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इस दिवाली GO GREEN ! क्या होते हैं ग्रीन पटाखे जिन्हें फोड़ने के बाद उगने लगेंगी सब्जियां

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Published : Nov 13, 2020, 5:28 PM IST

Updated : Oct 28, 2021, 3:45 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने जिन 'ग्रीन पटाखों' की बात की है वो आखिर होते क्या हैं और पारंपरिक पटाखों से वे अलग कैसे होते हैं. छिंदवाड़ा के पारडसिंगा गांव के कुछ युवाओं ने खराब कागज की सहायता से फल, सब्जी और फूलों के बीज वाले पटाखे और मिठाइयां बनाई हैं. देखिए ये स्पेशल रिपोर्ट.

Green Diwali Campaign
ग्रीन दिवाली मुहिम

छिंदवाड़ा। बढ़ते पर्यावरण और ध्वनि प्रदूषण के चलते एनजीटी ने पटाखे जलाने पर कई जगह सख्ती बरतते हुए रोक लगाई है. ताकि पटाखों से होने वाले नुकसान से बचा जा सके, लेकिन छिंदवाड़ा के पारडसिंगा गांव में युवाओं और महिलाओं की टोली ने मिलकर ऐसे पटाखे तैयार किए हैं.जिनके फटने पर आवाज और धुएं की जगह फल और सब्जियों के बीज निकलेंगे. और पटाखों को नाम दिया है सीड बम.

इस दिवाली GO GREEN

ग्रीन पटाखे क्या होते हैं ?

  • ग्रीन पटाखे दिखने, जलाने और आवाज में सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं, लेकिन इनसे प्रदूषण कम होता है.
  • इन पटाखों से जो हानिकारक गैसें निकलेंगी, वो कम निकलेंगी. कहा जा सकता है लगभग 40 से 50 फीसदी तक कम. ये कम हानिकारक पटाखे होंगे.
  • सामान्य पटाखों के जलाने से भारी मात्रा में नाइट्रोजन और सल्फर गैस निकलती है, लेकिन उनके शोध का लक्ष्य इनकी मात्रा को कम करना था.

फटता नहीं ये बम

कई बार देखा गया कि बच्चे पटाखे फोड़ते नहीं बल्कि इसे देखकर ही खुश हो जाते हैं और कुछ देर उसे खेलने के बाद फेंक देते हैं. ऐसे में पटाखे बड़े काम के हैं. इनको बनाया ही इसीलिए रखा गया है कि बच्चे पटाखों का मजा भी ले सकें और फिर जब जमीन पर डाल दें तो सब्जियां उग जाएं. जिससे सब्जियां भी खाने को मिल सकें.


जमीन में मिलने पर उगेंगी सब्जियां

कोई भी छिंदवाड़ा के पारडसिंगा गांव में बने इन पटाखों को देखकर नहीं कहेगा की इसमें कोई बारूद नहीं है. देखने में यह हूबहू बाजार में बिकने वाले आम पटाखों के जैसे ही होते हैं. लेकिन प्रकृति का नष्ट करने वाले बारूद नहीं बल्कि फल सब्जी फूल आदि के बीज होते हैं.

22 तरह के बीजों से बने पटाखे

पर्यावरण को बचाने की मुहिम छेड़ने वाली युवाओं में से एक नूतन ने बताया कि पटाखे देखना और फोड़ना सभी को अच्छा लगता है, लेकिन इससे पर्यावरण के साथ ही जानवरों को भी परेशानी होती है. इसी कारण उन्होंने ऐसे पटाखे बनाए. जिसे देखकर लोग आनंद ले सकें. नूतन ने बताया कि उन्होंने कुल 22 बीजों को पटाखों के अंदर भरा है ताकि लोगों को जानकारी भी मिल सके कि सब्जियां और फल के बीज कैसे होते हैं, साथ ही प्रकृति को भी बचाया जा सके.

हाथों की मशीन का हो रहा उपयोग

छिंदवाड़ा के युवाओं की इस पहल से न केवल प्रकृति की रक्षा हो रही है. बल्कि यहां कई लोगों को रोजगार भी मिलता है. यहां सारे काम छोटी मशानों से किए जाते हैं, जिससे वर्क फोर्स की जरूरत भी होती है. खास बात तो यह की ये सारी मशीनें कहीं से मंगाई नहीं गई. बल्कि घर में ही जरूरी संसाधन जुटा कर तैयार की गई है.

हर पटाखों में लिखा है सब्जियों और बीजों के नाम

सिर्फ पटाखों को रंग और रूप ही नहीं दिया गया है, बल्कि लोगों को बीज और सब्जियों की सही जानकारी मिल सके इसके लिए हर एक पटाखे में बीज डाले गए हैं. उनपर उसका नाम भी दिया गया है. ताकि लोगों को खेतों या घरों के गमलों में लगाने के लिए जानकारी मिल सके.

ग्रामीण महिलाओं को मिल रहा रोजगार

सीड बम बनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा काम बिना मशीन के किया जाता है, जिससे कि स्थानीय महिलाओं को रोजगार मिल सके. साथ ही बिजली के बचाव के लिए ज्यादातर काम हाथ से ही किया जाता है. यहां कपास उगाने से लेकर सामग्रियों के निर्माण में करीब 50 महिलाओं को रोजगार भी दिया गया है.

