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प्रदेश का एकमात्र शहर है इंदौर, जिसे सभी के संकल्प ने दिलाया आवारा पशुओं से छुटकारा - पशुपालकों को हिदायत

देश का सबसे स्वच्छ शहर इंदौर एक मात्र शहर है जो आम लोगों के अलावा राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छाशक्ति की बदौलत पूरी तरह आवारा पशु मुक्त शहर है. इस शहर में बीते कई सालों से पशुपालन पूरी तरह प्रतिबंधित भी है. तमाम प्रयासों के बाद अब देश का सबसे स्वच्छ शहर की तमाम सड़कें और रिहायशी क्षेत्र ना केवल पशु मुक्त हैं, बल्कि आवारा पशुओं के कारण होने वाली दुर्घटनाओं से भी मुक्ति पा चुका है.

Indore is the only city in Madhya Pradesh that is free from stray animals
आवारा पशुओं से छुटकारा
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Published : Dec 4, 2020, 7:25 PM IST

Updated : Dec 4, 2020, 9:05 PM IST

इंदौर। प्रदेश का सबसे स्वच्छ शहर इंदौर एकमात्र शहर है जो आम लोगों के अलावा राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छाशक्ति की बदौलत पूरी तरह आवारा पशु मुक्त शहर है. इस शहर में बीते कई सालों से पशुपालन पूरी तरह प्रतिबंधित भी है. प्रदेशभर के रिहायशी क्षेत्रों के अलावा सड़कों और व्यवसाय क्षेत्रों में दुर्घटना समेत तमाम तरह की गंदगी और परेशानी बनने वाले यह आवारा पशु लगभग हर शहर की नियति बन चुके हैं, इस क्रम में इंदौर एकमात्र ऐसा शहर है जो आवारा पशुओं की समस्या से मुक्ति पा चुका है.

संकल्प ने दिलाया आवारा पशुओं से छुटकारा

दरअसल, वर्ष 2015-16 में जब शहर में होने वाली अधिकांश दुर्घटनाओं की सबसे बड़ी वजह सड़कों और रिहायशी क्षेत्रों में मंडराने वाले आवारा पशु बनने लगे तो तत्कालीन महापौर मालिनी गौड़ के अलावा शहर के तमाम विधायकों और जनप्रतिनिधियों की सहमति से शहर के लोगों की मांग पर पशुओं को शहर से बाहर करने का सामूहिक संकल्प लिया गया, इसके बाद नगर निगम की मेयर इन काउंसिल ने नगर निगम एक्ट के तहत शहर में पशु पालन को प्रतिबंधित करने के फैसले को सामूहिक मंजूरी देकर शहर को पशु मुक्त करने का निर्णय किया.

नगर निगम परिषद के इस फैसले के अमल में आते ही नगर निगम ने शहर के तमाम पशुपालकों को हिदायत दी कि वे रिहायशी इलाकों में पशुपालन बंद कर अपने अपने पशुओं और पशु बाड़े शहरी क्षेत्रों से बाहर ग्रामीण क्षेत्र में शिफ्ट करें, इस दौरान कई पशुपालकों ने तो अपनी डेरियां और पशु बाड़े शहर के बाहर शिफ्ट किए लेकिन, इनमें से अधिकांश ऐसे थे जो अपने आवास में ही पशुओं की डेरियां संचालित कर रहे थे. बार-बार समझाने और हिदायतें देने के बाद भी ऐसे पशुपालकों ने नगर निगम और जिला प्रशासन की बात नहीं मानी तो उनके पशुओं को जबरिया शहर से बाहर शिफ्ट करने का अभियान चलाया गया. इसके बाद शहर की एक-एक पशु को पकड़ कर शहर के बाहर भेजा जाने लगा.

इस जन हितैषी अभियान को शहर के तमाम जनप्रतिनिधियों और जनता व्यापक समर्थन मिलने से नगर निगम ने चुन-चुन कर पशुओं के बाड़े खाली कराना शुरू कर दिए. इस दौरान एक मौका ऐसा आया जब आपराधिक किस्म के पशुपालकों ने पशु बाड़े के खिलाफ कार्रवाई के दौरान नगर निगम के अमले पर ही हमला कर दिया. इस हमले में एक नगर निगम कर्मचारी की मौत हो गई. लिहाजा नगर निगम ने पशु बाड़े और ऐसे पशु पालन करने वाले अपराधियों के खिलाफ रिमूवल की कार्रवाई शुरू की, इस कार्रवाई में कई पशुओं के बाड़े और पशुपालकों के घर ध्वस्त कर दिए गए इसके बाद पशु बाड़ों से जिन पशुओं की जब्ती हुई. उन्हें ट्रकों में भरकर ग्रामीण क्षेत्रों में भेजना शुरू किया. उस दौरान जिला प्रशासन की सहमति के बाद सैकड़ों की तादाद में आवारा पशु ग्रामीण क्षेत्रों में निशुल्क वितरित किए गए. निशुल्क वितरण के बाद भी जो पशु बच गए, उन्हें शहर के बाहर एक सामूहिक विशाल गोशाला तैयार कर गोपालन के लिए भेजा गया. लिहाजा नगर निगम की इस गोशाला में फिलहाल 12 हजार गो वंश अब भी मौजूद हैं. इन तमाम प्रयासों के बाद अब देश का सबसे स्वच्छ शहर की तमाम सड़कें और रिहायशी क्षेत्र ना केवल पशु मुक्त हैं, बल्कि आवारा पशुओं के कारण होने वाली दुर्घटनाओं से भी मुक्ति पा चुका है.


