भोपाल। हर साल 29 जुलाई को दुनिया भर में टाइगर डे (International Tiger Day) मनाया जाता है. मध्य प्रदेश के लिए यह दिन बेहद खास है, क्योंकि उसे टाइगर स्टेट का दर्जा मिला हुआ है. विभाग के मुताबिक प्रदेश में 526 बाघ हैं. लेकिन एक चिंता जनक बात यह है कि पिछले 6 महीने में 28 बाघों की मौत हो चुकी है. इतना सब होने के बावजूद मध्यप्रदेश में बाघों की सुरक्षा के लिए स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स का गठन पिछले एक दशक से लटका हुआ है.
बाघों की मौत पर विभाग की सफाई: एमपी में 28 बाघों की मौत पर विभाग अपनी सफाई दे रहा है. विभाग के अधिकारियों के मुताबिक जिन बाघों की मौत हुई है, उसमें तीन बाघ अपनी उम्र पूरी करने के बाद खत्म हुए हैं. दो बाघों की मौत के कारणों का पता नहीं चला है. विभाग ने बताया कि बाघों के आपसी संघर्ष में ज्यादातर मौतें हुई हैं. (Tiger state status to MP)
टेरिटोरियल फाइट क्यों बढ़ रही है बाघों के बीच: बाघों की मौत के मामले में मध्यप्रदेश नंबर एक बन गया है. एनटीसीए (National Tiger Conservation Authority) की सूची के मुताबिक पिछले 6 महीनों में असम, केरल, राजस्थान, यूपी, आंध्र प्रदेश बिहार सहित मध्यप्रदेश में बाघों की मौत हुई है. वन्य प्राणी विशेषज्ञ बताते हैं कि मध्य प्रदेश में बाघों की संख्या बड़ी है लेकिन इनके जंगल खत्म हो रहे हैं. इसकी वजह अतिक्रमण, नेता और सरकार है. वोट बैंक के चलते सरकार अतिक्रमण पर रोक नहीं लगाती है. अपनी-अपनी टेरिटरी में बाघों के बीच वर्चस्व की लड़ाई के चलते आपसी संघर्ष में उनकी मौत हो जाती है.
टाइगर रिजर्व के भीतर हालात खराब: 2012 से 2019 के बीच देशभर में मरने वाले बाघों में भी मध्य प्रदेश शीर्ष पर था. 2020 में 26 बाघों की मौत हुई थी और इस तरह से प्रदेश में मरने वाले बाघों की संख्या 198 हो गई थी. रिपोर्ट में यह भी दर्शाया गया कि बाघों की मौत के लिए आमतौर पर संरक्षित क्षेत्र के आसपास रहने वाले ग्रामीणों को जिम्मेदार ठहराया जाता है. लेकिन टाइगर रिजर्व के भीतर भी हालात खराब है.
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संरक्षित क्षेत्र में शिकार की घटनाओं में इजाफा: एनटीसीए के पूर्व सदस्य डॉ. राजेश गोपाल का कहना है कि संरक्षित क्षेत्र के अंदर शिकार की ज्यादा घटनाएं हो रही हैं जो चिंता का विषय हैं. सरकार और वन विभाग इस पर नियंत्रण नहीं कर पा रहे हैं. क्योंकि उनकी कोई ठोस कार्य योजना नहीं है. हालांकि बाघों की ज्यादा मौत होना प्राकृतिक है. जहां घनत्व ज्यादा होता है वहां मौतें होती हैं. सरकार को बाघों के लिए नए क्षेत्र तैयार करने चाहिए. जिससे आपसी संघर्ष नियंत्रित किया जा सके.
बाघों की संख्या में वृद्धि के लिए प्रयास जारी: टाइगर्स डे के मौके पर वन मंत्री विजय शाह (Forest Minister Vijay Shah) ने कहा कि प्रदेश में बाघों की संख्या में वृद्धि के लिए लगातार प्रयास हो रहे हैं. बाघ रेवास वाले क्षेत्रों के सक्रिय और सुचारू प्रबंधन से बाघों की संख्या में लगातार वृद्धि भी हो रही है. उन्होंने कहा कि विश्व में आधे से ज्यादा बाघ भारत में हैं. राष्ट्रीय उद्यानों ने बाघ और अन्य वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए नवाचारी उपाय किए हैं.
मध्य प्रदेश के पार्कों में बाघों की स्थिति
- कान्हा नेशनल पार्क में 104 बाघ हैं. यह 2117 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. यहां बफर जोन में ही 170 गांव हैं
- बांधवगढ़ नेशनल पार्क में 124 बाघ और कई शावक. यह पार्क 1530 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. कोर एरिया में 10 गांव, बफर जोन में 96 गांव हैं.
- पेंच नेशनल पार्क में 87 बाघ हैं. यह पार्क 1179 वर्ग किलोमीटर में फैला है. यहां बफर जोन में 107 गांव हैं.
- पन्ना नेशनल पार्क में 31 बाघ और 15 शावक हैं. यह 1597 पर किलोमीटर में फैला है. कोर में 3 और बफर में 59 गांव हैं.
- संजय टाइगर रिजर्व में 6 बाघ हैं, यह 16 से 44 वर्ग किलोमीटर में फैला है. यहां कोर में 41 गांव है जो कि सबसे ज्यादा हैं.
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