भोपाल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनजातीय गौरव दिवस के कार्यक्रम में शामिल हुए और लगभग 4 घंटे भोपाल में रहे. पीएम ने मंच से कई योजनाओं और घोषणाओं को लागू किया. इस दौरान पीएम पूरी तरह आदिवासियों के रंग में रंगे नजर आए. कार्यक्रम तो आदिवासियों के जननायक बिरसा मुंडा की जयंती का था, लेकिन पीएम के इस दौरे से बीजेपी ने मध्य प्रदेश में अपने मिशन 2023 का एक तरह शंखनाद कर दिया है.
मोदी और शिवराज के चेहरे पर ही लड़ा जाएगा चुनाव!
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव में अभी 2 साल बाकी हैं, लेकिन 2018 में महज कुछ सीटों से सत्ता से बाहर हो जाने वाली बीजेपी इस बार पिछली बार जैसा कुछ भी नहीं चाहती. इसी बात पर फोकस करते हुए पार्टी ने मिशन 2023 के लिए जमीनी तैयारी शुरू कर दी है. पार्टी आदिवासियों के बीच पीएम मोदी के चेहरे की फेस वेल्यू और आदिवासियों के हित में चलाई जा रहीं केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं के जरिए अपनी सियासी जमीन को और मजबूत कर लेना चाहती है. 2018 में पूर्ण बहुमत से महज 7 सीट दूर रह गई बीजेपी जानती है कि उसका खेल आदिवासी बहुल सीटों पर ही बिगड़ा था. प्रदेश में आदिवासी समुदाय का एक बड़ा वोट बैंक है जो 40 से ज्यादा सीटों पर सीधा असर रखता है जबकि 84 सीटों पर हार-जीत तय करने में अहम भूमिका निभाता है. यही वजह है कि सीएम शिवराज सिंह की सरकार ने इस वोट बैंक फिर से अपने पाले में करने के लिए राजधानी भोपाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस मेगा शो के आयोजन के जरिए बीजेपी को आदिवासियों का हितैषी साबित करने की कोशिश की है.
आदिवासियों की कमान से चलेगा 2023 का तीर
जनजातीय सम्मेलन में 2 लाख आदिवासियों के शामिल होने का दावा किया गया. इनमें से सबसे ज्यादा मालवा-निमाड़ और महाकौशल से लगभग डेढ़ लाख आदिवासियों को सम्मेलन में शामिल करने के लिए भोपाल लाया गया. क्योंकि 2018 के चुनाव में बीजेपी को सीटों का सबसे ज्यादा नुकसान इन्हीं क्षेत्रों में हुआ था. हालांकि की 2019 में सत्ता में किसी तरह वापसी कर लेने के बाद हाल ही में हुए उपचुनाव में पार्टी ने आदिवासी सीट जोबट और पृथ्वीपुर कांग्रेस से छीनी, जबकि खंडवा लोकसभा सीट अपने पास कायम रखी. इन आदिवासी इलाकों में मिली बढ़त को शिवराज सरकार 2023 तक और बढ़ाना चाहती है ताकि इस बार कोई चूक न हो जाए. मध्य प्रदेश में आदिवासियों की आबादी करीब 23 फीसदी है जिनमें विभिन्न जनजातियां शामिल हैं.
-47 सीटें एसटी वर्ग के लिए विधानसभा में आरक्षित हैं
- प्रदेश में 2 करोड़ से ज्यादा आदिवासी आबादी है.
- इनमें 60 लाख भील-भिलाला
- 51 लाख से ज्यादा गौंड व गौंड समुदाय से संबंधित अन्य जातियां हैं.
2018 में सत्ता से...कुछ दूर रह गई थी बीजेपी
- मध्य प्रदेश में करीब 23% के करीब आदिवासी आबादी है. प्रदेश विधानसभा की 230 में से 47 सीटें इस ST वर्ग के लिए आरक्षित हैं.
- इनके अलावा अलग-अलग जिलों में 84 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां आदिवासी जीत और हार तय करते हैं.
- 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इन आदिवासी बहुल 84 में से 34 सीट पर ही जीत हासिल की थी. जबकि 2013 के चुनाव में उसे 59 सीटें मिलीं थी.
- मतलब साफ है 2013 के मुकाबले 2018 में पार्टी को आदिवासी बहुल इलाकों में 25 सीटों का नुकसान हुआ था.
