भोपाल। 37 साल पहले यूनियन कार्बाईड कंपनी के कारखाने ने वो जहर उगला था, जिसके जख्म अभी तक हरे हैं. दुनिया इसे भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जानती है. कंपनी के परिसर में जहरीला मलबा अभी तक ज्यों का त्यों है. ये जहरीला कचरा पास में बने तालाब में जमा किया जाता था . भोपाल के जेपी नगर मे यूनियन कार्बाइड का परिसर लगा हुआ है. सालों पहले इसका निर्माण कारखाना प्रबंधन ने करवाया था. (poisonous ponds of bhopal) कंपनी के प्रबंधकों ने 1970 में यहां गड्ढे खुदवाए थे. जिनमें हजारों टन जहरीले रसायन और कारखाने से निकले अपशिष्ट दबाए गए.
जहरीले तालाब में सिंघाड़े की खेती
भोपाल के इस जहरीले तालाब में प्रशासन की रोक के बावजूद सिंघाड़े की खेती हो रही है. चोरी छिपे मछली पालन भी हो रहा है. तालाब में हजारों टन जहरीला कचरा अभी भी है. फिर भी यहां सिंघाड़े की खेती हो रही है. प्रशासन ने कुछ लोगों के खिलाफ (story of bhopal gas tragedy) कार्रवाई भी की थी. लेकिन कुछ समय बाद फिर से यहां सिंघाड़े की खेती होने लगी.
दुनिया का सबसे जहरील कचरा है यहां
स्थानीय लोगों ने बताया कि यहां कुछ बोर्ड लगाए गए थे. जिनमें बताया गया था कि यह जहरीला तालाब है. लेकिन कुछ लोग नहीं माने. चंद रुपयों के लिए जहरीले तलाब में खेती कर रहे हैं. ना जाने यहां के सिंघाड़े कितने लोगों की सेहत से खिलवाड़ कर रहे हैं. वैज्ञानिक रिपोर्ट के मुताबिक यूनियन कार्बाइड की 32 एकड़ जमीन पर बने जहरीले तालाब में 1.7 टन जहरीला कीचड़ मौजूद है . विश्व में पाए जाने वाले 12 स्थाई कार्बोनिक पोल्यूटेंट में से 6 पीओपी हैं, (worlds most poisonous pollutants in bhopal ) जो यहां के भूजल में मौजूद हैं.
MP में अब 'पुरूष' बनेगी महिला कॉन्सटेबल, जानिए फीमेल से मेल बनने के पीछे का चौकाने वाला मामला
क्या हैं ये जहरीले तालाब
1974 से 1984 के बीच 14 एकड़ भू-भाग पर तीन सोलर वाष्पीकरण तालाबों का निर्माण कराया गया था. इन तालाबों को अत्यंत जहरीले कचरे के निराकरण के लिए बनाया गया था. इसलिए स्थानीय लोग इन्हें जहरीले तालाब कहते हैं. इसमें नीचे प्लास्टिक की एक मोटी लाइनिंग बिछाई गई थी. इन तालाबों को बनाने के पीछे मकसद था कि रसायनिक कचरे को फेंका जाए. जिससे वो गर्मियों में अपने आप वाष्पीकरण के द्वारा खत्म हो जाए. बताया जाता है कि फैक्ट्री के अंदर भी लगभग 21 अन्य जगहों पर ऐसे जहरीले रसायनों को दबाया गया है. माना जाता है कि यहां पर कई टन मिथाइल आइसोसाइनेट फेंका गया है.