भोपाल। गर्मी शुरु होते ही मध्य प्रदेश में भीषण जलसंकट की स्थिति हर साल बन जाती है. बूंद-बूंद पानी के लिए लोगों का संघर्ष शुरु हो जाता है. बुंदेलखंड, ग्वालियर-चंबल और विंध्य अंचल हर साल भीषण जलसंकट के दौर से गुजरते हैं. तो आदिवासी बाहुल्य जिलों में भी पानी की किल्लत इन दिनों आम हो जाती है.
विशेषज्ञों का कहना है अगले चार दशक में मध्य प्रदेश के कई हिस्से पानी की कमी के चलते रेगिस्तान की तरह बंजर हो जाएंगे. राज्य के कई हिस्सों में अब भी पलायन का बड़ा कारण पानी की किल्लत है. गर्मियों में भू-जल अपने न्यूनतम स्तर से भी नीचे चला जाता है. बड़े पैमाने पर पलायन मध्य प्रदेश में निकट भविष्य में भी रुकता नजर नहीं आता.
यूं तो एमपी में 21 नदियां बहती हैं. लेकिन इनका बड़ा फायदा राज्य को नहीं मिलता क्योंकि अधिकतर नदियों में कुछ महीनों को छोड़ दें तो पानी ही नहीं बचता. 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 80 से अधिक बड़ी जल परियोजनाएं सूखे की शिकार थीं. जबकि ग्रामीण इलाकों में 40,000 से अधिक हैंड पंप पूरी तरह से सूख चुके थे.
बुंदेलखंड में बरकरार है जलसंकट
बुंदेलखंड के अधिकांश हिस्से जिसमें सागर, पन्ना, दमोह, छतरपुर और टीकमगढ़ जिले शामिल हैं, वहां लोग पानी के भीषण संकट से जूझ रहे हैं. पन्ना जिले के 50 से अधिक गांव पानी की पहुंच के बिना निर्जन से हैं. इन इलाकों में हैंडपंप और तालाब जैसे पानी के स्रोत भीषण गर्मी से सूख जाते हैं. इन क्षेत्रों में पिछले कुछ हफ्तों से 45 और 47 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज हुआ है. यही नहीं पश्चिमी मध्य प्रदेश में भी पारा अपने पूरे शबाब पर है नतीजा पानी की भारी किल्लत. राजधानी भोपाल के आस-पास के हिस्सों में भी पानी की कमी एक बड़ी समस्या है. पानी की समस्या का आलम यह है कि प्रदेश के 100 से ज्यादा शहर जल संकट के दौर से गुजर रहे हैं.
करोड़ों योजनाए अब तक नहीं हुई शुरु
प्रदेश में जल संकट से उबरने के लिए कई परियोजनाएं शुरु की गई लेकिन आज तक पानी की समस्या दूर नहीं हुई. हर गुजरते साल के साथ स्थिति बद-से-बदतर होती जा रही है. न तो कोई नई जल संरचना आकार ले पाईं और करोड़ों खर्च करने के बाद न ही नदियों का बहाव ठीक हुआ. उज्जैन में नर्मदा का पानी 571 करोड़ रुपये की लागत लाया गया था. लेकिन मोक्षदियिनी क्षिप्रा को कोई बड़ा फायदा नहीं मिला. हर साल बारिश के बाद स्थिति खराब हो जाती है.
दो दशक में जल संकट और गहराया
सीएम शिवराज के 15 साल के शासन और दिग्विजय सिंह के 10 साल के कार्यकाल में कई योजनाएं आई. लेकिन नदियों का हाल बेहाल ही रहा. बुंदेलखंड अंचल के लिए पानी की समस्या को दूर करने के लिए 16 सौ करोड़ का विशेष पैकेज दिया गया था. लेकिन बुंदेलखंड आज भी सूखा है. पैकेज में जमकर घोटाले के आरोप भी लगाए गए थे. कुछ इसी तरह15 सालों तक जन अभियान परिषद ने जल स्रोतों, नदियों पर कैंपेन चलाया. जिसमें खुलासा किया कि राज्य की 330 से अधिक नदियां खो गईं. लेकिन समस्या दशकों बाद भी जस की तस ही बनी है.