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इंदौर: डॉक्टरों ने बनाया सांसों का देसी जुगाड़, मोबाइल चार्जर से भी चलेगा वेंटिलेटर - देसी वेंटिलेटर

इंदौर में कुछ डॉक्टर्स और कुछ इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरों ने मिलकर इसी जुगाड़ से एक देसी वेंटिलेटर तैयार किया है. जो न सिर्फ कोरोना काल में लोगों के लिए काफी मददगार साबित हो सकता है. यह देसी जुगाड़ वर्तमान में मौजूदा वेंटिलेटर्स से आधे से भी कम की लागत में तैयार हुआ है.खास बात यह है कि इस देसी वेंटिलेटर को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ने भी मंजूरी दे दी है.

desi ventilator
इंदौर डॉक्टरों ने बनाया सांसों का देसी जुगाड़
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Published : May 4, 2021, 10:59 PM IST

इंदौर। जुगाड़ कहें या यूं कहें कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है. इसी मान्यता को मानते हुए इंदौर में कुछ डॉक्टर्स और कुछ इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरों ने मिलकर इसी जुगाड़ से एक देसी वेंटिलेटर तैयार किया है. जो न सिर्फ कोरोना काल में लोगों के लिए काफी मददगार साबित हो सकता है. यह देसी जुगाड़ वर्तमान में मौजूदा वेंटिलेटर्स से आधे से भी कम की लागत में तैयार हुआ है.खास बात यह है कि इस देसी वेंटिलेटर को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ने भी मंजूरी दे दी है.

इंदौर डॉक्टरों ने बनाया सांसों का देसी जुगाड़

इंग्लैंड से लौटे डॉक्टर की तकनीक से हुआ तैयार
इंदौर समेत देशभर में कोरोना मरीजों की जान बचाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं वेंटिलेटर, लेकिन मौजूदा दौर में काफी कोशिशों के बाद भी वेंटिलेटर सभी संक्रमित मरीजों को उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं. इसकी कमी के चलते कई मरीजों की असमय मौत भी हो रही है. ऐसे में इंदौर के एक डॉक्टर दंपति और कुछ इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स ने मिलकर एक ऐसा वेंटिलेटर तैयार करने का प्लान किया जा लोगों की समस्याओं को कुछ हद तक कम कर सके. इसे बनाने में इंदौर के पोलो ग्राउंड में इलेक्ट्रॉनिक व्यवसाय करने वाले उद्यमी संजय पटवर्धन और यूरोप से लौटे डॉ एसके भंडारी और उनकी पत्नी पूर्णिमा भंडारी ने दंपत्ति ने फेफड़ों को वेंटिलेशन देने वाली प्रमाणिक तकनीक के आधार पर यह अविष्कार किया है. इनकी तकनीक यूरोप में पेटेंट के लिए पेंडिंग है.

वाटर मैनोमीटर तकनीक का इस्तेमाल, ऑपरेटर की जरूरत नहीं

सांसों का देसी जुगाड़ बने इस वेंटिलेटर की खासियत यह है कि इसे चलाने के लिए किसी भी तकनीकी ऑपरेटर की जरूरत नहीं है. इसकेअलावा इसे रखने के लिए कोई आईसीयू या मेडिकल वार्ड भी नहीं चाहिए. करीब 2 किलो वजन का यह वेंटीलेटर पूरी तरह से सुगम और पारदर्शी है जिसे एक जगह से दूसरी जगह भी आसानी से ले जाया जा सकता है. मरीज के अटेंडर ही इसे चला सकते हैं. मरीज को दी जाने वाली ऑक्सीजन के दबाव के लिए वेंटिलेटर में वाटर मैनोमीटर की तकनीकी का प्रयोग किया गया है. इसे चलाने में बिजली की खपत भी कम होती है.इसके अलावा इसमें 4 घंटे का वैकअप भी रहता है.जिससे इसकी मदद से किसी भी व्यक्ति को दुर्घटना अथवा इमरजेंसी की हालत में 'गोल्डन ऑवर' के दौरान अस्पताल तक पहुंचाया जा सकता है.

मोबाइल चार्जर से भी चल सकता है वेंटिलेटर

इस देसी वेंटिलेटर की सबसे बड़ी खूबी है कि यह वेंटिलेटर 12 बोल्ट के डायरेक्ट करंट वाले मोबाइल चार्जर से भी चलाया जा सकता है. जिससे गांव में भी काम करने को लेकर इसकी उपयोगिता काफी बढ़ जाती है. इस देसी अविष्कार को बनाने वाले संजय पटवर्धन और डॉक्टर दंपति की कोशिश यह है कि ज्यादा से ज्यादा इसका निर्माण कर पूरे देश में पंचायत स्तर तक इस देसी वेंटिलेटर को पहुंचाया जाए जिससे ऑक्सीजन और जीवन रक्षक उपकरणों के अभाव में दम तोड़ रहे हजारों लोगों की जिंदगी बचाई जा सके

