इंदौर। देश के विभिन्न मजहबों और उनके मानने वालों के बीच जहां अलग-अलग पूजा पद्धतियां हैं, वहीं इंदौर के महू में स्थित अंबेडकर स्मारक ऐसा इकलौता तीर्थ स्थल है जहां डॉ. अंबेडकर के अस्थि कलश के समक्ष हर साल हजारों लोग सामाजिक उत्थान की प्रार्थना लेकर पहुंचते हैं और उनके चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं. बौद्ध निर्माण शैली में बना महू का अंबेडकर स्मारक इसलिए भी खास है, क्योंकि डॉ. अंबेडकर के अनुयायियों ने उनके स्मारक को भी भगवान बुद्ध की तरह ही स्तूप के रूप में विकसित किया है. यह उनके मानने वालों के आस्था का केंद्र बन गया है.
इंदौर के महू में पैदा हुए थे डॉ. अंबेडकर: भारत के संविधान निर्माता और दलितों के मसीहा माने जाने वाले डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म इंदौर के महू में 14 अप्रैल 1891 में हुआ था. अंबेडकर अपने माता-पिता की 14वीं संतान थे. उन्हें छोटी उम्र से ही इस बात का एहसास करवाया गया कि उनका जन्म एक अछूत परिवार में हुआ है. जिस स्थान पर उनका जन्म हुआ वहां उन दिनों ब्रिटिश सेना की छावनी बनी थी. जो महू की काली पलटन इलाके में हुआ करती थी. डॉ. आंबेडकर का कर्म क्षेत्र महाराष्ट्र और दिल्ली रहा. हालांकि, अपने जीवन काल में एक मौका ऐसा भी आया जब डॉ. अंबेडकर एक केस के सिलसिले में इंदौर और महू आए थे.
सुंदरलाल पटवा सरकार ने बनाया स्मारक: मध्यप्रदेश की तत्कालीन सुंदरलाल पटवा सरकार ने यहां जो भव्य स्मारक बनवाया उसे भीम जन्मभूमि नाम दिया. खास बात यह रही कि स्मारक की संरचना बौद्ध वास्तुकला की तरह ही तैयार की गई है. जिसके अंदर किसी स्तूप की तरह ही अस्थि कलश रखा गया है. जिसकी बाकायदा मंदिरों की तरह ही आराधना होती है. 12 अप्रैल 1991 को अंबेडकर का अस्थि कलश भंते धर्मशील मुंबई से महू लेकर आया गया था. इसी दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने स्मारक का शिलान्यास किया. आगे चलकर 14 अप्रैल 2008 को डॉ. आंबेडकर की 117 वीं जयंती के मौके पर इस स्मारक को लोकार्पण किया गया था.
स्मारक में बाबा साहेब के जीवन काल की झलक: 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती के रूप में मनाया जाता है. इस दिन को भारत में समानता दिवस और ज्ञान दिवस के रूप में जाना जाता है. बाबा साहेब ने जाति व्यवस्था का कड़ा विरोध किया और इसे समाज से मिटाने का प्रयास किया. उनकी जन्म स्थली महू में अंबेडकर जयंती धूमधाम से मनाई जाती है. यहां स्मारक के मुख्य हाल में डॉ. अंबेडकर एक कुर्सी पर बैठे हुए हैं उनके साथ उनकी पत्नी रमाबाई अंबेडकर खड़ी हुई नजर आती हैं. यहां पर उनके पिता सूबेदार रामजी और माता भीमाबाई की तस्वीरें भी लगी हैं. इसके अलावा डॉ. अंबेडकर के जीवन का चित्रण करने वाले म्यूरल लगे हुए हैं.
बौद्ध स्तूप की तरह अंबेडकर का स्तूप: जिस तरह बौद्ध धर्म में दाह संस्कार वाले स्थान पर स्तूप बनाया जाता है और उसमें संबंधित महापुरुष के शारीरिक अंश अथवा अवशेष रखे जाते हैं. उसी तरह अंबेडकर का स्तूप रूपी स्मारक बनाया गया है. डॉ.अंबेडकर ने हिंदू धर्म में छुआछूत और जातिवाद से त्रस्त होकर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी. इसलिए आज भी उनके अनुयाइयों के लिए ये सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है. यहां हर साल अंबेडकर जयंती पर राज्य सरकार सामाजिक समरसता सम्मेलन आयोजित करती है. इसके अलावा देश-विदेश से आने वाले लोगों के स्वागत में महू में कई तरह के कार्यक्रम होते हैं. 14 अप्रैल को यहां पर बड़ी संख्या में बौद्ध भिक्षु भी पहुंचते हैं. जो आने वाले अनुयायियों को समरसता और समानता की सीख देते हैं, ताकि सदियों से शोषण का शिकार हुए गरीब दलितों को समाज की मुख्यधारा में लाया जा सके.
11 भाषाओं पर पकड़ थी: संविधान भारत निर्माता डॉ. अंबेडकर अपने दौर के सभी राजनेताओं से ज्यादा पठन पाठन में सक्रिय रहे. ग्यारह अलग-अलग भाषाओं पर उनकी मजबूत पकड़ थी. अंबेडकर ने कुल 32 किताबें, 10 वक्तव्य के साथ चार रिसर्च थीसिस के अलावा ढेर सारी पुस्तकों की समीक्षाएं भी लिखी. 6 दिसंबर 1956 को डॉ.अंबेडकर की मृत्यु हो गई. वैसे उनकी मृत्यु का कारण मधुमेह का बताया जाता है, लेकिन मृत्यु का असली कारण क्या था यह आज तक नहीं पता चल पाया है. यह घड़ी भारत के लिए बहुत कठिन थी.
शिवराज और कमलनाथ दोनों पहुंचेंगे महू: आज 14 अप्रैल को एक ओर सैकड़ों अनुयायी आएंगे तो दूसरी ओर राजनैतिक जमात के लोग भी पहुंचेंगे. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ भी अंबेडकर जयंती समारोह में शामिल होने महू आएंगे. इसके अलावा दिग्विजय सिंह समेत प्रदेश के अन्य मंत्री स्मारक स्थल पर श्रद्धा सुमन अर्पित करेंगे. भाजपा सरकार अंबेडकर जयंती पर तीन दिवसीय महोत्सव कर रही है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भी इस आयोजन का न्यौता भेजा गया है.
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