उमरिया। रंगो का त्यौहार यानि होली नजदीक है. होली में अगर पलाश, परसा, केंसुकिया और टेसू की फूलों के रंग मिल जाए तो होली और रंगीन हो जाती है. यह प्रकृति का वह अनमोल तोहफा है जिसे करीब से देखने की ख्वाहिश हर किसी की होती है. पलाश के फूलों का जिक्र साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में किया हैं. होली के दौरान गाए जाने वाले लोक गीतों में भी पलाश या टेसू का जिक्र मिलता है .
हर्बल फूलों की खूबसूरती उनके रंगो से है
भारत में पलाश का फूल हर जगह मिल जाता. कम ऊंचाई के पेड़ों पर एक दूसरे से गुथे हुए अर्ध चंद्राकर का सुर्ख केसरिया के फूल लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते है. सालों पहले उमरिया के आदिवासी अंचल में होली बड़े चाव के साथ खेली जाती थी. लेकिन प्राकृतिक रंगों की जगह का अब हानिकारक आर्सेनिक और लेड से शुमार रंगों का इस्तेमाल होने लगा है. यह ऐसे रंग होते हैं, अगर यह आपके चेहरे पर लग जाएं या मुंह में चला जाए तो यह काफी नुकसानदायक हो सकता है. लेकिन हर्बल प्रोडक्ट नुकसादायक नहीं होता है. इसी हर्बल प्रोडक्ट को स्व सहायता समूह की महिलाएं तैयार कर रही हैं.
हर्बल फूले के फायदे अनेक
पलाश के पेड़ पर अध्ययन कर चुके प्रोफेसर डॉ एमएन स्वामी बताते हैं कि पलास के फूल के अनगिनत फायदे हैं. इसे ब्रम्ह वृक्ष भी कहा जाता है.इसके कई औषधीय गुण हैं.पलाश के फूल ही नहीं बल्कि इसके पत्ते, टहनी,फली,जड़ें तक का विशेष आर्युवेदिक महत्व है.आयुर्वेद विज्ञान के अनुसार रंग बनाने के अलावा इस के फूलों को पीसकर चेहरे पर लगाने से चमक बढ़ती है.
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कलेक्टर की पहल से मिलेगा रोजगार
उमरिया कलेक्टर का कहना है कि अगर सबकुछ ठीक रहा तो फूलों से बने रंग ही स्व सहायता समूहों की आमदनी का जरिया बनेगा. ग्राम हड़हा की सहायता समूह की अध्यक्ष लक्ष्मी कोरी बताती हैं कि ग्रामीण आजीविका मिशन के माध्यम से हमें पलाश के फूलों से रंग बनाने का काम कर रहे हैं.
कोरोना महामारी में मददगार साबित
वैश्विक महामारी कोरोना का संक्रमण एक बार फिर प्रदेश के साथ-साथ उमरिया को अपनी जद में ले रहा है. जिला प्रशासन ने होली का त्योहार घर में रहकर मनाने की अपील की है .ऐसे में पलाश के फूलों की होली रंगों के त्यौहार में चार चांद लगाने का काम करेगी.