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इस इमारत में मौजूद नवाबी विरासत, जहां सोने चांदी के धागों से चिड़ियां बनाती थीं अपना घोंसला

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Published : Sep 8, 2020, 11:06 PM IST

भोपाल शहर में बनी ऐतिहासिक इमारत गोलघर को अब पर्यटक स्थान मानकर सहेजा गया है. यह इमारत बेहद खूबसूरत थी जो भोपाल के नवाब और बेगम दोनों को बेहद पसंद थी. देखिए भोपाल के गोलघर पर यह स्पेशल रिपोर्ट....

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भोपाल का गोलघर

भोपाल। भोपाल यूं तो एक प्राचीन और ऐतिहासिक शहर है. जहां के जर्रे-जर्रे में इतिहास की कहानियां दर्ज हैं. नावाबी शासन का गवाह रहा यह खूबसूरत शहर अपनी अपनी इमारतों के लिए भी मशहूर रहा है. जिन्हें देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. पुराने भोपाल के शाहजहांनाबाद इलाके में बना गोलघर भी ऐसी ही एक धरोहर है. जिसे नवाबी शासनकाल में बनवाया गया था. जिसे भोपाल की विरासत मानकर सहेजा गया है.

भोपाल का गोलघर

भोपाल के गोलघर की यह इमारत नवाबी शासन में गुलशन-ए-आलम के नाम से जानी जाती थी. इसका निर्माण नवाब शाहजहां बेगम द्वारा सन 1868 से 1901 के मध्य में करवाया गया था. यह भवन गोलाकार भवन दो दर्जन दरवाजों से युक्त है, इसके गोल भाग में सीढ़ियां हैं जो ऊपर की ओर जाती हैं. ऊपरी कक्ष में गुम्बद है, स्तंभ गोल व दरवाजे अलंकृत हैं. गुम्बद में बैंगनी, पीला, नांरगी, लाल, भूरा व हरे रंगों के उपयोग से चित्रकारी की गई हैं. जो देखते ही बनती है.

शाहजहां बेगम का कार्यालय था गोलघर

सबसे पहले गोलघर में शाहजहां बेगम का कार्यालय हुआ करता था. वे इस कार्यालय में महिलाओं को नक्काशी और जरदोजी का काम सिखाती थी. शाहजहां बेगम का यह वही दौर था जब भोपाल के प्रसिद्ध बटुए ट्रेंड में आए. बेगम इसमें महिलाओं की समस्याएं भी सुनती थीं और गरीबों को दान पुण्य भी यहीं से किया करती थीं.

चिड़िया बनाती थीं घोंसला

बाद में गोलघर का इस्तेमाल चिड़ियाघर के रूप में हुआ. जहां इसमें विभिन्न प्रजातियों के पक्षी रखे गए थे. कहा जाता है कि बेगम को दिल्ली दरबार में शामिल होना था. जहां क्वीन विक्टोरिया से बेगम को मुलाकात करनी थी. तो उन्होंने गोलघर के सभी खिड़की-दरवाजे बंद करवाकर यहां पक्षी रखे और गोलघर में सोने और चांदी के धागे रखे जाते थे जिन्हें चुन-चुनकर चिड़िया अपना घोंसला बनाती थी.

नवाब के लिए गोलघर में होता था संगीत का आयोजन

नवाब शाहजहां के लिए गोलघर में संगीत का आयोजन किया जाता था. क्योंकि यह एक ऐसा भवन था जो चारों तरफ से फैला हुआ था. इसलिए नवाब के संगीत के सभी साधन यहां मौजदू रहते थे. नवाब हर शाम यहां आकर संगीत सुना करते थे. जबकि बेगम भी उनके साथ संगीत में शरीक होती थीं. क्योंकि यह महल दोनों को बेहद पसंद था.