50 हजार की लागत में हुआ तैयार
वेंटिलेटर को तैयार करने वाले इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर पटवर्धन के मुताबिक इसका वजन सिर्फ 2 किलो है और इसे बनाने में करीब 50 हजार रुपए की लागत आई है. जबकि बाजार में मिलने वाले वेंटिलेटर की कीमत एक से डेढ़ लाख रुपए से भी ज्यादा भी होती है.अपनी तरह के इस पहले घरेलू वेंटिलेटर के जरिए मरीजों की जान कम ऑक्सीजन फ्लो में भी बचाई जा सकती है. इसके अलावा ऑक्सीजन सिलेंडर खत्म होने पर यह वेंटिलेटर वातावरण से ऑक्सीजन खींचकर मरीज को दे सकेगा जिससे ऐसे मरीज जिनके फेंफड़ों में 50 से 60 फीसदी इंफेक्शन हो चुका है उनको भी बचाया जा सकेगा

संकट में काम आई तकनीक

इंग्लैंड से आए डॉएसके भंडारी इलैक्ट्रॉनिक इंजीनियर पटवर्धन के मित्र हैं. भारत में जब उन्होंने कोरोना काल के दौरान लोगों को ऑक्सीजन और वेंटिलेटर के अभाव में दम तोड़ते हुए देखा तो उन्होंने अपनी तकनीक को लेकर पटवर्धन से बात की जिसके बाद उनके मित्र और परमाणु प्रगत केंद्र (कैट) के रिटायर वैज्ञानिक अनिल थिप्से भी इससे जुड़े और उनसे तकनीक को लेकर गाइडेंस लिया गया. इसके बाद मेडिकल उपकरण के लिए लाइसेंस लेने के अलावा यूरोप के मानकों के अनुसार वेंटिलेटर का सामान अरेंज किया गया. जब वेंटीलेटर तैयार हो गया तो इसके रजिस्ट्रेशन के अलावा मानकों की स्वीकृति के लिए इसके मॉडल को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की मंजूरी के लिए भेजा गया जहां से इसे मंजूरी मिल गई है.

बनाए गए 5 वेंटिलेटर बुक
इस देसी वेंटिलेटर को तैयार करने वाले पटवर्धन बताते हैं कि वेंटिलेटर की जानकारी लगते ही बड़ी संख्या में लोग इसको लेना चाहते हैं. पहले चरण में हमने 5 वेंटिलेटर तैयार किए थे जो पांचों बुक हो चुके हैं. हालांकि उन्होंने कहा कि वे इसकी कम से कम 50 यूनिट तैयार करना चाहते हैं लेकिन जनता कर्फ्यू के चलते जरूरी सामान मिलना मुश्किल हो रहा है, लेकिन फिर भी हम लोगों को इसे उपलब्ध कराने के लिए तैयार हैं. इन्हें कुछ दी दिनों में तैयार कर लिया जाएगा.

इंदौर। जुगाड़ कहें या यूं कहें कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है. इसी मान्यता को मानते हुए इंदौर में कुछ डॉक्टर्स और कुछ इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरों ने मिलकर इसी जुगाड़ से एक देसी वेंटिलेटर तैयार किया है. जो न सिर्फ कोरोना काल में लोगों के लिए काफी मददगार साबित हो सकता है. यह देसी जुगाड़ वर्तमान में मौजूदा वेंटिलेटर्स से आधे से भी कम की लागत में तैयार हुआ है.खास बात यह है कि इस देसी वेंटिलेटर को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ने भी मंजूरी दे दी है.

इंदौर डॉक्टरों ने बनाया सांसों का देसी जुगाड़

इंग्लैंड से लौटे डॉक्टर की तकनीक से हुआ तैयार
इंदौर समेत देशभर में कोरोना मरीजों की जान बचाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं वेंटिलेटर, लेकिन मौजूदा दौर में काफी कोशिशों के बाद भी वेंटिलेटर सभी संक्रमित मरीजों को उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं. इसकी कमी के चलते कई मरीजों की असमय मौत भी हो रही है. ऐसे में इंदौर के एक डॉक्टर दंपति और कुछ इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स ने मिलकर एक ऐसा वेंटिलेटर तैयार करने का प्लान किया जा लोगों की समस्याओं को कुछ हद तक कम कर सके. इसे बनाने में इंदौर के पोलो ग्राउंड में इलेक्ट्रॉनिक व्यवसाय करने वाले उद्यमी संजय पटवर्धन और यूरोप से लौटे डॉ एसके भंडारी और उनकी पत्नी पूर्णिमा भंडारी ने दंपत्ति ने फेफड़ों को वेंटिलेशन देने वाली प्रमाणिक तकनीक के आधार पर यह अविष्कार किया है. इनकी तकनीक यूरोप में पेटेंट के लिए पेंडिंग है.

