- सुप्रीम कोर्ट में मुकुल रोहतगी ने दिया बोम्मई जजमेंट का हवाला.
- दिग्विजय सिंह को विधायकों से न मिलने देने पर बोले कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी.
- ये घोर अन्याय है, आज बीजेपी में दम नहीं है कि वो दिग्विजय सिंह के साथ विधायकों की मुलाकात करवाए.
- बीजेपी को डर है कि विधायक चले जाएंगे, और बीजेपी की साजिश नाकाम हो जाएगी.
- रोहतगी की सुप्रीम कोर्ट में दलिल.
- कोर्ट कहे तो 16 विधायकों को पेश कर सकते है.
- सुप्रीम को ने कहा कि इसकी जरुरत नहीं.
- कांग्रेस विधायकों को खरीद फरोख्त करना चाहती है :रोहतगी
- 22 विधायकों का पक्ष रख रहे है वकील मन्निदर सिंह
- विधायक मिलना नहीं चाहते तो क्यों बुला रहे .
- कोई सीएम अगर फ्लोर टेस्ट से बच रही है, तो यह सफा है कि सराकर बहुमत खो चुकी है :रोहतगी
- रोहतगी की दलिल पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
- हम विधायकों के रास्त में नहीं आना चाहते हैं :SC
- हम विधायकों को कार्यवाही में शामिल होने के लिए मजबूर नहीं कर सकते :SC
- हमें केवल यह सुनिश्चित करना होगा की यह 16 अपने अधिकारों का प्रयोग करें सकें :SC
- विधायकों ने कहा की हमारा इस्तीफा लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए है.
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस और भाजपा के वकील आमने-सामने हैं. अदालत में कांग्रेस के वकील की ओर से दलील दी गई कि अभी हम कोरोना जैसे संकट से जूझ रहे हैं, ऐसे में इस वक्त बहुमत परीक्षण कराना जरूरी है? अदालत में दोनों पक्षों की ओर से जारी बहस के बीच मामले की सुनवाई को दो बजे तक के लिए टाल दिया गया है.
याचिका पर सुनवाई के दौरान कांग्रेस के वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि विधायकों को मतदाता के पास वापस जाना चाहिए और फिर से चुनाव जीतना चाहिए.
इस पर सुप्रीम कोर्ट के वकील हेमंत गुप्ता ने कहा कि वह यहीं कर रहे हैं. वह पार्टी में अपनी सदस्यता छोड़ रहे हैं और हो सकता है इसके बाद वह दोबारा से मतदाताओं के पास जाएं.
इस बात पर दुष्यंत दवे ने कहा कि इस बात के कम ही आसार हैं. ऐसा कुछ नहीं है कि कांग्रेस की सरकार तुरंत गिर जाए या भाजपा की सरकार तुरंत बन जाए.
सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस के वकील दुष्यंत दवे ने तर्क दिया. उन्होंने कहा कि इस मामले को संवैधानिक पीठ के पास भेजना चाहिए.
LIVE UPDATE: सुप्रीम कोर्ट में मुकुल रोहतगी ने बोम्मई जजमेंट का दिया हवाला
वकील ने कहा कि ऐसा इसलिए क्योंकि मध्य प्रदेश जैसी स्थिति इससे पहले कर्नाटक और गुजरात में भी आ चुकी है.
उच्चतम न्यायालय मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार को राज्य विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने का निर्देश देने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री एवं भाजपा नेता शिवराज सिंह चौहान की याचिका पर सुनवाई कर रहा है. इससे पूर्व इस मामले की सुनवाई टल गई थी.
चौहान ने अपनी याचिका में कहा है कि कमलनाथ सरकार के पास सत्ता में बने रहने का 'कोई नैतिक, कानूनी, लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकार' नहीं रह गया है.
बता दें कि तेजी से हुए इस घटनाक्रम में चौहान और भाजपा के नौ विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष एन पी प्रजापति के राज्यपाल लालजी टंडन के निर्देशों का उल्लंघन करते हुए शक्ति परीक्षण कराए बिना 26 मार्च तक विधानसभा की कार्यवाही स्थगित किए जाने के तुरंत बाद शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया. प्रजापति ने कोरोना वायरस का हवाला देकर विधानसभा की कार्यवाही स्थगित की.
याचिका का अविलंब सुनवाई के लिए शीर्ष अदालत के संबंधित अधिकारी के समक्ष उल्लेख किया गया जिसमें विधानसभा अध्यक्ष, मुख्यमंत्री और विधानसभा के प्रधान सचिव को मध्य प्रदेश विधानसभा में इस अदालत के आदेश देने के 12 घंटे के भीतर राज्यपाल के निर्देशों के अनुसार शक्ति परीक्षण कराने का आदेश देने की मांग की गई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश विधानसभा में तत्काल शक्ति परीक्षण कराने का निर्देश देने के लिये पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की याचिका पर कमलनाथ सरकार से बुधवार तक जवाब मांगा था.
न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने ‘स्थिति की तात्कालिकता’ को देखते हुये मुख्यमंत्री कमलनाथ, विधानसभा अध्यक्ष एन पी प्रजापति और विधान सभा के प्रधान सचिव को नोटिस जारी किये और कहा कि इस मामले में बुधवार को सवेरे साढ़े दस बजे सुनवाई की जायेगी.