सहेजी गईं ऐतिहासिक इमारत

नवाबकाल खत्म होने के बाद इसे शासकीय रेलवे पुलिस के कार्यालय के रूप में इसका इस्तेमाल हुआ. इन दिनों इसे एक संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है यह ऐतिहासिक गोलघर इतिहास के छात्रों के लिए है बहुत ही उपयोगी माना जाता है. जिसे एक ऐतिहासिक इमारत के रूप में सहेजा गया है.

भोपाल। भोपाल यूं तो एक प्राचीन और ऐतिहासिक शहर है. जहां के जर्रे-जर्रे में इतिहास की कहानियां दर्ज हैं. नावाबी शासन का गवाह रहा यह खूबसूरत शहर अपनी अपनी इमारतों के लिए भी मशहूर रहा है. जिन्हें देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. पुराने भोपाल के शाहजहांनाबाद इलाके में बना गोलघर भी ऐसी ही एक धरोहर है. जिसे नवाबी शासनकाल में बनवाया गया था. जिसे भोपाल की विरासत मानकर सहेजा गया है.

भोपाल का गोलघर

भोपाल के गोलघर की यह इमारत नवाबी शासन में गुलशन-ए-आलम के नाम से जानी जाती थी. इसका निर्माण नवाब शाहजहां बेगम द्वारा सन 1868 से 1901 के मध्य में करवाया गया था. यह भवन गोलाकार भवन दो दर्जन दरवाजों से युक्त है, इसके गोल भाग में सीढ़ियां हैं जो ऊपर की ओर जाती हैं. ऊपरी कक्ष में गुम्बद है, स्तंभ गोल व दरवाजे अलंकृत हैं. गुम्बद में बैंगनी, पीला, नांरगी, लाल, भूरा व हरे रंगों के उपयोग से चित्रकारी की गई हैं. जो देखते ही बनती है.

शाहजहां बेगम का कार्यालय था गोलघर

सबसे पहले गोलघर में शाहजहां बेगम का कार्यालय हुआ करता था. वे इस कार्यालय में महिलाओं को नक्काशी और जरदोजी का काम सिखाती थी. शाहजहां बेगम का यह वही दौर था जब भोपाल के प्रसिद्ध बटुए ट्रेंड में आए. बेगम इसमें महिलाओं की समस्याएं भी सुनती थीं और गरीबों को दान पुण्य भी यहीं से किया करती थीं.

चिड़िया बनाती थीं घोंसला

बाद में गोलघर का इस्तेमाल चिड़ियाघर के रूप में हुआ. जहां इसमें विभिन्न प्रजातियों के पक्षी रखे गए थे. कहा जाता है कि बेगम को दिल्ली दरबार में शामिल होना था. जहां क्वीन विक्टोरिया से बेगम को मुलाकात करनी थी. तो उन्होंने गोलघर के सभी खिड़की-दरवाजे बंद करवाकर यहां पक्षी रखे और गोलघर में सोने और चांदी के धागे रखे जाते थे जिन्हें चुन-चुनकर चिड़िया अपना घोंसला बनाती थी.

नवाब के लिए गोलघर में होता था संगीत का आयोजन

नवाब शाहजहां के लिए गोलघर में संगीत का आयोजन किया जाता था. क्योंकि यह एक ऐसा भवन था जो चारों तरफ से फैला हुआ था. इसलिए नवाब के संगीत के सभी साधन यहां मौजदू रहते थे. नवाब हर शाम यहां आकर संगीत सुना करते थे. जबकि बेगम भी उनके साथ संगीत में शरीक होती थीं. क्योंकि यह महल दोनों को बेहद पसंद था.

सहेजी गईं ऐतिहासिक इमारत

नवाबकाल खत्म होने के बाद इसे शासकीय रेलवे पुलिस के कार्यालय के रूप में इसका इस्तेमाल हुआ. इन दिनों इसे एक संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है यह ऐतिहासिक गोलघर इतिहास के छात्रों के लिए है बहुत ही उपयोगी माना जाता है. जिसे एक ऐतिहासिक इमारत के रूप में सहेजा गया है.

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