छिंदवाड़ा। लगातार फैल रहे कोरोना संक्रमण को रोकने और बालविवाह (Child Marriage) पर लगाम लगाने के लिए प्रशासन ने नई पहल की है. इसके तहत अब शादी में होने वाले आयोजनों की अनुमती अनुविभागीय अधिकारी के कार्यालय से दी जा रही, साथ ही कार्ड में वर-वधू के बालिग होने को बताना भी जरूरी होगा, इसके तहत कार्ड में 'बालिग हैं वर-वधू' प्रिंट किया जाएगा.
शादी कार्ड पर लिखना होगा बालिग हैं वर-वधू
बाल विवाह रोकने के लिए मध्यप्रदेश शासन ने नया तरीका निकाला है. अब शादी के लिए कार्ड प्रिंट होने वाले कार्ड में वर-वधू बालिग है लिखना होगा. बाल विवाह की संभावनाओं को रोकने के लिए लाडो अभियान चलाया जा रहा है, जिसके अंतर्गत जिले के प्रिंटिंग प्रेस के प्रबंधक और संचालकों को निर्देश दिए गए हैं कि कार्ड प्रिंटिंग के दौरान पत्रिका में स्पष्ट रूप से उल्लेख करना होगा वर-वधू बालिग है.
अनुविभागीय अधिकारी के कार्यालय से दी जा रही परमिशन
एसडीएम अतुल सिंह ने बताया कि अनुविभागीय अधिकारी कार्यालय से विवाह समारोह की परमिशन दी जा रही है. समारोह में कोविड-19 गाइडलाइनों का पालन करना अनिवार्य है. अगर ऐसा नहीं किया गया तो सख्त कार्रवाई की जाएगी.
नियमों का उल्लंघन होने पर होगी सख्त कार्रवाई
कोविड-19 के नियमों का उल्लंघन करने पर लॉन संचालकों पर भी होगी सख्त कार्रवाई, अधिकारी ने बताया कि धारा 144, 188 और आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत सख्त कार्रवाई की जाएगी.
एमपी में बाल विवाह की स्थिति
एमपी में सरकार के लिए बाल विवाह को रोकना एक चुनौती है. ये चुनौती और भी बढ़ती नजर आ रही है. चाइल्डलाइन इंडिया, एनजीओ ने अपनी रिपोर्ट में ये खुलासा किया है कि...
- मध्यप्रदेश में नवंबर 2019 और मार्च 2020 के बीच 46 बाल विवाह हुए.
- आंकड़ा अप्रैल से लेकर जून तक में बढ़कर 117 तक पहुंच गया.
- जिसका कारण है कि कोरोना महामारी के बाद लॉकडाउन के चलते लोगों के रोजगार में कमी और गरीबी.
बाल विवाह को लेकर कब-कब हुए बदलाव
- देश में सबसे पहले 12 साल तय हुई थी लड़कियों की शादी की उम्र.
- इसे ब्रिटिश शासनकाल में लागू किया गया. ये एक्ट 1891 में पारित हुआ था.
- साल 1929 में 'चाइल्ड मैरिज रीस्ट्रेंट एक्ट' पास हुआ. इसे शारदा एक्ट कहा गया.
- 1927 में इसे राय साहिब हरबिलास सारडा ने इंट्रोड्यूस किया था. जो 1929 में पास हुआ.
- एक्ट में पहले लड़की की शादी के लिए न्यूनतम आयु 14 वर्ष रखी गई और लड़कों के लिए 18 वर्ष.
- साल 2006 में भारत सरकार ने शारदा एक्ट को रिप्लेस करते हुए नया एक्ट पास किया.
- बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 नाम से यह कानून अभी भी चल रहा है.
मध्य प्रदेश में बाल विवाह Vs कानून
मध्यप्रदेश देश में पहला राज्य है, जिसने बाल विवाह रोकने के लिए 2013 में लाडो अभियान शुरु किया. लाडो अभियान का मुख्य उद्देश्य, जनसमुदाय की मानसिकता में सकारात्मक बदलाव के साथ बाल विवाह जैसी कुरीति को सामुदायिक सहभागिता से समाप्त करना है. अभियान के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए जिला, खण्ड, स्कूल, ग्राम स्तरीय एंव सेवा प्रदाताओं की कार्यशाला का आयोजन कर उपस्थित प्रतिभागियों को अभियान के प्रति संवेदनशील बनाना है. यह अभियान बाल विवाह प्रतिशेध अधिनियम -2006 के अनुसार 18 वर्ष से कम आयु की बालिकाओं एवं 21 वर्ष से कम आयु के बालकों के बाल विवाह कानून के प्रभावी क्रियान्वयन में महती भूमिका निभाता है. एमपी को 2014 में लोक प्रशासन के उत्कृष्ठ कार्य के लिए ”प्रधानमंत्री पुरस्कार“ से सम्मनित किया गया.
एमपी में कहां होते हैं सबसे ज्यादा बाल विवाह
2018 में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट को आधार माने तो 8 जिलों में सबसे ज्यादा बाल विवाह होते हैं. ये जिले हैं...
- नंबर 1 पर है झाबुआ. यहां बाल विवाह की दर 31.2 प्रतिशत है.
- शाजापुर दूसरे नंबर पर है जहां बाल विवाद की दर 26.7 प्रतिशत है.
- राजगढ़ 26.1 प्रतिशत के साथ तीसरे नंबर पर है.
- मंदसौर 25.2 फीसद.
- टीकमगढ़ 25 प्रतिशत.
- शिवपुरी 19.7 फीसदी
- उज्जैन 19.1 प्रतिशत
- रतलाम 19 फीसदी के साथ आठवें पायदान पर है.
बाल विवाह के सबसे ज्यादा मामले ग्रामीण इलाकों से सामने आते हैं. बाल विवाह के 40% मामलो में परिवारों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं पाई गई. हैरान करने वाली बात यह है कि मध्य प्रदेश से बाल विवाह के मामलों में लड़कियों की तुलना में लड़कों का बाल विवाह का रझान ज्यादा पाया जाता है.