राज्य विधानसभा के अध्यक्ष एन पी प्रजापति द्वारा कोरोना वायरस का हवाला देते हुये सदन में शक्ति परीक्षण कराये बगैर ही सोमवार को सदन की कार्यवाही 26 मार्च तक के लिये स्थगित किये जाने के तुरंत बाद शिवराज सिंह चौहान और सदन में प्रतिपक्ष के नेता तथा भाजपा के मुख्य सचेतक सहित नौ विधायकों ने सोमवार को शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी.
राज्यपाल लालजी टंडन ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को 16 मार्च को सदन में अपना बहुमत साबित करने का निर्देश दिया था.
पीठ ने अपने आदेश में कहा, 'हमने याचिकाकर्ताओं (चौहान और अन्य) की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और सौरभ मिश्रा, एडवोकेट आन रिकार्ड को सुना. नोटिस जारी किया जाये. स्थिति की तात्कालिकता को देखते हुये नोटिस का जवाब 18 मार्च, 2020 को सवेरे साढ़े दस बजे तक देना है.'
पीठ ने चौहान को अपनी याचिका की प्रति की राज्य सरकार, अध्यक्ष और अन्य पक्षकारों को नोटिस की तामील करने के पारंपरिक तरीके के अलावा ई-मेल पर भी इसे देने की छूट दी.
यही नहीं, पीठ ने विधानसभा अध्यक्ष को इस्तीफा सौंपने वाले कांग्रेस के 16 बागी विधायकों को चौहान की याचिका में पक्षकार बनाने के लिये आवेदन दायर करने की भी अनुमति प्रदान की.
कांग्रेस के बागी विधायकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनिन्दर सिंह ने कहा कि कांग्रेस के 22 विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया है और इनमें से छह विधायकों के त्यागपत्र स्वीकार किये जा चुके हैं. ऐसी स्थिति में बाकी 16 विधायकों के इस्तीफे स्वीकार नहीं करने की कोई वजह नहीं है.
शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा, 'वरिष्ठ अधिवक्ता मनिन्दर सिंह का कहना है कि वह इस्तीफा दे चुके 16 विधायकों की ओर से इस मामले में पक्षकार बनने के लिये आवेदन दायर करेंगे. इस आवेदन की एक प्रति संबंधित पक्षों को दी जायेगी. याचिका कल 18 मार्च, 2020 को सवेरे साढ़े दस बजे सूचीबद्ध की जाये.'
इससे पहले, सुनवाई शुरू होते ही पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता शिवराज सिंह चौहान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा, 'इस मामले में सदन में शक्ति परीक्षण कराना ही तर्कसंगत है और आमतौर पर ऐसे मामलों में दूसरा पक्ष पेश होता है.'
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रोहतगी ने कहा, 'यह मामला पूरी तरह से लोकतंत्र का उपहास है. दूसरा पक्ष जानबूझकर पेश नहीं हुआ है.' उन्होंने इस मामले में मुख्यमंत्री और राज्य सरकार की ओर से किसी के पेश नहीं होने के तथ्य की ओर पीठ का ध्यान आकर्षित किया.
उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने पहले भी ऐसे ही एक मामले की रात में सुनवाई की और सदन में विश्वास मत प्राप्त करने का आदेश दिया था.
रोहतगी के कथन का संज्ञान लेते हुये पीठ ने कहा, 'हमें अल्प अवधि का नोटिस जारी करना होगा और इसे कल सवेरे के लिये रखते हैं.'
पूर्व मुख्यमंत्री चौहान ने याचिका में कहा है कि सत्तारूढ़ दल के 22 विधायकों के इस्तीफे के बाद कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गयी है ओर ऐसी स्थिति में उसके पास सत्ता में बने रहने का ‘कोई नैतिक, कानूनी, लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकार नहीं रह गया है.
याचिका में अध्यक्ष, मुख्यमंत्री और विधानसभा के प्रधान सचिव को ‘मप्र विधानसभा में इस न्यायालय के आदेश के 12 घंटे के भीतर ही राज्यपाल के निर्देशानुसार विश्वास मत हासिल करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.
उन्होंने याचिका में आरोप लगाया है कि कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गयी है और वह अपनी सरकार को बहुमत की सरकार में तब्दील करने के लिये मप्र विधानसभा के सदस्यों को धमकी देने से लेकर प्रलोभन देने सहित हरसंभव उपाय कर रहे हैं.
उन्होंने दावा किया कि अध्यक्ष, मुख्यमंत्री और विधानसभा के प्रधान सचिव ने संवैधानिक सिद्धांतों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन किया है और उन्होंने जानबूझ कर राज्यपाल के निर्देशों की अवहेलना की है. राज्यपाल ने 16 मार्च को विधानसभा का बजट सत्र शुरू होने पर राज्यपाल के अभिभाषण के तुरंत बाद सदन में शक्ति परीक्षण कराने का निर्देश दिया था.
विधानसभा अध्यक्ष द्वारा छह विधायकों के त्यागपत्र स्वीकार किये जाने के बाद 222 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या घटकर 108 रह गयी है. इनमें वे 16 बागी विधायक भी शामिल हैं जिन्होंने इस्तीफा दे दिया है लेकिन उन्हें अभी तक स्वीकार नहीं किया गया है जबकि सदन में भाजपा के 107 सदस्य हैं.