इंदौर। सिनेमा प्रेमियों के लिए आज भी सिंगल स्क्रीन सिनेमा आकर्षण का केंद्र है. शुरुआती दौर में सबसे पहले सिंगल स्क्रीन सिनेमा ही हुआ करते थे. लेकिन धीरे-धीरे जमाना बदलता गया और मल्टीप्लेक्स सिनेमा हॉल बन गए. मल्टीप्लेक्स के आने से कई सिंगल स्क्रीन सिनेमा बंद हो गए. थिएटर में फिल्म देखने का जुनून भले सिमट गया. लेकिन इंदौर के एक पुस्तक व्यवसायी ने सिंगल स्क्रीन सिनेमा की यादों को धरोहर के रूप में संजोकर रखा है. यहां ना केवल प्रोजेक्टर पर फिल्म दिखाई जाती हैं. बल्कि टिकट लेने से लेकर फिल्म खत्म होने तक बाकायदा सिंगल स्क्रीन थिएटर का एहसास कराया जाता है. (indore Book Trader Made Museum)
नई पीढ़ी के लिए पुरानी यादें: इनकी कोशिश है कि फिल्मों का जो दौर सिमट चुका है उसे सहेजे. आने वाली पीढ़ी को देखने और समझने के लिए किराए पर मकान लिया. बड़े भाई दिनेश जोशी की मदद से थिएटर स्थापित कर दिया. इस थिएटर में लोगों को फिल्म दिखाने के लिए 1 रुपए 65 पैसे का टिकट लगता है. जोशी बंधुओं की कोशिश है कि पुराने दौर के सिनेमाघर कि खूबसूरती को म्यूजियम के रूप में बनाया जाए. जिससे आने वाली पीढ़ी सिंगल स्क्रीन थिएटर को देख और जान सके. (single screen Cinema)
टिकट, फोटो और विज्ञापन का संग्रह: जोशी ने पुराने जमाने के फिल्मों के विज्ञापन, अखबार में छपने वाला सिनेमाघरों का कॉलम, रील, प्रोजेक्टर, स्लाइड को सहेजना शुरू किया. जो टॉकीज अब नहीं हैं उनके पुराने फोटो के आधार पर मॉडल बनवाना शुरू किया. विनोद जोशी बताते हैं कि, सिनेमाघरों कि यादों को संजोने के लिए संचालक और मैनेजर से फोटो, टिकट और गेट पास लिए गए हैं. जो आज भी उनके संग्रहालय की धरोहर हैं. इसके अलावा 1917 में वाघमारे के बाड़े से फिल्म दिखाने और वर्तमान दौर के फिल्म इतिहास को उन्होंने अपने संग्रहालय में सहेज कर रखा है.
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सिंगल स्क्रीन से ड्राइव इन सिनेमा का सफर: देश के कई शहरों में पुराने दौर में खुले आसमान के नीचे सिंगल स्क्रीन थिएटर (single screen cinema) पर प्रोजेक्टर मशीन से फिल्में दिखाई जाती थीं. अब ड्राइव इन सिनेमा के जरिए वही दौर फिर से लौट रहा है. इसलिए जोशी ने 1917 से लेकर 2022 तक के फिल्म के सफर पर बाकायदा एक बुकलेट बना रखी है. व्यवसायी का दावा है कि यह भारत का पहला सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर म्यूजियम है. इस म्यूजियम में इंदौर की 30 से ज्यादा टॉकीज से जुड़े फोटो, टिकट, स्लाइड, प्रोजेक्टर, पोस्टर्स रखे गए हैं. दर्शक यहां सिंगल स्क्रीन सिनेमा की यादों में खो जाते हैं.
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सेट में बना है रीगल सिनेमा का हावड़ा ब्रिज: सिनेमाघर में हावड़ा ब्रिज (Hawara Bridge Film) जैसी फिल्मों के रिलीज होने पर टॉकीज को सजाया जाता था. जिस तरह रीगल सिनेमा टॉकीज में हावड़ा ब्रिज फिल्म लगी थीं, जो ब्रिज बनाकर सजावट की गई थी. इसी तरह ज्योति सिनेमा में जब मुगल-ए-आजम लगी थी वैसे ही mughal-e-azam का पूरा सेट तैयार किया गया था. वह सेट भी यहां तैयार किया गया है. सजावट जो उस दौर में की जाती थी, वही सजावट जोशी ने भी की है. यहां बाकायदा रीगल सिनेमा वाला हावड़ा ब्रिज बनाया गया है.
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इंटरवल गेट पास: पुराने दौर में आधी फिल्म देखने के बाद दर्शक एक गेटपास के जरिए बाहर जा सकते थे. फिर उसी पास के जरिए उनका सिनेमा घर में प्रवेश होता था. यह पास भी यहां मौजूद हैं. विनोद जोशी बताते हैं कि उस जमाने में कई बच्चे अदला-बदली करके इंटरवल के बाद एक दूसरे की फिल्म देख लिया करते थे. जिससे घर वालों को पता भी नहीं चलता था कि संबंधित व्यक्ति चोरी छुपे फिल्म देखने गया था इस थिएटर को देखने और समझने के लिए कम से कम आधा घंटा लगता है. कलेक्शन में किस साल, किस महीने में, किस टॉकीज में कौन सी पिक्चर चली, उसके विज्ञापन, पोस्टर्स कैसे होते थे, वह सब शामिल है.
सिनेमा का क्रेज: पहले सिंगल पर्दे का इतना क्रेज था कि उस समय में हॉल फुल हो जाते थे. उस जमाने में रिलीज होने वाली फिल्मों में नायक-नायिका के किरदार की तरह लोग अपने लुक को बनाते थे. धीरे-धीरे ट्रेंड बदलने लगा और मल्टीप्लेक्स का जमाना आ गया. साल 2005 के बाद नई जनरेशन का रुझान मल्टीप्लेक्स की तरफ होने लगा. अब यह महसूस हो रहा है कि सिंगल स्क्रीन पर फिल्म देखने का मजा ही अलग होता है. देश में सिंगल स्क्रीन सिनेमा अब खत्म होने की स्थिति में है. जिन्हें संजोए रखने का काम जोशी ब्रदर्श कर रहे हैं.