भोपाल। एक लोकसभा और 3 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों पूरी तरह तैयार हैं. दोनों ही दलों ने अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है. दोनों ही पार्टियां जातीय गणित के सहारे उपचुनाव में अपनी ताकत दिखाना चाहती हैं. कांग्रेस जहां आदिवासियों में अपनी पैठ बनाए रखना चाहती है वहीं बीजेपी ने ओबीसी को प्रमुखता से आगे किया है. पार्टी ने सामान्य सीटों पर भी ओबीसी उम्मीदवार को टिकिट दिया है. उपचुनावों में दोनों ही दल अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं. स्थिति करो या मरो की बनी हुई है. कांग्रेस इन सीटों को जीत कर यह दिखाना चाहती है कि जनता का विश्वास उस पर लौट रहा है तो बीजेपी यह साबित करना चाहती है कि उसकी सरकार बेहतर काम कर रही है और जनता का भरोसा उसपर बना हुआ है. कुल मिलाकर सत्ता का सेमीफाइनल कहे जा रहे यह उपचुनाव दोनों ही पार्टियों के लिए लिटमस टेस्ट साबित होने जा रहे हैं.
11 विधानसभाओं को प्रभावित करेगा उपचुनाव
- उपचुनाव भले ही 1 लोकसभा और 3 विधानसभा सीटों पर है, लेकिन इससे 11 विधानसभा सीटें प्रभावित होंगी.
- खंडवा लोकसभा में 8 विधानसभा सीट शामिल हैं. इस तरह विधानसभा सीटों की बात करें तो यहां पर 11 सीटों का गणित है. जिस पर दोनों पार्टियों की नजर है, यही वजह है कि यहां से 2023 की तस्वीर काफी हद तक साफ हो सकती है.
- खंडवा लोकसभा की 8 विधानसभा सीट पर तकरीबन 20 लाख मतदाता हैं. जिनमें sc-st का प्रतिशत 38 तो वही ओबीसी 26% और सामान्य 20% से अधिक और 15% से ज्यादा अल्पसंख्यक वोटर्स हैं.
- बीजेपी ने यहां ओबीसी का कार्ड खेला तो कांग्रेस का कैंडिडेट जरनल कैटगरी से है.
- खंडवा लोकसभा में 8 विधानसभा मांधाता, बुरहानपुर ,बड़वाह ,बागली, पंधाना, नेपानगर ,भीकनगांव और खण्डवा.
- इनमें बागली ,पंधाना, भीकनगांव एसटी और खंडवा एससी सीट है. कुल मिलाकर आदिवासी बहुल क्षेत्र है.
बागली
बागली विधानसभा में 60% से ऊपर आदिवासी वोटर है जबकि सामान्य का प्रतिशत 12 है. अन्य जातियों के साथ एससी और ओबीसी वोट करीब 25 प्रतिशत. फिलहाल इस सीट से बीजेपी के पहाड़ सिंह विधायक हैं.
पंधाना
यहाँ भी बीजेपी काबिज है, राम दांगौरे उनके विधायक हैं. यहां भील समाज के 50 हज़ार वोटर्स और अन्य आदिवासी करीब 75 हजार, sc 40 हज़ार हैं. गुर्जर भी बड़ी संख्या में हैं बीते 3 चुनावों में यहां बीजेपी को जीत मिली है. कांग्रेस यहां 1998 में जीती थी.
भीकनगांव
यह सीट भी आदिवासी बहुल सीट है. इस सीट पर 5 बार कांग्रेस और 5 बार बीजेपी को जीत मिली है. यहां पर आदिवासी वोटर्स 50% से ज्यादा हैं.
खण्डवा
ये एससी सीट है. खंडवा दो बार से बीजेपी के खाते में जा रही है, यहां पर दलित वोटर्स की संख्या ज्यादा है. ओबीसी और सामान्य का प्रतिशत 28 के करीब है. खंडवा लोकसभा की 8 सीटों में से बीजेपी 5 , कांग्रेस 2 और 1 सीट निर्दलीय के पास है. इसके अलावा रैगांव (बीजेपी), पृथ्वीपुर और जोबट (कांग्रेस) के पास हैं.
बीजेपी obc और कांग्रेस st पर डाल रही हैं डोरे
बीजेपी उपचुनाव में ओबीसी दलित और आदिवासी वर्ग को साधने की कोशिश कर रही है. बीते दिनों में पार्टी ने ओबीसी, आदिवासी और दलितों के लिए अलग-अलग कार्यक्रम और योजनाओं की घोषणा भी की है. खंडवा लोकसभा में यूं तो sc-st से तकरीबन पौने आठ लाख के करीब वोटर्स हैं , लेकिन यहां आदिवासी वोटर्स निर्णायक भूमिका में हैं. यही वजह है कि हाल ही में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी जबलपुर पहुंचे और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी 15 नवंबर जनजाति दिवस को धूमधाम से मनाए जाने और इस दिन छुट्टी घोषित करने का ऐलान कर चुके हैं.
कमलनाथ भी आदिवासियों के बीच जाएंगे
कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी सीटों पर खासी बढ़त हासिल की थी. यही वजह है कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ फिर आदिवासियों के बीच जाकर उनका दिल जीतने की कोशिश करेंगे. इसके लिए उनका कार्यक्रम भी तैयार कर लिया गया है. कांग्रेस इन सीटों को जीतने में पूरा जोर लगाना चाहती है उसके नेता भी दावा कर रहे हैं कि पूरी पार्टी एकजुट है और हम उपचुनाव में जरूर जीतेंगे.
बीजेपी ने जिस तरह से कैंडिडेट का ऐलान किया है उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि पार्टी ओबीसी कार्ड के भरोसे ज्यादा है और आदिवासियों को अपने पक्ष में करने के लिए जोर लगा रही है. कुल मिलाकर 2 नवंबर को घोषित होने वाले उपचुनाव के नतीजे दोनों पार्टियों के लिए 2023 का ट्रेलर होंगे.