वाली बीमारियों की संख्या में भी इंदौर में गिरावट देखी गई है वही धूल के कारण होने वाले रोगों के मरीजों के लिए भी सफाई से राहत मिली है यह सब इसलिए संभव हो पाया क्योंकि इंदौर लगातार पिछले 3 साल से स्वच्छता में नंबर वन है डेंगू मलेरिया टाइफाइड जैसी बीमारियों में पिछले 3 सालों में काफी गिरावट आई है

यदि आंकड़ों की बात करें तो वायु प्रदूषण के पिछले 3 साल के आंकड़े कुछ इस प्रकार हैं

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धूल के कण -
2016
पीएम 10 - 94.5
पीएम 2.5 - 49.2

2017
पीएम 10 - 79.9
पीएम 2.5- 42.2

2018
पीएम 10 - 83.6
पीएम 2.5 - 39.8

आंकड़े माइक्रोग्राम घन मीटर में है
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बाईट - दिलीप वाघेला, प्रदूषण वैज्ञानिक, इंदौर


Conclusion:यदि इंदौर में किसी प्रकार से स्वच्छता को लेकर जागरूकता बनी रही तो इंदौर देश के उन शहरों में भी शामिल हो जाएगा जिनकी हवा में प्रदूषण की मात्रा बहुत कम है देश के सबसे साफ शहर के साथ-साथ इंदौर के लिए प्रदूषण कम होना भी एक बहुत बड़ी उपलब्धि है
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