वाटर मैनोमीटर तकनीक का इस्तेमाल, ऑपरेटर की जरूरत नहीं

सांसों का देसी जुगाड़ बने इस वेंटिलेटर की खासियत यह है कि इसे चलाने के लिए किसी भी तकनीकी ऑपरेटर की जरूरत नहीं है. इसकेअलावा इसे रखने के लिए कोई आईसीयू या मेडिकल वार्ड भी नहीं चाहिए. करीब 2 किलो वजन का यह वेंटीलेटर पूरी तरह से सुगम और पारदर्शी है जिसे एक जगह से दूसरी जगह भी आसानी से ले जाया जा सकता है. मरीज के अटेंडर ही इसे चला सकते हैं. मरीज को दी जाने वाली ऑक्सीजन के दबाव के लिए वेंटिलेटर में वाटर मैनोमीटर की तकनीकी का प्रयोग किया गया है. इसे चलाने में बिजली की खपत भी कम होती है.इसके अलावा इसमें 4 घंटे का वैकअप भी रहता है.जिससे इसकी मदद से किसी भी व्यक्ति को दुर्घटना अथवा इमरजेंसी की हालत में 'गोल्डन ऑवर' के दौरान अस्पताल तक पहुंचाया जा सकता है.

मोबाइल चार्जर से भी चल सकता है वेंटिलेटर

इस देसी वेंटिलेटर की सबसे बड़ी खूबी है कि यह वेंटिलेटर 12 बोल्ट के डायरेक्ट करंट वाले मोबाइल चार्जर से भी चलाया जा सकता है. जिससे गांव में भी काम करने को लेकर इसकी उपयोगिता काफी बढ़ जाती है. इस देसी अविष्कार को बनाने वाले संजय पटवर्धन और डॉक्टर दंपति की कोशिश यह है कि ज्यादा से ज्यादा इसका निर्माण कर पूरे देश में पंचायत स्तर तक इस देसी वेंटिलेटर को पहुंचाया जाए जिससे ऑक्सीजन और जीवन रक्षक उपकरणों के अभाव में दम तोड़ रहे हजारों लोगों की जिंदगी बचाई जा सके

50 हजार की लागत में हुआ तैयार
वेंटिलेटर को तैयार करने वाले इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर पटवर्धन के मुताबिक इसका वजन सिर्फ 2 किलो है और इसे बनाने में करीब 50 हजार रुपए की लागत आई है. जबकि बाजार में मिलने वाले वेंटिलेटर की कीमत एक से डेढ़ लाख रुपए से भी ज्यादा भी होती है.अपनी तरह के इस पहले घरेलू वेंटिलेटर के जरिए मरीजों की जान कम ऑक्सीजन फ्लो में भी बचाई जा सकती है. इसके अलावा ऑक्सीजन सिलेंडर खत्म होने पर यह वेंटिलेटर वातावरण से ऑक्सीजन खींचकर मरीज को दे सकेगा जिससे ऐसे मरीज जिनके फेंफड़ों में 50 से 60 फीसदी इंफेक्शन हो चुका है उनको भी बचाया जा सकेगा

संकट में काम आई तकनीक

इंग्लैंड से आए डॉएसके भंडारी इलैक्ट्रॉनिक इंजीनियर पटवर्धन के मित्र हैं. भारत में जब उन्होंने कोरोना काल के दौरान लोगों को ऑक्सीजन और वेंटिलेटर के अभाव में दम तोड़ते हुए देखा तो उन्होंने अपनी तकनीक को लेकर पटवर्धन से बात की जिसके बाद उनके मित्र और परमाणु प्रगत केंद्र (कैट) के रिटायर वैज्ञानिक अनिल थिप्से भी इससे जुड़े और उनसे तकनीक को लेकर गाइडेंस लिया गया. इसके बाद मेडिकल उपकरण के लिए लाइसेंस लेने के अलावा यूरोप के मानकों के अनुसार वेंटिलेटर का सामान अरेंज किया गया. जब वेंटीलेटर तैयार हो गया तो इसके रजिस्ट्रेशन के अलावा मानकों की स्वीकृति के लिए इसके मॉडल को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की मंजूरी के लिए भेजा गया जहां से इसे मंजूरी मिल गई है.

बनाए गए 5 वेंटिलेटर बुक
इस देसी वेंटिलेटर को तैयार करने वाले पटवर्धन बताते हैं कि वेंटिलेटर की जानकारी लगते ही बड़ी संख्या में लोग इसको लेना चाहते हैं. पहले चरण में हमने 5 वेंटिलेटर तैयार किए थे जो पांचों बुक हो चुके हैं. हालांकि उन्होंने कहा कि वे इसकी कम से कम 50 यूनिट तैयार करना चाहते हैं लेकिन जनता कर्फ्यू के चलते जरूरी सामान मिलना मुश्किल हो रहा है, लेकिन फिर भी हम लोगों को इसे उपलब्ध कराने के लिए तैयार हैं. इन्हें कुछ दी दिनों में तैयार कर लिया जाएगा.

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