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1857 में क्रांतिकारियों का गढ़ रहा ग्वालियर चंबल अंचल, यही से हुई थी काकोरी कांड में प्रयोग हुए बम की सप्लाई - Independence Day 2022

1857 की जंग-ए-आजादी के समय से ही देश को स्वतंत्र कराने की चिंगारी सुलग रही थी. चंबल के सपूत रामप्रसाद बिस्मिल की शहादत ने इसे भड़का दिया. बिस्मिल के संपर्कों और सिंधिया रियासत में अंग्रेजी प्रशासन का सीधे दखल न होने की वजह से शहर क्रांतिकारियों के लिए महफूज ठिकाना बन गया था. खुद बिस्मिल के आलावा चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरू समेत बंगाल के क्रांतिकारी जतींद्र दास यहां खुफिया तौर पर आते जाते रहे थे. चंद्रशेखर आजाद का तो मुख्य ठिकाना ही ग्वालियर, झांसी व ओरछा बन गए थे. अंग्रेज सरकार की नाक में दम करने की रणनीति ग्वालियर के ठिकानों से ही आजाद ने बनाई थी. इसे अंजाम देने के लिए तय किया गया कि बम ग्वालियर में ही बनाए जाएं, और इनका प्रयोग सशस्त्र क्रांति में किया जाए. Independence Day 2022

Independence Day 2022
काकोरी कांड में फोड़े गए बम
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Published : Aug 14, 2022, 9:59 PM IST

Updated : Aug 14, 2022, 10:24 PM IST

ग्वालियर। देश आजादी के 75 साल पूरे होने पर अमृत महोत्सव मना रहा है. यही वजह है कि इस समय हर घर वाहन और सड़क पर चलने वाले लोगों के हाथों में तिरंगा लहरा रहा है. इस मौके पर आज हम आपको क्रांतिकारियों के गढ़ ग्वालियर चंबल अंचल के बारे में बताएंगे जो कभी 1857 से लेकर अब तक क्रांतिकारियों का गढ़ रहा है. यहां पर वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, बिस्मिल प्रसाद, तात्या टोपे सहित तमाम क्रांतिकारियों की शरण स्थली रहा है. इसी ग्वालियर चंबल अंचल में यह सभी क्रांतिकारी अंग्रेजों के विरुद्ध रणनीति तैयार करते थे. यही कारण है कि ग्वालियर चंबल अंचल को क्रांतिकारियों के की शरण स्थली कहा जाता है.

1857 में क्रांतिकारियों का गढ़ रहा ग्वालियर चंबल अंचल

युवाओं का किया गया था कत्लेआम: आजादी की पहली लड़ाई 1857 में मंगल पांडे से शुरू हुई और ग्वालियर में लक्ष्मी बाई के बलिदान पर समाप्त हुई. लक्ष्मीबाई कालपी से चलकर ग्वालियर आई थी तो निश्चित रूप से यह इलाका पूरी तरीके से क्रांतिकारियों का माना जाता है. रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान हो गया तो उसके बाद अंग्रेजों ने जब दोबारा से आक्रमण किया तो पूरे इलाके में खासतौर पर भिंड, मुरैना जिले में बड़ी संख्या में युवाओं का कत्लेआम किया गया. आंदोलन के प्रति युवाओं का प्रेम घटने की जगह और बढ़ गया. हालात यह हुए कि जब 19वीं शताब्दी में दोबारा से आंदोलन शुरू हुआ तो यह आंदोलन तेजी से गति पकड़ा. क्रांतिकारियों का एक बड़ा केंद्र मुरैना, भिंड और ग्वालियर बन गया. यही वजह है कि 1857 से लेकर जो क्रांतिकारियों की टोली थी वह ग्वालियर-चंबल अंचल में अंग्रेजों के विरुद्ध रणनीति तैयार करती थी.

यहां चलती थी क्रांतिकारी गतिविधियां: इसके पीछे एक भौगोलिक कारण भी है, क्योंकि ग्वालियर में डायरेक्ट अंग्रेजों का शासन नहीं था. यहां सिंधिया रियासत की सरकार थी. आंदोलन चलाने का अधिकार नहीं था. क्योंकि कांग्रेस का गठन नहीं किया गया,अंचल के आसपास आगरा इटावा झांसी उरई इलाके सीधे अंग्रेजो के कब्जे में थे. यहां क्रांतिकारी गतिविधियां चलती थी. इन लोगों को ग्वालियर चंबल अंचल में संरक्षण पाना बहुत आसान था. क्योंकि यहां पर कुछ जंगल और बीहड़ भी थे. शहर में सिंधिया का शासन था. इसलिए क्रांतिकारियों के प्रति जो सिंधिया रियासत का खुफिया तंत्र था. वह मजबूती से कार्रवाई नहीं करता था. इसलिए जो क्रांतिकारी थे वह ग्वालियर में ही अपनी रणनीति तैयार करते थे. यहीं से अंग्रेजो के खिलाफ गतिविधियां चलाते थे.