और क्या बनाते हैं ये युवा

प्रकृति के प्रति जागरुक छिंदवाड़ा जिले के पारडसिंगा गांव के ये युवा ऐसा नहीं है कि मात्र बम ही बनाने का काम करते हैं. ये समय-समय पर कई चीजों का निर्माण कर चुके हैं. ये हर त्योहार के हिसाब से कुछ न कुछ बनाते रहते हैं. सीड बम से पहले इन्होंने राखी के सीजन में राखियां, शादियों के सीजन कार्ड भी बनाए हैं.

छिंदवाड़ा। बढ़ते पर्यावरण और ध्वनि प्रदूषण के चलते एनजीटी ने पटाखे जलाने पर कई जगह सख्ती बरतते हुए रोक लगाई है. ताकि पटाखों से होने वाले नुकसान से बचा जा सके, लेकिन छिंदवाड़ा के पारडसिंगा गांव में युवाओं और महिलाओं की टोली ने मिलकर ऐसे पटाखे तैयार किए हैं.जिनके फटने पर आवाज और धुएं की जगह फल और सब्जियों के बीज निकलेंगे. और पटाखों को नाम दिया है सीड बम.

इस दिवाली GO GREEN

ग्रीन पटाखे क्या होते हैं ?

  • ग्रीन पटाखे दिखने, जलाने और आवाज में सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं, लेकिन इनसे प्रदूषण कम होता है.
  • इन पटाखों से जो हानिकारक गैसें निकलेंगी, वो कम निकलेंगी. कहा जा सकता है लगभग 40 से 50 फीसदी तक कम. ये कम हानिकारक पटाखे होंगे.
  • सामान्य पटाखों के जलाने से भारी मात्रा में नाइट्रोजन और सल्फर गैस निकलती है, लेकिन उनके शोध का लक्ष्य इनकी मात्रा को कम करना था.

फटता नहीं ये बम

कई बार देखा गया कि बच्चे पटाखे फोड़ते नहीं बल्कि इसे देखकर ही खुश हो जाते हैं और कुछ देर उसे खेलने के बाद फेंक देते हैं. ऐसे में पटाखे बड़े काम के हैं. इनको बनाया ही इसीलिए रखा गया है कि बच्चे पटाखों का मजा भी ले सकें और फिर जब जमीन पर डाल दें तो सब्जियां उग जाएं. जिससे सब्जियां भी खाने को मिल सकें.


जमीन में मिलने पर उगेंगी सब्जियां

कोई भी छिंदवाड़ा के पारडसिंगा गांव में बने इन पटाखों को देखकर नहीं कहेगा की इसमें कोई बारूद नहीं है. देखने में यह हूबहू बाजार में बिकने वाले आम पटाखों के जैसे ही होते हैं. लेकिन प्रकृति का नष्ट करने वाले बारूद नहीं बल्कि फल सब्जी फूल आदि के बीज होते हैं.

22 तरह के बीजों से बने पटाखे

पर्यावरण को बचाने की मुहिम छेड़ने वाली युवाओं में से एक नूतन ने बताया कि पटाखे देखना और फोड़ना सभी को अच्छा लगता है, लेकिन इससे पर्यावरण के साथ ही जानवरों को भी परेशानी होती है. इसी कारण उन्होंने ऐसे पटाखे बनाए. जिसे देखकर लोग आनंद ले सकें. नूतन ने बताया कि उन्होंने कुल 22 बीजों को पटाखों के अंदर भरा है ताकि लोगों को जानकारी भी मिल सके कि सब्जियां और फल के बीज कैसे होते हैं, साथ ही प्रकृति को भी बचाया जा सके.

हाथों की मशीन का हो रहा उपयोग

छिंदवाड़ा के युवाओं की इस पहल से न केवल प्रकृति की रक्षा हो रही है. बल्कि यहां कई लोगों को रोजगार भी मिलता है. यहां सारे काम छोटी मशानों से किए जाते हैं, जिससे वर्क फोर्स की जरूरत भी होती है. खास बात तो यह की ये सारी मशीनें कहीं से मंगाई नहीं गई. बल्कि घर में ही जरूरी संसाधन जुटा कर तैयार की गई है.

हर पटाखों में लिखा है सब्जियों और बीजों के नाम

सिर्फ पटाखों को रंग और रूप ही नहीं दिया गया है, बल्कि लोगों को बीज और सब्जियों की सही जानकारी मिल सके इसके लिए हर एक पटाखे में बीज डाले गए हैं. उनपर उसका नाम भी दिया गया है. ताकि लोगों को खेतों या घरों के गमलों में लगाने के लिए जानकारी मिल सके.

ग्रामीण महिलाओं को मिल रहा रोजगार

सीड बम बनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा काम बिना मशीन के किया जाता है, जिससे कि स्थानीय महिलाओं को रोजगार मिल सके. साथ ही बिजली के बचाव के लिए ज्यादातर काम हाथ से ही किया जाता है. यहां कपास उगाने से लेकर सामग्रियों के निर्माण में करीब 50 महिलाओं को रोजगार भी दिया गया है.

और क्या बनाते हैं ये युवा

प्रकृति के प्रति जागरुक छिंदवाड़ा जिले के पारडसिंगा गांव के ये युवा ऐसा नहीं है कि मात्र बम ही बनाने का काम करते हैं. ये समय-समय पर कई चीजों का निर्माण कर चुके हैं. ये हर त्योहार के हिसाब से कुछ न कुछ बनाते रहते हैं. सीड बम से पहले इन्होंने राखी के सीजन में राखियां, शादियों के सीजन कार्ड भी बनाए हैं.

Last Updated : Oct 28, 2021, 3:45 PM IST
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