ETV Bharat / city

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में "ज़ायका" का शुभारंभ, भील जनजाति के पारंपरिक भोजन का ले सकेंगे स्वाद - ज़ायका

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय की कैंटीन में प्रत्येक शनिवार और रविवार को दोपहर 1 बजे से 4 बजे के बीच मध्यप्रदेश के भील जनजाति का पारंपरिक भोजन मक्का की रोटी, बैगन का भुर्ता, धनिया, लेहसुन की चटनी, गुड आदि पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद चखने का अवसर उपलब्ध है.

Indira Gandhi Rashtriya Manav Sangrahalaya will serve traditional food of Bheel tribe through its program Zaika
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में भील जनजाति के पारंपरिक भोजन का ले सकेंगे स्वाद
author img

By

Published : Oct 17, 2021, 7:57 AM IST

भोपाल। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय भोपाल (Indira Gandhi Rashtriya Manav Sangrahalaya) द्वारा संग्रहालय भ्रमण पर आने वाले दर्शकों की मांग पर भील जनजाति के पारंपरिक भोजन (Traditional food of Bheel tribe) कार्यक्रम ज़ायका की शुरूआत की गयी है. इस भोजन को भोपाल शहर के भोजन प्रेमी लोगों ने काफी पसंद किया है.

जनजातियों के प्राकृतिक आहार को लेकर वैज्ञानिकों की शोध क्या कहती ?

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय के निदेशक डॉ. प्रवीण कुमार मिश्र ने बताया कि पिछले दो दशकों में विश्व के तमाम बड़े वैज्ञानिकों ने अपने शोध से ये साबित भी किया है कि जनजातियों के प्राकृतिक आहार को यदि आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में लोग अपना लें, तो पोषक तत्वों की कमी से होने वाले अनेक रोगों की छुट्टी हो सकती है. मक्के की रोटी का सेवन करने से हमारे शरीर को फाइबर प्राप्त होता है, जो पाचन संबंधी समस्याओं से राहत पाने में मदद करता है. यह शरीर में कॉलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करने में भी मदद करता है. साथ ही फाइबर युक्त आहार लंबे समय तक पेट भरा रखने में मदद करता है.

सिर्फ जायका ही नहीं, भोजन का पोषण भी बढ़ाते हैं तड़के या बघार

भील जनजाति का पारंपरिक भोजन शनिवार एवं रविवार को उपलब्ध

संग्रहालय की कैंटीन में प्रत्येक शनिवार एवं रविवार को दोपहर 1 बजे से 4 बजे के मध्य स्वाद प्रेमियों के लिए मध्यप्रदेश के भील जनजाति का पारंपरिक भोजन मक्का की रोटी, बैगन का भुर्ता, धनिया, लेहसुन की चटनी, गुड आदि पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद चखने का अवसर उपलब्ध है. जानकारी के लिए मो. नं. 9479438303 पर संपर्क किया जा सकता है.

भोपाल। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय भोपाल (Indira Gandhi Rashtriya Manav Sangrahalaya) द्वारा संग्रहालय भ्रमण पर आने वाले दर्शकों की मांग पर भील जनजाति के पारंपरिक भोजन (Traditional food of Bheel tribe) कार्यक्रम ज़ायका की शुरूआत की गयी है. इस भोजन को भोपाल शहर के भोजन प्रेमी लोगों ने काफी पसंद किया है.

जनजातियों के प्राकृतिक आहार को लेकर वैज्ञानिकों की शोध क्या कहती ?

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय के निदेशक डॉ. प्रवीण कुमार मिश्र ने बताया कि पिछले दो दशकों में विश्व के तमाम बड़े वैज्ञानिकों ने अपने शोध से ये साबित भी किया है कि जनजातियों के प्राकृतिक आहार को यदि आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में लोग अपना लें, तो पोषक तत्वों की कमी से होने वाले अनेक रोगों की छुट्टी हो सकती है. मक्के की रोटी का सेवन करने से हमारे शरीर को फाइबर प्राप्त होता है, जो पाचन संबंधी समस्याओं से राहत पाने में मदद करता है. यह शरीर में कॉलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करने में भी मदद करता है. साथ ही फाइबर युक्त आहार लंबे समय तक पेट भरा रखने में मदद करता है.

सिर्फ जायका ही नहीं, भोजन का पोषण भी बढ़ाते हैं तड़के या बघार

भील जनजाति का पारंपरिक भोजन शनिवार एवं रविवार को उपलब्ध

संग्रहालय की कैंटीन में प्रत्येक शनिवार एवं रविवार को दोपहर 1 बजे से 4 बजे के मध्य स्वाद प्रेमियों के लिए मध्यप्रदेश के भील जनजाति का पारंपरिक भोजन मक्का की रोटी, बैगन का भुर्ता, धनिया, लेहसुन की चटनी, गुड आदि पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद चखने का अवसर उपलब्ध है. जानकारी के लिए मो. नं. 9479438303 पर संपर्क किया जा सकता है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.