ग्वालियर। कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है. मध्यप्रदेश में संक्रमण के मामले में ग्वालियर का तीसरा स्थान है. यहां अब तक 16 मरीजों की मौत हो चुकी है, ऐसे में कोरोना काल के समय नगर निगम के सफाई कर्मियों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है. खास बात ये है कि सफाई अभियान से लेकर संक्रमित व्यक्ति की लाश का अंतिम संस्कार तक नगर निगम के कर्मचारी ही कराते हैं. हालांकि इस पूरी कार्रवाई में नोडल अधिकारी एवं इंसीडेंट कमांडर भी मौजूद रहते हैं, लेकिन शव को छूने से लेकर विद्युत शवदाह गृह में ट्रॉली से पहुंचाने तक का काम स्वीपर और नगर निगम के कर्मचारी करते हैं.
शहर में ऐसा कोई भी इलाका ऐसा नहीं बचा है जहां कभी ना कभी कंटेनमेंट जोन नहीं बनाया गया हो. अभी भी शहर में 400 से ज्यादा कंटेनमेंट जोन हैं. सफाईकर्मियों को कंटेनमेंट जोन, हॉस्पिटल, सार्वजनिक पार्क सहित कई जगह सफाई व्यवस्था को अंजाम देना पड़ता है. इसके लिए वो सुबह सेनिटाइजर और मास्क पहनकर घरों से निकलते हैं और ड्यूटी खत्म होने के बाद सबसे पहले अपने कपड़ों को निकाल कर बाहर रखते हैं और नहाने के बाद ही घर में प्रवेश करते हैं. इसके पीछे उनकी सोच यही रहती है कि वो यदि खुद भी संक्रमित हो जाएं तो घर के अन्य लोग सुरक्षित रहें. खास बात ये है कि सफाई कर्मियों में अधिकांश कर्मचारी आउट सोर्स यानी ठेकेदार के द्वारा रखे गए हैं.
लेकिन नगर निगम उन्हें तीन चार महीने से पगार नहीं दे रहा है. कोरोना काल में इतना जोखिम उठाकर ड्यूटी करने वाले इन लोगों की स्थिति पर प्रशासन शायद उतना गंभीर नहीं है. आउटसोर्स कर्मचारियों को सिर्फ 6500 रुपए की पगार मिलती है. वो भी कई महीनों तक उन्हें नसीब नहीं होती. वहीं हाथ में पहनने के लिए जो ग्लब्स दिए जाते हैं, वो प्लास्टिक के रहते हैं और एक बार के इस्तेमाल में ही फट जाते हैं. प्रशासन हालांकि सतर्कता बरतने और सफाई कर्मियों का विशेष ध्यान देने की बात करता है, लेकिन उनकी समस्याओं को लेकर प्रशासन गंभीर नहीं है. आउटसोर्स कर्मचारियों को तो कोरोना वॉरियर्स भी नहीं माना जाता है. इसलिए उन्हें बीमा सहित दूसरी सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है. गनीमत ये है कि अभी तक कोई भी सफाईकर्मी को अस्पताल और किसी मरीज के कारण संक्रमित नहीं हुआ है, इसके पीछे उनके द्वारा बरती गई सतर्कता को पूर्ण वजह माना जा रहा है.