ग्वालियर। कहते हैं अगर किसी पर प्यार का रंग चढ़ जाए तो उसे हर रंग फीका नजर आने लगता है. प्यार का एहसास होता ही ऐसा है जिसमें इंसान सब कुछ भूल जाता है. आज के दौर में प्यार के इस एहसास को बयां करने के लिए वैलेंटाइन डे जैसे पर्व गढ़े गए हैं. जब इस तरह की परंपराएं नहीं थीं, तब भी लोग प्यार के इस जादूई एहसास से अछूते नहीं थे.
इतिहास में ऐसी कई प्रेम कहानियां दर्ज हैं जिन्होंने बिना वैलेंटाइन डे के भी मुकम्मल इश्क की ऐसी दास्तां लिखीं जो आज भी याद की जाती हैं. ऐसी ही प्रेम कहानी थी राजा मानसिंह और रानी मृगनयनी की कहानी, जिसकी गवाही देता है ग्वालियर में बना यह गूजरी महल, जिसे राजा मानसिंह ने अपनी गूजरी रानी मृगनयनी के लिए बनवाया था. इस महल के जर्रे-जर्रे में बसी खूबसूरती इस बात की तस्दीक करती है कि राजा मानसिंह अपनी रानी से कितना प्यार करता था.
राजा मानसिंह और मृगनयनी की ये कहानी शुरू होती है ग्वालियर से करीब 50 किलोमीटर दूर बसे राई गांव से, जहां मृगनयनी की बहादुरी देखकर राजा मानसिंह उस पर फ़िदा हो गए. राजा मानसिंह का काफिला जब वहां से गुज़र रहा था तो उसने देखा कि एक बच्चे पर हमला करने जा रहे जंगली भैंसे को मृगनयनी ने एक वार में रोक दिया. जबकि वहां खड़े बहुत से लोगों की भैंसे को रोकने की हिम्मत नहीं हो रही थी.
मृगनयनी की ये बहादुरी देख मानसिंह ने वहीं उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा, जिसे मृगनयनी ने स्वीकार तो किया, लेकिन सशर्त. मृगनयनी ने राजा के सामने तीन शर्तें रखीं जिनमें से पहली शर्त थी कि
पहली शर्त
ग्वालियर में उसे पीने के लिए उसी नदी का पानी मिले जो उसके गांव में बहती है.
दूसरी शर्त
उसके लिए अलग महल का निर्माण कराया जाए.
तीसरी शर्त
वो रणक्षेत्र में हर वक्त राजा के साथ रहेगी.
राजा मानसिंह जो मृगनयनी के प्यार में दीवाने हो चुके थे, उन्होंने उसे अपना बनाने के लिये उसकी तीनों शर्तें मान लीं. राजा ने अपने प्यार को पाने के लिये सत्रहवीं शताब्दी में वो काम किया जो आज तमाम मशीनों के होते हुए भी आसान नहीं. राजा मानसिंह ने मृगनयनी के गांव से ग्वालियर तक पानी के बहाव के विपरीत ऐसी पाइप लाइन बिछाई जो मैदानी इलाके से पहाड़ पर बसे किले तक पानी ले जाती थी.
इसी वजह से मानसिंह ने रानी मृगनयनी जो अपनी जाति की वजह से रानी गूजरी के नाम से भी प्रसिद्ध थी, उसका महल यानी गूजरी महल ग्वालियर के किले के सबसे निचले हिस्से में बनवाया ताकि वहां तक पानी ले जाना आसान रहे. लेकिन, राजा मानसिंह और रानी गूजरी के इस प्यार की दुश्वारियां यहां तक ही सीमित नहीं थीं, उसके गूजर होने की वजह से महल में भी इसका विरोध हुआ.
क्योंकि जातिप्रथा से जकड़े समाज में राजदरबार के लोग इसके लिए राजी न थे कि एक गूजर महिला उनकी रानी बने, लेकिन दुनियावी बंधनों में जो बंध जाए वो प्यार ही क्या. राजा मानसिंह ने इन सारे विरोधों को दरकिनार कर इतिहास के पन्नों में प्यार की वो सुनहरी दास्तान लिख दी, जिसकी मिसाल आज भी दी जाती है.