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ऐसे भेजे जाते थे हथियार और बम: बताया जाता है कि ग्वालियर में क्रांतिकारी दल का गठन किया गया. बाद में ग्वालियर गोवा कॉन्सप्रेसी ग्रुप के नाम से जाना गया. देशभर के क्रांतिकारियों का यहां आना जाना होता था. यहां पर बनने वाले हथियार और बम विभिन्न क्षेत्रों में भेजे जाते थे. बम बनाने का सामान मिठाई के डिब्बे और दूध की बाल्टी में लाया जाता था. मिठाई के डिब्बों में रखकर अन्य स्थानों पर बम भेजे जाते थे. प्रसिद्ध काकोरी कांड डकैती में उपयोग होने वाले हथियार और बम ग्वालियर से ही गए थे.

यहां लगा रहता था क्रांतिकारियों का आना जाना: ग्वालियर से खरीदे गए हथियार क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल अपनी बहन शास्त्री देवी के कपड़ों में छिपाकर शाहजहांपुर तक लाए थे. महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर, भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल सहित तमाम ऐसे क्रांतिकारियों का ग्वालियर में आना जाना होता था. यहीं पर अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनाई जाती थी. इसका सबसे बड़ा कारण ये था कि ग्वालियर रियासत एक ऐसी रियासत थी जिसमें अंग्रेजों का हस्तक्षेप नहीं था.

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ग्वालियर चंबल में था बसेरा: 1857 के आंदोलन में सबसे ज्यादा गतिविधियां और अंग्रेजों के ऊपर किस तरह लड़ना है इसकी रूपरेखा ग्वालियर में ही तय होती थी. वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई, चंद्रशेखर आजाद, बिस्मिल प्रसाद सहित तमाम ऐसे क्रांतिकारी थे जिनका बसेरा ग्वालियर चंबल में था. पंडित राम प्रसाद बिस्मिल मुरैना जिले के बरबाई गांव के रहने वाले थे. अपने साथियों के साथ यही अंग्रेजो के खिलाफ रणनीति तैयार करते थे. इनके साथ चंद्रशेखर आजाद कई बार 1925 तक गोपनीय तरीके से यहां रुके थे. ग्वालियर शहर के जनक गंज में कदम साहब के बारे में बिरहा करते थे. भगत सिंह भी कुछ समय के लिए यहां ठहरे थे.

ग्वालियर। देश आजादी के 75 साल पूरे होने पर अमृत महोत्सव मना रहा है. यही वजह है कि इस समय हर घर वाहन और सड़क पर चलने वाले लोगों के हाथों में तिरंगा लहरा रहा है. इस मौके पर आज हम आपको क्रांतिकारियों के गढ़ ग्वालियर चंबल अंचल के बारे में बताएंगे जो कभी 1857 से लेकर अब तक क्रांतिकारियों का गढ़ रहा है. यहां पर वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, बिस्मिल प्रसाद, तात्या टोपे सहित तमाम क्रांतिकारियों की शरण स्थली रहा है. इसी ग्वालियर चंबल अंचल में यह सभी क्रांतिकारी अंग्रेजों के विरुद्ध रणनीति तैयार करते थे. यही कारण है कि ग्वालियर चंबल अंचल को क्रांतिकारियों के की शरण स्थली कहा जाता है.

