इंदौर। स्वच्छता में नई इबारत लिख चुके इंदौर में अब गंदे पानी का ट्रीटमेंट प्राकृतिक तरीकों से हो रहा है. यहां प्रदेश का पहला ऐसा ट्रीटमेंट प्लांट तैयार किया गया है जिसमें केंचुए, लकड़ी के बुरादे, पत्थर और बैक्टीरिया की मदद से दूषित पानी को प्राकृतिक तरीके से साफ किया जा रहा है. इतना ही नहीं पानी को ट्रीटमेंट के बाद पिपलियाहाना तालाब में छोड़ा जा रहा है. जिसमें मछलियां एवं अन्य जीव जंतु मौजूद हैं.
दूषित पानी का ट्रीटमेंट: इंदौर में स्थापित यह प्लांट सिंगापुर की एक कंपनी की तकनीक पर आधारित है. जिसमें एडवांस ग्रोथ बायोलॉजिकल रिसर्कुलेटिंग रिएक्टर (Advance Growth Biological Recirculating Reactor) की सहायता से दूषित पानी का ट्रीटमेंट किया जाता है. हाल ही में इंदौर नगर निगम (Indore Nagar Nigam) को इस तरह का प्रदेश में पहला प्लांट लगाने का अवसर मिला तो नगर निगम प्रशासन ने शहर के पिपलियाहाना चौराहे पर 15000 वर्ग फीट में तीन मंजिला वाटर ट्रीटमेंट प्लांट (Water treatment Plant) को स्थापित किया. जिसकी लागत 1 करोड़ 95 लाख रुपए आई है. इस प्लांट में पिपलियाहाना क्षेत्र की करीब 7 कालोनियों का सीवरेज आता है. जिसे अलग-अलग चेंबर में प्राकृतिक तरीकों से शुद्ध करके पिपलियाहाना तालाब में छोड़ा जाता है.
ऐसे काम करता है सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट: इंदौर नगर निगम के उपयंत्री आकाश जैन (Deputy Engineer Akash Jain) के अनुसार ''क्षेत्र की विभिन्न कालोनियों से आने वाला गंदा पानी पहले एक बड़े टैंक में भरता है. यहां इस पानी से अपशिष्ट पदार्थ अलग कर दिए जाते हैं. क्योंकि यह अवशिष्ट उपचारित नहीं किए जा सकते. इसलिए फिर इस पानी को एक बड़े टैंक में डालकर इसमें से स्लज को निकाल लिया जाता है. इसके बाद स्लज निकले हुए पानी को केंचुए वाले प्लांट में डाला जाता है. यहां पर ऊपरी सतह में 1 से 3 इंच तक के पत्थर रखे गए हैं. जिन पर बैक्टीरिया डाले गए हैं यहां तक आते-आते पानी का 80 फी सदी हिस्सा साफ हो जाता है. इसके बाद पानी दूसरे टैंक में चला जाता है. यहां से प्रेशर टैंक और फिर कार्बन फिल्टर में पानी को भेजा जाता है. इसके बाद इसी पानी को अल्ट्राफिल्ट्रेशन टैंक के जरिए अल्ट्रावायलेट किरणों से गुजारा जाता है. इसके बाद उपचारित किए हुए इस पानी को पिपलियाहाना तालाब में छोड़ दिया जाता है''.
''पानी को प्राकृतिक चीजों से साफ करने के लिए काफी रिसर्च किया. पहले एशियन टेक्नोलॉजी से ट्रीटमेंट होता था. फिर दूसरी टेक्नोलॉजी पर आए गए. लेकिन उसमें स्लच के ट्रीटमेंट का जो प्रोसेस था वह नहीं हो पाता था. जिसकी वजह से एचटीपी फेल हो जाता था. फिर उसका हमने एनालिसिस किया. सारी चीजों को मिलाकर प्राकृतिक तरीकों से पानी को साफ करने के लिए एचटीपी का विकास किया''. -रघुनंदन विश्वकर्मा, प्लांट इंजीनियर
केंचुए से पानी की सफाई और खाद का निर्माण: इस प्लांट के 400 वर्ग फिट इलाके में केंचुए रखे गए हैं. इसके नीचे पानी के पाइप डाले गए हैं, और ऊपर लकड़ी का बुरादा डाला गया है. जिस पर चूहों को छोड़ा गया है. यहां पर आने वाले मल युक्त पानी को स्प्रिंकलर की सहायता से छोड़ा जाता है. इसमें मौजूद कार्बन पार्टिकल को खा लेते हैं और इसके बाद जो मल करते हैं वह लकड़ी के बुरादे के साथ मिल जाता है. टैंक में फिल्टर लगी हुई हैं जो केंचुए कैमल और बुरादे को नीचे नहीं आने देती. जबकि पानी छनकर निकल जाता है. टैंक का संचालन करने वाली एजेंसी के प्रतिनिधि नवनीत लुहाडिया के अनुसार ''साल भर में 1 फीट मोटी परत जालियों पर जम जाती है जिसे हम निकाल कर सुखा लेते हैं. थोड़े समय बाद यह अच्छी खाद में तब्दील हो जाती है''.
(Indore Sewerage Treatment Plant) (Clean Water in Indore) (Earthworms are cleaning dirty water in Indore)