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2 हजार करोड़ खर्च करने के बाद भी एमपी नहीं सुधर रहा बाल मत्युदर का आंकड़ा, प्रति हजार में से 46 बच्चे नहीं मना पाते अपना पहला जन्मदिन

सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी प्रदेश में शिशु मृत्यु दर की स्थिति में (Madhya Pradesh shows infant mortality rate is high) बहुत ज्यादा सुधार नहीं आ रहा है. यह हालात तब हैं जब सरकार हर साल प्रदेश में मातृ और शिशु मृत्यु दर में सुधार के लिए अलग-अलग योजनाओं में करीबन 2 हजार करोड़ रुपए खर्च कर रही है

infant mortality rate high in mp
एमपी में बाल मृत्युदर दूसरे राज्यों से अधिक
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Published : Mar 24, 2022, 9:36 PM IST

भोपाल। सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी प्रदेश में शिशु मृत्यु दर की स्थिति में (Madhya Pradesh shows infant mortality rate is high) बहुत ज्यादा सुधार नहीं आ रहा है. यह हालात तब हैं जब सरकार हर साल प्रदेश में मातृ और शिशु मृत्यु दर में सुधार के लिए अलग-अलग योजनाओं में करीबन 2 हजार करोड़ रुपए खर्च कर रही है. प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चैहान भी इसे प्रदेश के माथे का दाग बता चुके हैं. बावजूद इसके स्थिति सुधरती नहीं दिख रही है. एक आंकड़े के मुताबिक प्रदेश में जन्म लेने वाले प्रति हजार बच्चों में से 46 बच्चे अपना पहला जन्मदिन भी नहीं मना पाते हैं.

क्या कहती है सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम की रिपोर्ट
जनगणना निदेशालय की सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में प्रदेश की आईएमआर (infant mortality rate) यानी शिशु मृत्यु दर 46 प्रति हजार है, जबकि साल 2018 में यह 48 प्रति हजार थी. इसका मतलब आज भी प्रदेश में जन्म लेने वाले एक हजार बच्चों में से 46 बच्चे अपना पहला जन्म दिन भी नहीं मना पाते, हालांकि पिछले आंकड़ों के मुताबिक इसमें 2 अंका का सुधार हुआ है, लेकिन यह अब भी देश में सबसे ज्यादा है.

यह है प्रदेश की स्थिति
जनगणना निदेशालय की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में आईएमआर के मामले में मध्यप्रदेश देश में टाॅप पर है. प्रदेश की शिशु मृत्यु दर/हजार पर 46 है. जबकि इस मामले में पूर्वोत्तर के राज्य मिजोरम और नागालैंड की स्थिति देश के बड़े राज्यों से कई गुना बेहतर है. इन दोनों राज्यों में शिशु मृत्यु दर देश में सबसे कम है. यानी यहां जन्म लेने वाले एक हजार बच्चों में से सिर्फ 3 बच्चे ही एक साल की उम्र पूरी नहीं कर पाते.
-मध्यप्रदेश में प्रति हजार में 46, उत्तर प्रदेश में 41, छत्तीसगढ़ में 40, राजस्थान में 35, बिहार में 29, गुजरात में शिशु मृत्यु दर आईएमआर 25 है.
- मध्यप्रदेश में साल 2018 के मुताबिक 2019 में शिशु मृत्यु दर के आंकड़ों में 2 अंकों का सुधार हुआ है. 2018 में यह 48 थी.
- प्रदेश में त्वरित नवजात मृत्यु दर साल 2019 में 25 है, जबकि 2018 में यह 26 थी.
- प्रदेश में शिशु मृत्यु दर ही नहीं, बल्कि मातृ मृत्युदर के आंकड़ों में भी बहुत ज्यादा सुधार नहीं आया है.

- प्रदेश में हर साल एक लाख गर्भवती महिलाओं में से 163 महिलाओं की मौत हो जाती है.

17 विभागों में चल रहीं बच्चों से जुड़ी योजनाएं
मध्य प्रदेश में बाल और मातृ मत्यू दर के ये आंकड़े तब हैं जब सरकार नवजात बच्चों और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य पर हर साल करीबन 2200 करोड़ रुपए खर्च करती है.स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चैधरी के मुताबिक इस दिशा में स्थिति सुधारने के लिए सरकार लगातार काम कर रही है. पिछले दो सालों में इसको लेकर काफी काम किया गया है. स्वास्थ्य मंत्री दावा करते हैं कि इस मौजूदा रिपोट में 2019 के आंकड़े दिए गए हैं जबकि आने वाले समय में इसमें काफी सुधार दिखाई देगा. हालांकि स्वास्थ्य मंत्री मानते हैं कि ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं और बेहतर पोषण की व्यवस्था की अभी कमी है जिससे नवजात बच्चों और गर्भवती महिलाओं दोनों के स्वास्थ्य पर बुरा असर दिखाई देता है. इसे भी जल्द ही सुधार लिया जाएगा.

कांग्रेस का आरोप खुद के पोषण में लगी हुई है सरकार
पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक कमलेश्वर पटेल ने प्रदेश में बाल मृत्यू दर के आंकड़ों को लेकर सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने प्रदेश सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा है कि प्रदेश में आंगनबाड़ियो और दूसरी संस्थाओं की हालत खराब है. बच्चों को मिड डे मील का लाभ नहीं मिल पा रहा. गरीब और गर्भवती माताओं के पोषण की कोई व्यवस्था नहीं है. यही वजह है कि प्रदेश में एक साल के भीतर ही दम तोड़ देने वाले और कुपोषित बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. उन्होंने आरोप लगाया कि प्रदेश सरकार सिर्फ खुद के पोषण में लगी हुई है इसका इस कुपोषण को दूर करने का कोई इरादा भी नजर नहीं आता. इस मामले में राजनीति तो जमकर हो रही है, लेकिन कोई भी राजनीतिक दल यह स्वीकार्य करने को तैयार नहीं है कि बाल मृत्यू दर के आंकड़े प्रदेश को शर्मसार करने वाले हैं.

