इंदौर. शहर के एक अस्पताल में बीते 12 दिनों से भर्ती 8 माह का एक मासूम जिंदगी की जंग लड़ रहा था वह भी अपनों के बगैर. मासूम की मां जेल में थी और पिता फरार. हॉस्पिटल का स्टाफ, पड़ोसी और नानी किसी तरह बच्चे को संभालने में लगे थे लेकिन उसकी हालत दिन -व-दिन गंभीर होती जा रही थी. बच्चे की बीमारी की दवा जेल में थी उसकी मां. जिसे कोर्ट ने दया दिखाते हुए बेल दी और मां अपने जिगर के टुकड़े को जिंदगी की कुछ बूंदे दौड़ी चली आई.
कोर्ट ने मां को बच्चे से मिलाया
हॉस्पिटल में वेंटिलेटर पर लेटे मासूम की गंभीर बीमारी को देखते हुए पीड़ित के वकील ने कोर्ट को आवेदन दिया था. जिसपर जानकारी लेने के बाद कोर्ट ने बच्चे की मां को जेल से रिहा किए जाने के आदेश जारी किए. खास बात यह थी कि कोरोना कर्फ्यू के दौरान जहां अदालतें बंद है वहीं इस मामले में जज साहब ने सुनवाई की और एक मासूम को उसकी मां से मिलाने के लिए रिहाई के आदेश दिए.
मां ही है मासूम की दवाई
बच्चे की मां अवैध रूप से शराब रखने के आरोप में आबकारी एक्ट में जेल में बंद थी. हालांकि उसका कहना है कि पुलिस उसके परिवार के खिलाफ यह फर्जी मामला बनाया है. उसका या उसके परिवार का ऐसे किसी मामले से कोई लेना-देना नहीं है. मासूम की मां ने कोर्ट का धन्यवाद दिया और साथ ही इस मामले की निष्पक्ष जांच किए जाने की गुहार भी लगाई है. वहीं दूसरी तरफ मां की ममता के छांव और मां का साथ मिलने मासूम की हालत में सुधार देखा गया है. इससे यह बात एक बार फिर सच साबित होती है कि किसी भी मासूम के लिए उसकी मां ही सबसे बड़ी दवा भी होती है और वही दवा भी होती है.
किसकी लापरवाही ?
मासूम को मां तो मिल गई लेकिन इस सवाल का जवाब मिलना भी बेहद जरूरी है कि आखिर यह मासूम इतनी छोटी उम्र में इतनी बड़ी सजा आखिर किसकी लापरवाही से भुगत रहा था. क्या इसके लिए सिस्टम जिम्मेदार नहीं जिसने शराब जब्ती के मामले में आरोपी के फरार हो जाने के बाद उसके पूरे परिवार को ही शराब का धंधा करने के मामले में आरोपी बना दिया और एक मासूम की उसकी मां से जुदा करते हुए जेल भेज दिया.