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कृषि वैज्ञानिक ने दिए किसानों को टिप्स, खरीफ की फसल में होंगे कारगर

प्रदेश के किसानों ने खरीफ की फसल लगाने की तैयारियां शुरु कर दी है. मानसून के आते ही फसल बुआई की शुरुआत होगी. फिलहाल किसान खेतों की जुताई करने में जुटे हैं. खरीफ फसल से संबंधित जानकारी के लिए ईटीवी भारत ने कृषि वैज्ञानिक डॉ. विजय पराड़कर से बात की जिन्होंने किसानों को कुछ अहम टिप्स दिए.

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डॉ. विजय पराड़कर, कृषि वैज्ञानिक
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Published : Jun 3, 2020, 12:19 PM IST

छिंदवाड़ा। किसानों ने खरीफ फसल की तैयारियां शुरु कर दी है. किसानों ने खेतों में जुताई का काम भी शुरु कर दिया है. ऐसे में किसानों को अपनी नयी फसल के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए और फसल की बंपर पैदावार के कौन से कदम उठाए जाए. इन सभी मुद्दों पर ईटीवी भारत ने वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. विजय पराड़कर से बात की जिन्होंने किसानों को अहम जानकारी दी.

डॉ. विजय पराड़कर, कृषि वैज्ञानिक

खरपतवार से फसल को बचाने के करे गोबर खाद का उपयोग

कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि किसानों के घर में गोबर खाद होती है. लेकिन अधिकतर लोग कच्ची गोबर खाद ही खेतों में डाल देते हैं. जिसकी वजह से खरपतवार अधिक मात्रा में होती है. अगर किसान पका गोबर खाद खेतों में डालें तो खरपतवार की समस्या से ज्यादा नहीं जूझना पड़ेगा.

बीज और खाद का समय पर करें भंडारण

कृषि वैज्ञानिक विजय पराड़कर ने किसानों को सलाह देते हुए कहा कि समय पर ही खाद और बीज का भंडारण सभी किसानों को कर लेना चाहिए. जमीन के हिसाब से किसानों को अलग-अलग बीज की तैयारी भी करना चाहिए. जहां काली मिट्टी वाली जमीन है उसके लिए अधिक समय वाला मक्का और हल्की जमीन में कम उम्र वाला मक्का लगाने की तैयारी करना चाहिए.

मिट्टी का परीक्षण करवा कर करें खाद का उपयोग

अधिकतर एक दूसरे को देखकर लोग खेतों में खाद का उपयोग करते हैं. जबकि खेत में कौन सी खाद लगनी है. इसकी उन्हें जानकारी ही नहीं होती. ऐसे में किसानों को सबसे पहले अपने खेतों की मिट्टी का परीक्षण कराना चाहिए. जहां जिस रासायनिक खाद की जरूरत है उसका उपयोग करना चाहिए. ताकि फसल की सही उपज मिल सके. गलत खाद के इस्तेमाल से जमीन की उर्वरक क्षमता भी खत्म होती है.

डीएपी के साथ पोटास खाद का भी करे उपयोग

डॉ विजय पराड़कर ने बताया कि छिंदवाड़ा जिले में मक्के की फसल बड़े पैमाने पर होती है. अक्सर किसान मक्के के लिए डीएपी खाद का उपयोग ज्यादा करता है. जबकि डीएपी के साथ म्यूरेट आफ पोटास खाद भी जरूर डालना चाहिए. इससे जमीन में पौधों को जकड़ने की क्षमता बरकरार रहती है. डीएपी से पौधों में कलर और जान तो आती ही है लेकिन पौधे बड़े होने के बाद गिरने की समस्या भी नहीं रहती. अगर किसान इन कुछ अहम बातों का ध्यान रखकर अपने फसल की तैयारी करते हैं तो निश्चित ही उन्हें बंपर पैदावार मिलेगी.

छिंदवाड़ा। किसानों ने खरीफ फसल की तैयारियां शुरु कर दी है. किसानों ने खेतों में जुताई का काम भी शुरु कर दिया है. ऐसे में किसानों को अपनी नयी फसल के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए और फसल की बंपर पैदावार के कौन से कदम उठाए जाए. इन सभी मुद्दों पर ईटीवी भारत ने वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. विजय पराड़कर से बात की जिन्होंने किसानों को अहम जानकारी दी.

डॉ. विजय पराड़कर, कृषि वैज्ञानिक

खरपतवार से फसल को बचाने के करे गोबर खाद का उपयोग

कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि किसानों के घर में गोबर खाद होती है. लेकिन अधिकतर लोग कच्ची गोबर खाद ही खेतों में डाल देते हैं. जिसकी वजह से खरपतवार अधिक मात्रा में होती है. अगर किसान पका गोबर खाद खेतों में डालें तो खरपतवार की समस्या से ज्यादा नहीं जूझना पड़ेगा.

बीज और खाद का समय पर करें भंडारण

कृषि वैज्ञानिक विजय पराड़कर ने किसानों को सलाह देते हुए कहा कि समय पर ही खाद और बीज का भंडारण सभी किसानों को कर लेना चाहिए. जमीन के हिसाब से किसानों को अलग-अलग बीज की तैयारी भी करना चाहिए. जहां काली मिट्टी वाली जमीन है उसके लिए अधिक समय वाला मक्का और हल्की जमीन में कम उम्र वाला मक्का लगाने की तैयारी करना चाहिए.

मिट्टी का परीक्षण करवा कर करें खाद का उपयोग

अधिकतर एक दूसरे को देखकर लोग खेतों में खाद का उपयोग करते हैं. जबकि खेत में कौन सी खाद लगनी है. इसकी उन्हें जानकारी ही नहीं होती. ऐसे में किसानों को सबसे पहले अपने खेतों की मिट्टी का परीक्षण कराना चाहिए. जहां जिस रासायनिक खाद की जरूरत है उसका उपयोग करना चाहिए. ताकि फसल की सही उपज मिल सके. गलत खाद के इस्तेमाल से जमीन की उर्वरक क्षमता भी खत्म होती है.

डीएपी के साथ पोटास खाद का भी करे उपयोग

डॉ विजय पराड़कर ने बताया कि छिंदवाड़ा जिले में मक्के की फसल बड़े पैमाने पर होती है. अक्सर किसान मक्के के लिए डीएपी खाद का उपयोग ज्यादा करता है. जबकि डीएपी के साथ म्यूरेट आफ पोटास खाद भी जरूर डालना चाहिए. इससे जमीन में पौधों को जकड़ने की क्षमता बरकरार रहती है. डीएपी से पौधों में कलर और जान तो आती ही है लेकिन पौधे बड़े होने के बाद गिरने की समस्या भी नहीं रहती. अगर किसान इन कुछ अहम बातों का ध्यान रखकर अपने फसल की तैयारी करते हैं तो निश्चित ही उन्हें बंपर पैदावार मिलेगी.

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