भोपाल। सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी प्रदेश में शिशु मृत्यु दर की स्थिति में (Madhya Pradesh shows infant mortality rate is high) बहुत ज्यादा सुधार नहीं आ रहा है. यह हालात तब हैं जब सरकार हर साल प्रदेश में मातृ और शिशु मृत्यु दर में सुधार के लिए अलग-अलग योजनाओं में करीबन 2 हजार करोड़ रुपए खर्च कर रही है. प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चैहान भी इसे प्रदेश के माथे का दाग बता चुके हैं. बावजूद इसके स्थिति सुधरती नहीं दिख रही है. एक आंकड़े के मुताबिक प्रदेश में जन्म लेने वाले प्रति हजार बच्चों में से 46 बच्चे अपना पहला जन्मदिन भी नहीं मना पाते हैं.

क्या कहती है सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम की रिपोर्ट
जनगणना निदेशालय की सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में प्रदेश की आईएमआर (infant mortality rate) यानी शिशु मृत्यु दर 46 प्रति हजार है, जबकि साल 2018 में यह 48 प्रति हजार थी. इसका मतलब आज भी प्रदेश में जन्म लेने वाले एक हजार बच्चों में से 46 बच्चे अपना पहला जन्म दिन भी नहीं मना पाते, हालांकि पिछले आंकड़ों के मुताबिक इसमें 2 अंका का सुधार हुआ है, लेकिन यह अब भी देश में सबसे ज्यादा है.

यह है प्रदेश की स्थिति
जनगणना निदेशालय की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में आईएमआर के मामले में मध्यप्रदेश देश में टाॅप पर है. प्रदेश की शिशु मृत्यु दर/हजार पर 46 है. जबकि इस मामले में पूर्वोत्तर के राज्य मिजोरम और नागालैंड की स्थिति देश के बड़े राज्यों से कई गुना बेहतर है. इन दोनों राज्यों में शिशु मृत्यु दर देश में सबसे कम है. यानी यहां जन्म लेने वाले एक हजार बच्चों में से सिर्फ 3 बच्चे ही एक साल की उम्र पूरी नहीं कर पाते.
-मध्यप्रदेश में प्रति हजार में 46, उत्तर प्रदेश में 41, छत्तीसगढ़ में 40, राजस्थान में 35, बिहार में 29, गुजरात में शिशु मृत्यु दर आईएमआर 25 है.
- मध्यप्रदेश में साल 2018 के मुताबिक 2019 में शिशु मृत्यु दर के आंकड़ों में 2 अंकों का सुधार हुआ है. 2018 में यह 48 थी.
- प्रदेश में त्वरित नवजात मृत्यु दर साल 2019 में 25 है, जबकि 2018 में यह 26 थी.
- प्रदेश में शिशु मृत्यु दर ही नहीं, बल्कि मातृ मृत्युदर के आंकड़ों में भी बहुत ज्यादा सुधार नहीं आया है.

- प्रदेश में हर साल एक लाख गर्भवती महिलाओं में से 163 महिलाओं की मौत हो जाती है.

17 विभागों में चल रहीं बच्चों से जुड़ी योजनाएं
मध्य प्रदेश में बाल और मातृ मत्यू दर के ये आंकड़े तब हैं जब सरकार नवजात बच्चों और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य पर हर साल करीबन 2200 करोड़ रुपए खर्च करती है.स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चैधरी के मुताबिक इस दिशा में स्थिति सुधारने के लिए सरकार लगातार काम कर रही है. पिछले दो सालों में इसको लेकर काफी काम किया गया है. स्वास्थ्य मंत्री दावा करते हैं कि इस मौजूदा रिपोट में 2019 के आंकड़े दिए गए हैं जबकि आने वाले समय में इसमें काफी सुधार दिखाई देगा. हालांकि स्वास्थ्य मंत्री मानते हैं कि ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं और बेहतर पोषण की व्यवस्था की अभी कमी है जिससे नवजात बच्चों और गर्भवती महिलाओं दोनों के स्वास्थ्य पर बुरा असर दिखाई देता है. इसे भी जल्द ही सुधार लिया जाएगा.

कांग्रेस का आरोप खुद के पोषण में लगी हुई है सरकार
पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक कमलेश्वर पटेल ने प्रदेश में बाल मृत्यू दर के आंकड़ों को लेकर सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने प्रदेश सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा है कि प्रदेश में आंगनबाड़ियो और दूसरी संस्थाओं की हालत खराब है. बच्चों को मिड डे मील का लाभ नहीं मिल पा रहा. गरीब और गर्भवती माताओं के पोषण की कोई व्यवस्था नहीं है. यही वजह है कि प्रदेश में एक साल के भीतर ही दम तोड़ देने वाले और कुपोषित बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. उन्होंने आरोप लगाया कि प्रदेश सरकार सिर्फ खुद के पोषण में लगी हुई है इसका इस कुपोषण को दूर करने का कोई इरादा भी नजर नहीं आता. इस मामले में राजनीति तो जमकर हो रही है, लेकिन कोई भी राजनीतिक दल यह स्वीकार्य करने को तैयार नहीं है कि बाल मृत्यू दर के आंकड़े प्रदेश को शर्मसार करने वाले हैं.

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