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लंदन की थेम्स नदी की तर्ज पर बनी स्वर्ण रेखा नदी हुई नाले में तब्दील, पानी की जगह बह रहा है गंदा पानी - ग्वालियर

ग्वालियर शहर के बीच से गुजरने वाली रियासत कालीन स्वर्ण रेखा नदी भी दम तोड़ती नजर आ रही है, इस नदी में शहर का गंदा पानी बह रहा है और यह नदी नाले के रूप में तब्दील हो गई है.

स्वर्ण रेखा नदी हुई नाले में तब्दील
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Published : Jun 12, 2019, 10:51 PM IST

ग्वालियर। भीषण गर्मी के चलते जलस्त्रोतों पर भी संकट मंडराने लगा है. ग्वालियर शहर के बीच से गुजरने वाली रियासत कालीन स्वर्ण रेखा नदी भी दम तोड़ती नजर आ रही है. आलम यह है कि नदी में शहर का गंदा पानी बह रहा है. यह नदी नाले के रूप में तब्दील हो गई है, साथ ही इसमें शहर का कचरा भी जमा हो गया है. बीजेपी सरकार के समय इस पर कई करोड़ो खर्च किए गए थे लेकिन हालत वैसे ही है.

स्वर्ण रेखा नदी हुई नाले में तब्दील

⦁ स्वर्ण रेखा नदी सिंधिया रियासत के समय लंदन की थेम्स नदी की तर्ज पर बनाई गई थी. यह नदी प्रदेश की पहली कृत्रिम नदी है.
⦁ इस नदी में शहर के आसपास के बांधो से पानी छोड़ा जाता था जिससे पूरे शहर में पीने के पानी उपलब्ध कराई जाती थी.
⦁ व्यवसायिक प्रतिष्ठान और फैक्ट्रियों से निकलने वाली गंदगी लगातार इस स्वर्णरेखा रेखा नदी में मिल रही है जिससे यह प्रदूषित नाला बन कर रह गया है.
⦁ राजनीतिक रसूख रखने वाले नेता-मंत्री और अधिकारियों ने स्वर्णरेखा नदी पर करोड़ो रुपए खर्च किये लेकिन स्थित जस की तस बनी हुई है.
⦁ स्वर्णरेखा नदी पर करोड़ों रुपए खर्च करके नीदरलैंड की तकनीकी से निखारने का काम भी किया लेकिन यह योजना भी पूरी तरह से फेल हो गई.
⦁ साल 2006 में 60 करोड़ रुपए खर्च कर स्वर्ण रेखा को पक्का कराया गया था जिससे बरसात का पानी जमा होता रहे है. वहीं कम बरसात के चलते पानी जमा नहीं हो पाया लेकिन गंदा पानी इकट्ठा हो गया.

ग्वालियर। भीषण गर्मी के चलते जलस्त्रोतों पर भी संकट मंडराने लगा है. ग्वालियर शहर के बीच से गुजरने वाली रियासत कालीन स्वर्ण रेखा नदी भी दम तोड़ती नजर आ रही है. आलम यह है कि नदी में शहर का गंदा पानी बह रहा है. यह नदी नाले के रूप में तब्दील हो गई है, साथ ही इसमें शहर का कचरा भी जमा हो गया है. बीजेपी सरकार के समय इस पर कई करोड़ो खर्च किए गए थे लेकिन हालत वैसे ही है.

स्वर्ण रेखा नदी हुई नाले में तब्दील

⦁ स्वर्ण रेखा नदी सिंधिया रियासत के समय लंदन की थेम्स नदी की तर्ज पर बनाई गई थी. यह नदी प्रदेश की पहली कृत्रिम नदी है.
⦁ इस नदी में शहर के आसपास के बांधो से पानी छोड़ा जाता था जिससे पूरे शहर में पीने के पानी उपलब्ध कराई जाती थी.
⦁ व्यवसायिक प्रतिष्ठान और फैक्ट्रियों से निकलने वाली गंदगी लगातार इस स्वर्णरेखा रेखा नदी में मिल रही है जिससे यह प्रदूषित नाला बन कर रह गया है.
⦁ राजनीतिक रसूख रखने वाले नेता-मंत्री और अधिकारियों ने स्वर्णरेखा नदी पर करोड़ो रुपए खर्च किये लेकिन स्थित जस की तस बनी हुई है.
⦁ स्वर्णरेखा नदी पर करोड़ों रुपए खर्च करके नीदरलैंड की तकनीकी से निखारने का काम भी किया लेकिन यह योजना भी पूरी तरह से फेल हो गई.
⦁ साल 2006 में 60 करोड़ रुपए खर्च कर स्वर्ण रेखा को पक्का कराया गया था जिससे बरसात का पानी जमा होता रहे है. वहीं कम बरसात के चलते पानी जमा नहीं हो पाया लेकिन गंदा पानी इकट्ठा हो गया.

Intro:ग्वालियर- भीषण गर्मी के चलते जलस्त्रोतों पर भी संकट मंडराने लगा है ग्वालियर शहर के बीच से गुजरने बाली रियासत कालीन स्वर्ण रेखा नदी इस समय दम तोड़ती नजर आ रही है आलम यह है कि नदी पानी की जगह शहर का गंदा पानी बह रहा है जो कभी पूरे शहर की प्यास भुजाती थी वह आज खुद एक एक बूद पानी के लिए तरस रही है। बता दे स्वर्ण रेखा नदी सिन्धिया रियासत के समय लंदन की थेम्स नदी की तर्ज पर बनाई गई थी जिससे यह शहर को खूबसूरत बनाने के साथ शहर को पानी पिला सके । यह नदी प्रदेश की पहली ऐसी नदी है जो क्रतिम नदी है । इस नदी में शहर के आसपास बांधो से पानी छोड़ा जाता था इसके बाद इस नदी में शहर को पीने के लिए पानी आता था ।


Body:दो सदियों तक पानी की जरूरत को पूरा करने के साथ साथ भूजल स्तर को नियंत्रण रखने वाली स्वर्णरेखा रेखा नदी की सांसो को धीरे धीरे घोट दिया गया है। इसका कारण यह है कि व्यवसायिक प्रतिष्ठान और फैक्ट्रियों से निकलने वाली गंदगी लगातार इस नदी में घुलती गई और अब यह प्रदूषित नाला बन कर रह गया है। साथ ही सरफेस पक्का करने के बाद स्वर्णरेखा नदी में पानी तो नहीं है सिर्फ नदी के आसपास बने मकानों का और फैक्ट्रियों का गंदा पानी आता है। राजनीतिक रसूख रखने वाले नेता और मंत्री और अधिकारियों ने अपने स्वार्थ की खातिर भविष्य की पीढ़ी को पानी देने वाली स्वर्णरेखा नदी पर करोड़ो रुपए खर्च किये लेकिन स्थित जस की तस बनी हुई है।स्वर्णरेखा नदी पर करोड़ों रुपए खर्च करके नीदरलैंड की तकनीकी से निखारने का काम भी किया लेकिन यह भी पूरी योजना पूरी तरह से फेल हो गई। साथ ही 2006 में 60 करोड़ रुपए खर्च कर स्वर्ण रेखा को पक्का कराया गया। जिससे बरसात का पानी जमा होता रहे है बरसात न होने के कारण पानी नही आया लेकिन गंदा पानी इकट्ठा हो गया ।


Conclusion:बाईट - विवेक नारायण शेजवालकर , सांसद बाईट - कृष्णराव दीक्षित , नेता प्रतिपक्ष निगम बाईट - देव श्रीमाली , बरिष्ट्र पत्रकार
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