- यही वजह थी बीजेपी प्रदेश में एक बार फिर से अपनी सरकार बनाने से 7 सीट पीछे रह गई थी. भाजपा को सरकार बनाने के लिए बहुमत (116 सीटें) से 7 सीटें कम मिली थीं.
- पार्टी को आदिवासियों का साथ नहीं मिला और भाजपा सत्ता में वापसी नहीं कर पाई. 2018 में कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस ने लंबे समय बाद प्रदेश की सत्ता में वापसी की थी. यही वजह है कि 2023 से पहले पार्टी का पूरा फोकस आदिवासी और ओबीसी वर्ग पर है. जिसे 27 फीसदी आरक्षण दिए जाने की लड़ाई पार्टी कोर्ट में लड़ रही है. बीजेपी यह मानकर चल रही है कि आदिवासी और ओबीसी वोट बैंक पार्टी के साथ जुड़कर एक बार फिर प्रदेश की सत्ता में उसकी वापसी करा सकता है.
-पार्टी के रणनीतिकार यह मानते हैं कि 2023 विधानसभा चुनाव में बीजेपी की प्रदेश सरकार में वापसी होने पर 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों के नतीजे भी पहले से बेहतर हो सकते हैं. इसलिए बीजेपी बड़े पैमाने पर जनजातीय सम्मेलन का आयोजन कर रही है और पीएम नरेंद्र मोदी भी पार्टी के सियासी मकसद को साधने के लिए सम्मेलन में शिरकत कर रहे हैं. पीएम यहां आदिवासी समुदाय के लिए कई बड़ी घोषणाएं करेंगे.
2018 में बदल गया था सत्ता का समीकरण
- 2003 के विधानसभा चुनाव में st के लिए आरक्षित 41 सीटों में से बीजेपी ने 37 सीटें हासिल की थी जबकि कांग्रेस को 2 सीटें ही मिलीं थी. इसी दौरान नई बनीं पार्टी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने भी 2 सीटों पर कब्जा जमाया था.
- इससे पहले 1998 तक आदिवासी सीटों पर कांग्रेस का खासा प्रभाव माना जाता था.
- 2008 के चुनाव में st के लिए रिजर्व सीट 41 से बढ़कर 47 हो गई थी. जिसमें बीजेपी ने 29 सीटें और कांग्रेस ने 17 सीटों पर जीत हासिल की थी.
- 2013 के विधानसभा चुनावों में 47 सीटों में से बीजेपी को 31 जबकि कांग्रेस को 15 सीटें मिलीं थी.
- 2018 के चुनाव नतीजों से लगा कि आदिवासियों का बीजेपी से मोहभंग हो रहा है, क्योंकि 2018 के इलेक्शन में पांसा पलट चुका था. st की 47 सीटों में से बीजेपी केवल 16 सीटें जीत सकी जबकि कांग्रेस ने 30 सीटें हासिल की और एक सीट निर्दलीय के खाते में गई.
पीएम ने लागू की कई योजनाएं, वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन का उद्घाटन, रेलवे ट्रेक का लोकार्पण
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनजातीय गौरव दिवस पर मप्र सरकार की आदिवासियों के क्ल्याण से जुड़ी कई योजनाओं का लागू किया. इसके अलावा भोपाल को रानी कमलापति के नाम से बने वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन की सौगात दी. इन्दौर उज्जैन के बीच मेमू ट्रेन को हरी झंड़ी दिखाने के साथ ही 245 करोड़ रुपये से तैयार हुए उज्जैन-फतेहाबाद- इंदौर ब्रॉडगेज रेलवे ट्रैक लोकार्पण भी किया. आदिवासी समुदाय के लिए 'राशन आपके ग्राम' योजना की शुरुआत करते हुए राशन पहुंचाने वाले वाहनों की चाबी आदिवासी युवाओं सौंपी और योजना को लागू किया. 30 लाख परिवारों को नल से जल मिलना शुरू होने की योजना. आदिवासी क्षेत्रों में प्राकृतिक संपदा से मिलने वाले राजस्व का एक हिस्सा उसी क्षेत्र के विकास में खर्च किए जाने के साथ ही 50 हजार करोड़ रुपये की राशि अब तक इस योजना के हिस्से में दिए जाने का जिक्र भी किया.