हाईकोर्ट में लगी थी याचिका



कई पशुपालकों के पशुओं को जबरिया शहर से बाहर शिफ्ट करने के नगर निगम के फैसले को जब हाईकोर्ट में चुनौती दी गई तो नगर निगम ने हाईकोर्ट के समक्ष उन तमाम पशुओं का रिकॉर्ड कोर्ट में प्रस्तुत किया, जिन्हें शहर के बाहर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले किसानों और पशुपालन के इच्छुक लोगों को निशुल्क प्रदान किया था. इसके बाद नगर निगम के फैसले को हाईकोर्ट ने भी सहमति दे दी लिहाजा शहर को पूर्ण रूप से पशु मुक्त करने की तमाम बाधाएं धीरे-धीरे हटती चली गईं.



डस्टबिन हटाने से सूअर और कुत्ते भी हुए गायब


आवारा पशुओं के अलावा शहर में सूअर और कुत्ते जो डस्टबिन से कचरा सड़कों पर फैलाते थे, उनकी समस्या का समाधान भी डस्टबिन हटाकर किया गया. शहर में जितने भी आवारा कुत्ते थे उनके खिलाफ नसबंदी अभियान चलाना पड़ा. इसके अलावा सूअर पालकों पर भी रिहायशी क्षेत्रों में पशुपालन प्रतिबंधित करने के फैसले को लागू किया गया, इसके बाद आवारा पशुओं के अलावा सूअर और आवारा कुत्तों से भी शहर को मुक्ति मिली.

50 हजार पशुओं को करना पड़ा शिफ्ट

इंदौर प्रदेश का एकमात्र ऐसा शहर है, जहां नगर निगम और निजी स्तर पर करीब 70 ट्रकों के जरिए करीब 50,000 से ज्यादा आवारा पशुओं को शहर से बाहर खदेड़ा गया. इस काम में नगर निगम के करीब 5000 अधिकारियों कर्मचारियों ने एकजुट होकर करीब दो साल तक पशु मुक्ति अभियान चलाया. इसके बाद ना बाड़े बनने दिए गए ना ही पशुओं को बाहर से शहर में लाने दिया गया. कई स्तरों पर प्रतिबंध होने के फल स्वरुप फिलहाल इंदौर अब पूरी तरह पशु मुक्त शहर बन चुका है, जो प्रदेश के अन्य शहरों के लिए भी आवारा पशुओं की समस्या को लेकर नजीर बना हुआ है.

इंदौर। प्रदेश का सबसे स्वच्छ शहर इंदौर एकमात्र शहर है जो आम लोगों के अलावा राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छाशक्ति की बदौलत पूरी तरह आवारा पशु मुक्त शहर है. इस शहर में बीते कई सालों से पशुपालन पूरी तरह प्रतिबंधित भी है. प्रदेशभर के रिहायशी क्षेत्रों के अलावा सड़कों और व्यवसाय क्षेत्रों में दुर्घटना समेत तमाम तरह की गंदगी और परेशानी बनने वाले यह आवारा पशु लगभग हर शहर की नियति बन चुके हैं, इस क्रम में इंदौर एकमात्र ऐसा शहर है जो आवारा पशुओं की समस्या से मुक्ति पा चुका है.

संकल्प ने दिलाया आवारा पशुओं से छुटकारा

दरअसल, वर्ष 2015-16 में जब शहर में होने वाली अधिकांश दुर्घटनाओं की सबसे बड़ी वजह सड़कों और रिहायशी क्षेत्रों में मंडराने वाले आवारा पशु बनने लगे तो तत्कालीन महापौर मालिनी गौड़ के अलावा शहर के तमाम विधायकों और जनप्रतिनिधियों की सहमति से शहर के लोगों की मांग पर पशुओं को शहर से बाहर करने का सामूहिक संकल्प लिया गया, इसके बाद नगर निगम की मेयर इन काउंसिल ने नगर निगम एक्ट के तहत शहर में पशु पालन को प्रतिबंधित करने के फैसले को सामूहिक मंजूरी देकर शहर को पशु मुक्त करने का निर्णय किया.