1857 में क्रांतिकारियों का गढ़ रहा ग्वालियर चंबल अंचल

युवाओं का किया गया था कत्लेआम: आजादी की पहली लड़ाई 1857 में मंगल पांडे से शुरू हुई और ग्वालियर में लक्ष्मी बाई के बलिदान पर समाप्त हुई. लक्ष्मीबाई कालपी से चलकर ग्वालियर आई थी तो निश्चित रूप से यह इलाका पूरी तरीके से क्रांतिकारियों का माना जाता है. रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान हो गया तो उसके बाद अंग्रेजों ने जब दोबारा से आक्रमण किया तो पूरे इलाके में खासतौर पर भिंड, मुरैना जिले में बड़ी संख्या में युवाओं का कत्लेआम किया गया. आंदोलन के प्रति युवाओं का प्रेम घटने की जगह और बढ़ गया. हालात यह हुए कि जब 19वीं शताब्दी में दोबारा से आंदोलन शुरू हुआ तो यह आंदोलन तेजी से गति पकड़ा. क्रांतिकारियों का एक बड़ा केंद्र मुरैना, भिंड और ग्वालियर बन गया. यही वजह है कि 1857 से लेकर जो क्रांतिकारियों की टोली थी वह ग्वालियर-चंबल अंचल में अंग्रेजों के विरुद्ध रणनीति तैयार करती थी.

यहां चलती थी क्रांतिकारी गतिविधियां: इसके पीछे एक भौगोलिक कारण भी है, क्योंकि ग्वालियर में डायरेक्ट अंग्रेजों का शासन नहीं था. यहां सिंधिया रियासत की सरकार थी. आंदोलन चलाने का अधिकार नहीं था. क्योंकि कांग्रेस का गठन नहीं किया गया,अंचल के आसपास आगरा इटावा झांसी उरई इलाके सीधे अंग्रेजो के कब्जे में थे. यहां क्रांतिकारी गतिविधियां चलती थी. इन लोगों को ग्वालियर चंबल अंचल में संरक्षण पाना बहुत आसान था. क्योंकि यहां पर कुछ जंगल और बीहड़ भी थे. शहर में सिंधिया का शासन था. इसलिए क्रांतिकारियों के प्रति जो सिंधिया रियासत का खुफिया तंत्र था. वह मजबूती से कार्रवाई नहीं करता था. इसलिए जो क्रांतिकारी थे वह ग्वालियर में ही अपनी रणनीति तैयार करते थे. यहीं से अंग्रेजो के खिलाफ गतिविधियां चलाते थे.

Politics over Scindia रानी लक्ष्मीबाई के समाधि स्थल पर ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा झंडा फहराने पर सियासत, कांग्रेस ने उठाये सवाल

ऐसे भेजे जाते थे हथियार और बम: बताया जाता है कि ग्वालियर में क्रांतिकारी दल का गठन किया गया. बाद में ग्वालियर गोवा कॉन्सप्रेसी ग्रुप के नाम से जाना गया. देशभर के क्रांतिकारियों का यहां आना जाना होता था. यहां पर बनने वाले हथियार और बम विभिन्न क्षेत्रों में भेजे जाते थे. बम बनाने का सामान मिठाई के डिब्बे और दूध की बाल्टी में लाया जाता था. मिठाई के डिब्बों में रखकर अन्य स्थानों पर बम भेजे जाते थे. प्रसिद्ध काकोरी कांड डकैती में उपयोग होने वाले हथियार और बम ग्वालियर से ही गए थे.

यहां लगा रहता था क्रांतिकारियों का आना जाना: ग्वालियर से खरीदे गए हथियार क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल अपनी बहन शास्त्री देवी के कपड़ों में छिपाकर शाहजहांपुर तक लाए थे. महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर, भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल सहित तमाम ऐसे क्रांतिकारियों का ग्वालियर में आना जाना होता था. यहीं पर अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनाई जाती थी. इसका सबसे बड़ा कारण ये था कि ग्वालियर रियासत एक ऐसी रियासत थी जिसमें अंग्रेजों का हस्तक्षेप नहीं था.

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ग्वालियर चंबल में था बसेरा: 1857 के आंदोलन में सबसे ज्यादा गतिविधियां और अंग्रेजों के ऊपर किस तरह लड़ना है इसकी रूपरेखा ग्वालियर में ही तय होती थी. वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई, चंद्रशेखर आजाद, बिस्मिल प्रसाद सहित तमाम ऐसे क्रांतिकारी थे जिनका बसेरा ग्वालियर चंबल में था. पंडित राम प्रसाद बिस्मिल मुरैना जिले के बरबाई गांव के रहने वाले थे. अपने साथियों के साथ यही अंग्रेजो के खिलाफ रणनीति तैयार करते थे. इनके साथ चंद्रशेखर आजाद कई बार 1925 तक गोपनीय तरीके से यहां रुके थे. ग्वालियर शहर के जनक गंज में कदम साहब के बारे में बिरहा करते थे. भगत सिंह भी कुछ समय के लिए यहां ठहरे थे.

Last Updated : Aug 14, 2022, 10:24 PM IST
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