भिंड। ज़िला मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर दूर गोहद अंचल के ग्राम खरौआ के पास शीतला माता का 800 साल पुराना मंदिर है. इस मंदिर का इतिहास और मान्यताएं अद्भुत हैं. कहा जाता है नवरात्र में मातारानी अपने सातों स्वरूपों में भक्तों को दर्शन देने मंदिर पहुंचती हैं. उनके आने से मंदिर में दरार भी आ जाती है. यहां माता अपने भक्तों को दर्शन देकर अपना आशीर्वाद देती हैं. भक्तों का मानना है जो भी सच्चे मन से माता से मन्नत मांगता है मां अपनी कृपा उसपर बरसाती हैं. (navratri special news bhind)
शीतला माता का मनमोहक स्वरूप : मंदिर के महंत श्री श्री 1008 श्री केशव दास जी महाराज के मुताबिक इस मंदिर में विराजमान मां शीतला देवी का स्वरूप मनमोहक है. करीब 800 वर्ष पूर्व खरौआ गांव के रहने वाले विजय सिंह ने यहां पर प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कराई थी. महाराज ने बताया कि शीतला माता के 7 स्वरूप हैं. उन्हीं में से एक स्वरूप यहां विराजमान है. शुरुआत में यह मठ छोटा सा था. लेकिन भक्तों के साथ स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों ने मंदिर का विस्तार कराया है. (Sheetla Mata Temple Kharoa Bhind)
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वर्षों से जारी है अखंड रामधुन का पाठ : इस ऐतिहासिक मंदिर की मान्यता के चलते बीते कई सालों से यहं रामधुन का अलाप जारी है. मंदिर में हफ्ते के सातों दिन 24 घंटे भक्त ढोल मंजीरे के साथ रामधुन गाते हैं. इस कार्य के लिए गोहद के कई गांव बांटे गए हैं. अखंड रामधुन का पाठ करने के लिए यहां के लोगों का समय भी निर्धारित किया गया है.
चरवाहे को हुए थे माता के साक्षात दर्शन : मंदिर से जुड़ी कई रोचक कहानियां हैं. माता की महिमा के बारे में बताते हुए महंत ने बताया कि, कई वर्ष पहले एक चरवाहा शाम को यहां आता था. उस दौरान यहां जंगल जैसा इलाका था. वह प्रतिदिन आने के बाद माता की प्रतिमा पर दूध चढ़ाता था. एक रात उसकी गाय बछड़े को जन्म दे रही थी. उसी दौरान जंगली जानवरों ने गाय को काटने की कोशिश की. चरवाहा वहां सो रहा था. अचानक उसे किसी की आवाज आई. उसने चारों ओर देखा तो कोई नहीं था. (Chaitra Navratri 2022)
भाव विभोर हुआ था चरवाहा : चरवाहे को जब दोबारा आवाज़ आई तो उसे पता चला की यह तो मां शीतला हैं. जो स्वयं उसके सामने प्रकट हो गईं हैं. उन्हें देखते ही चरवाहा भाव विभोर हो गया. माता ने उससे कहा गाय की मदद करो. चरवाहा दौड़कर गया और गाय की रक्षा की. उसके बाद काफी दिनों तक माता उसे दर्शन देती रहीं. उसके द्वारा लाया दूध भी पीती थीं. ये उसके दूध चढ़ाने का फल था जो माता उस पर प्रसन्न हो गयी थीं.
माता से जुड़ी एक और कहानी है. जिसमें एक भक्त ने माता के आगे अपनी जीभ काटकर चढ़ा दी थी. लोगों ने उसे माता के मठ में बंद कर दिया. बाद में माता कि कृपा से शाम 4 बजे तक उसकी जीभ फिर से जुड़ गई. ऐसे ही चमत्कारों को लेकर न जाने कितने किस्से मशहूर हैं.
नवरात्रि में फट जाती है मंदिर की दीवार: बताया जाता है कि हर नवरात्रि में मंदिर के पीछे की दीवार फट जाती है. इसकी कहानी बताते हुए महंत ने बताया कि, उस चरवाहे की भक्ति से माता बहुत प्रसन्न थीं. एक दिन चरवाहे ने उत्तराखंड में माता के एक मंदिर पर जाने की इच्छा व्यक्त की थी. तब शीतला माता ने कहा था कि वह भी साथ में चलेंगी. इस पर चरवाहे ने माता से यहां का मंदिर सूना हो की बात कही तो माता ने उससे कहा था कि वो दोनों जगह पर रहेंगी. वह नवरात्रों में दर्शन देने आएंगी. उसी दौरान माता मंदिर के पीछे की दीवार तोड़ते हुए चली गयीं थीं.
खिड़की बनाने से नहीं पड़ा कोई फर्क : अष्टमी के दिन शीतला माता वापस यहीं लौट आतीं है. अपने भक्त को दिए गए वचन का पालन करती हैं. अष्टमी को मेला लगने से पहले वापस आ जाती हैं. माता के आने जाने से हर नवरात्रि में पीछे की दीवार में दरार आ जाती है. हर बार दीवार की मरम्मत कराई जाती है. एक बार तो पीछे की दीवार पर खिड़की भी बनाई गई थी लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा.
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मंदिर में लगता है ऐतिहासिक मेला: माता शीतला के मंदिर पर 400 वर्षों से विशाल मेला लगता है. मेला अष्टमी और नवमी के दिन लगता है. नवमी के दिन ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. लाखों की संख्या में आसपास के ज़िलों से भक्त पहुंचते हैं. मंदिर के महंत बताते हैं कि बचपन से लेकर अब तक मेले का वैसा ही मौहाल है. मेले में भक्तों द्वारा प्रसादी और पेयजल की व्यवस्था की जाती है. पिछले दो साल से कोरोना गाइड लाइन की वजह से मेला नहीं लगा था. इस बार कोई पाबंदी नहीं होने के कारण विशाल मेला लगने की संभावना जताई जा रही है.
मंदिर में पेयजल संकट
मंदिर की इतनी मान्यता होने के बाद भी पेयजल संकट है. महाराज केशवदास जी का कहना है. इस क्षेत्र में पानी की कमी है. पेयजल की कोई व्यवस्था नहीं है. मंत्री, विधायक, अधिकारी समय-समय पर दर्शन करने आते हैं. लेकिन पेयजल की समस्या का निराकरण कराने के लिए कोई नहीं सोचता है. मंदिर से 2 किलोमीटर की दूरी पर नहर है. फिर भी मंदिर कमेटी पेयजल के लिए टैंकरों पर निर्भर हैं. टैंकर से कुंड में पानी भरा जाता है. (Drinking water crisis in Sheetla Mata temple bhind)