ग्वालियर। सादगी,शुचिता और मर्यादा की मिसाल रहीं ग्वालियर के रॉयल सिंधिया राजघराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया का राजपथ से जनपथ तक का सफर काफी दिलचस्प रहा है. देश और मध्य प्रदेश के सियासत में भी एक अहम मुकाम हासिल कर चुकी राजमाता विजयाराजे सिंधिया की निजी जिंदगी काफी उथल पुथल भरी रही. पारिवारिक जीवन में लिए उन कुछ फैसले मिसाल बने तो कुछ विवाद की वजह भी रहे. ऐसा ही एक फैसला था उनका अपने हाथ से लिखी गई वसीयत में यह लिखना की मेरे बेटे को मेरा अंतिम संस्कार करने का अधिकार नहीं होगा.
तनाव भरे रहे मां-बेटे के संबंध
सिंधिया राजघराने का जितना सार्वजनिक प्रभाव था, उससे उलट उनकी पारिवारिक स्थितियां रहीं. शुरूआती तौर में जब तक माधवराव अपने फैसले लेने के लिए स्वतंत्र नहीं थे उनके व्यक्तित्व पर राजमाधा विजयाराजे सिंधिया और रॉयल फैमिली का साया ही हावी रहा. कुछ समय बाद जब माधवराव अपनी मर्जी से अपने राजनीतिक फैसले लेने लगे तब मां और बेटे के संबंधों के बीच सबकुछ पहले की तरह सामान्य नहीं रहा. माधवराव अपनी अलग राजनीतिक पहचान बनाना चाहते थे और राजमाता विजयाराजे सिंधिया को यह बात पसंद नहीं आई.
जब राजमाता की इंदिरा से ठन गईं
राजमाता विजयाराजे सिंधिया पति जीवाजी राव सिंधिया के निधन के बाद नेहरू के प्रभाव के चलते कांग्रेस में शामिल हुईं थी. लेकिन उनके बाद प्रधानमंत्री बनीं इंदिरा गांधी ने राजघरानों को खत्म कर दिया और उनकी संपत्ति को सार्वजनिक घोषित कर उन्हें केंद्र से मिलने वाली 'प्रिवी पर्स' के आधीन कर दिया. इस बात से विजयाराजे बेहद नाराज हुईं और कांग्रेस छोड़कर जनसंघ में शामिल हो गईं. उन्होंने बेटे माधवराव को भी जनसंघ से जोड़ा. माधवराव कुछ समय तक तो जनसंघ में रहे, लेकिन बाद में वे कांग्रेस से जुड़ गए.
खुलकर सामने आया मां -बेटे के बीच का तनाव
माधवराव के कांग्रेस में शामिल होने के फैसले से राजमाता विजयाराजे सिंधिया काफी नाराज हुईं. इस दौरान उनकी तरफ से कई ऐसी बातें सामने आईं जो चर्चा का विषय बनीं, जिनमें विजयाराजे का वह बयान जब उन्होंने कहा था कि इमरजेंसी के दौरान मेरे बेटे के सामने ही पुलिस ने मुझे लाठियों से पीटा. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उनके बेटे ने ही उन्हें गिरफ्तार करवाया था . इस बयानबाजी के बाद 'महल' की दीवारें राजदार नहीं रहीं. रॉयल पैलेस के भीतर की बातें बाहर आने लगीं. मां और बेटे के बीच के तनाव भरे रिश्ते अब सार्वजनिक हो चुके थे. परिवार के लोगों में राजनीतिक प्रतिद्वंदता बढ़ चुकी थी और परिवार के बाकी लोगों के बीच के आपसी रिश्ते भी खत्म होने लगे थे. माधवराव की बहनें यशोधरा राजे और वसुंधरा राजे अपनी मां के साथ थीं. वे आज भी उसी बीजेपी में शामिल हैं जिसकी संस्थापक सदस्य राजमाता विजयाराजे सिंधिया थीं.
बेटे से मांगा था महल में रहने का किराया
बेटे माधवराव के फैसलों से बेहद खफा राजमाता ने अपने बेटे से ही ग्वालियर के जयविलास पैलेस महल में रहने का किराया मांग लिया था. हालांकि ये महज 1 रुपया ही तय किया गया था, लेकिन उनके इस फैसले ने मां-बेटे के संबंधों के बीच की खटास को और बढ़ा दिया था.
माधवराव से नाराजगी के बाद लिखी वसीयत
इमरजेंसी के दौरान राजमाता विजयाराजे सिंधिया को गिरफ्तार कर दिल्ली ले जाया गया. यहां उन्हें तिहाड़ जेल में रखा गया. वे इस सब के लिए कहीं न कहीं अपने बेटे और कांग्रेस सदस्य माधवराव की भी जिम्मेदार मानती थीं. जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने खुद को और ज्यादा मजबूती से प्रदेश और देश की राजनीति के लिए तैयार किया. इसी दौरान उन्होंने अपने हाथों से एक वसीयत भी लिखी जो काफी चर्चित रही. हालांकि इस वसीयत में उन्होंने राजघराने की संपत्ति का कोई बंटवारा नहीं किया था, लेकिन कुछ ऐसा लिखा था जो उससे भी ज्यादा चर्चित था.
एकलौते पुत्र को नहीं दिया मुखाग्नि देने का अधिकार
ग्वालियर राजघराने की राजमाता रहीं विजयाराजे सिंधिया की वसीयत ने सभी को चौंका दिया. 1985 में लिखी अपनी वसीयत में उन्होंने अपने एकलौते बेटे माधवराज सिंधिया को मरने के बाद उन्हें मुखाग्नि देने के अधिकार से वंचित कर दिया था. अपने हाथ से लिखी वसीयत में उन्होंने लिखा था कि 'बेटा मेरा अंतिम संस्कार नहीं करेगा'. हालांकि साल 2001 में जब विजयाराजे सिंधिया का निधन हुआ तो उसके बाद उन्हें मुखाग्नि माधवराव सिंधिया ने ही दी थी. राजमाता विजयाराजे बेटे माधवराव से इतनी नाराज थीं उन्होंने विजयाराजे सिंधिया ट्रस्ट का अध्यक्ष माधवराव को न बनाकर अपने विश्वस्त और मराठा सरदार रहे संभाजी राव आंग्रे को बना दिया. हालांकि बाद में 1999 में उनकी एक और वसीयत सामने आई थी. इस वसीयत को लेकर संभाजी राव आंग्रे और सिंधिया परिवार के बीच का मामला कोर्ट में है.