नगर निगम परिषद के इस फैसले के अमल में आते ही नगर निगम ने शहर के तमाम पशुपालकों को हिदायत दी कि वे रिहायशी इलाकों में पशुपालन बंद कर अपने अपने पशुओं और पशु बाड़े शहरी क्षेत्रों से बाहर ग्रामीण क्षेत्र में शिफ्ट करें, इस दौरान कई पशुपालकों ने तो अपनी डेरियां और पशु बाड़े शहर के बाहर शिफ्ट किए लेकिन, इनमें से अधिकांश ऐसे थे जो अपने आवास में ही पशुओं की डेरियां संचालित कर रहे थे. बार-बार समझाने और हिदायतें देने के बाद भी ऐसे पशुपालकों ने नगर निगम और जिला प्रशासन की बात नहीं मानी तो उनके पशुओं को जबरिया शहर से बाहर शिफ्ट करने का अभियान चलाया गया. इसके बाद शहर की एक-एक पशु को पकड़ कर शहर के बाहर भेजा जाने लगा.

इस जन हितैषी अभियान को शहर के तमाम जनप्रतिनिधियों और जनता व्यापक समर्थन मिलने से नगर निगम ने चुन-चुन कर पशुओं के बाड़े खाली कराना शुरू कर दिए. इस दौरान एक मौका ऐसा आया जब आपराधिक किस्म के पशुपालकों ने पशु बाड़े के खिलाफ कार्रवाई के दौरान नगर निगम के अमले पर ही हमला कर दिया. इस हमले में एक नगर निगम कर्मचारी की मौत हो गई. लिहाजा नगर निगम ने पशु बाड़े और ऐसे पशु पालन करने वाले अपराधियों के खिलाफ रिमूवल की कार्रवाई शुरू की, इस कार्रवाई में कई पशुओं के बाड़े और पशुपालकों के घर ध्वस्त कर दिए गए इसके बाद पशु बाड़ों से जिन पशुओं की जब्ती हुई. उन्हें ट्रकों में भरकर ग्रामीण क्षेत्रों में भेजना शुरू किया. उस दौरान जिला प्रशासन की सहमति के बाद सैकड़ों की तादाद में आवारा पशु ग्रामीण क्षेत्रों में निशुल्क वितरित किए गए. निशुल्क वितरण के बाद भी जो पशु बच गए, उन्हें शहर के बाहर एक सामूहिक विशाल गोशाला तैयार कर गोपालन के लिए भेजा गया. लिहाजा नगर निगम की इस गोशाला में फिलहाल 12 हजार गो वंश अब भी मौजूद हैं. इन तमाम प्रयासों के बाद अब देश का सबसे स्वच्छ शहर की तमाम सड़कें और रिहायशी क्षेत्र ना केवल पशु मुक्त हैं, बल्कि आवारा पशुओं के कारण होने वाली दुर्घटनाओं से भी मुक्ति पा चुका है.


हाईकोर्ट में लगी थी याचिका



कई पशुपालकों के पशुओं को जबरिया शहर से बाहर शिफ्ट करने के नगर निगम के फैसले को जब हाईकोर्ट में चुनौती दी गई तो नगर निगम ने हाईकोर्ट के समक्ष उन तमाम पशुओं का रिकॉर्ड कोर्ट में प्रस्तुत किया, जिन्हें शहर के बाहर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले किसानों और पशुपालन के इच्छुक लोगों को निशुल्क प्रदान किया था. इसके बाद नगर निगम के फैसले को हाईकोर्ट ने भी सहमति दे दी लिहाजा शहर को पूर्ण रूप से पशु मुक्त करने की तमाम बाधाएं धीरे-धीरे हटती चली गईं.



डस्टबिन हटाने से सूअर और कुत्ते भी हुए गायब


आवारा पशुओं के अलावा शहर में सूअर और कुत्ते जो डस्टबिन से कचरा सड़कों पर फैलाते थे, उनकी समस्या का समाधान भी डस्टबिन हटाकर किया गया. शहर में जितने भी आवारा कुत्ते थे उनके खिलाफ नसबंदी अभियान चलाना पड़ा. इसके अलावा सूअर पालकों पर भी रिहायशी क्षेत्रों में पशुपालन प्रतिबंधित करने के फैसले को लागू किया गया, इसके बाद आवारा पशुओं के अलावा सूअर और आवारा कुत्तों से भी शहर को मुक्ति मिली.

50 हजार पशुओं को करना पड़ा शिफ्ट

इंदौर प्रदेश का एकमात्र ऐसा शहर है, जहां नगर निगम और निजी स्तर पर करीब 70 ट्रकों के जरिए करीब 50,000 से ज्यादा आवारा पशुओं को शहर से बाहर खदेड़ा गया. इस काम में नगर निगम के करीब 5000 अधिकारियों कर्मचारियों ने एकजुट होकर करीब दो साल तक पशु मुक्ति अभियान चलाया. इसके बाद ना बाड़े बनने दिए गए ना ही पशुओं को बाहर से शहर में लाने दिया गया. कई स्तरों पर प्रतिबंध होने के फल स्वरुप फिलहाल इंदौर अब पूरी तरह पशु मुक्त शहर बन चुका है, जो प्रदेश के अन्य शहरों के लिए भी आवारा पशुओं की समस्या को लेकर नजीर बना हुआ है.

Last Updated : Dec 4, 2020, 9:05 PM IST
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