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lodhi brahmin protest लोधी समाज के पंडित बुलाने पर बैन के बाद छिड़ी बहस, क्या मिल गया पंडितों का विकल्प? - पंडितों से नहीं कराएंगे पूजा पाठ

ब्राह्मण विरोध में उठाए गए लोधी समाज के कदम ने नई बहस को जन्म दे दिया है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या ब्राह्मण के बगैर कोई भी धार्मिक संस्कार संभव हैं? हिंदू समाज के सोलह संस्कारों के पूजन विधान में पंडित की मौजूदगी क्यों ज़रुरी है? विरोध की राजनीति अपनी जगह है, लेकिन क्या लोधी समाज को कर्मकांडी ब्राह्मण या पंडित का विकल्प मिल गया है. अगर ऐसा है भी तो क्या पंडितों के बिना कोई भी शुभकार्य शास्त्र सम्मत माना जाएगा.opposition of Brahmins, lodhi boycott pandit

pandit lodhi disupute
पंडितों को बुलाने पर बैन
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Published : Sep 2, 2022, 6:07 PM IST

भोपाल। लोधी समाज की महापंचायत में 5 गांवोंं में पूजा पाठ, विवाह या अन्य मांगलिक कार्यक्रमों में पंडितों को बुलाने पर रोक लगा दी है. समाज की पंचायत ने यह फरमान भी सुनाया है कि अगर कोई पंडित को बुलाएगा तो उसपर 51 सौ रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा. उस व्यक्ति के परिवार का सामाजिक बहिष्कार भी कर दिया जाएगा. ब्राह्मण विरोध में उठाए गए लोधी समाज के कदम ने नई बहस को जन्म दे दिया है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या ब्राह्मण के बगैर कोई भी धार्मिक संस्कार संभव हैं? हिंदू समाज के सोलह संस्कारों के पूजन विधान में पंडित की मौजूदगी क्यों ज़रुरी है? विरोध की राजनीति अपनी जगह है, लेकिन क्या लोधी समाज को कर्मकांडी ब्राह्मण या पंडित का विकल्प मिल गया है. अगर ऐसा है भी तो क्या पंडितों के बिना कोई भी शुभकार्य शास्त्र सम्मत माना जाएगा. इस बारे में हमारे वेद पुराण क्या कहते हैं.

pandit lodhi disupute
पंडितों को बुलाने पर बैन

सियासी स्टंट या विकल्प की तलाश: ब्राह्मणों या पंडितों का विरोध पहली नजर में खालिस सियासी स्टंट ही नजर आता है. लेकिन शिवपुरी में जिस तरह से पंचायत का फैसला लोगों को पढ़कर सुनाया गया. इस पर पंचनामा भी तैयार कराया गया उसपर सवाल उठता है. क्या ऐसा संभव हो पाएगा. ईटीवी भारत ने कर्मकांडी पंडित कथावाचक और शास्त्रों के जानकारों से बात की. और सार जानने निकालने की कोशिश की सनातन धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक कर्मकांडी पंडित की मौजूदगी क्यों जरुरी है. शास्त्र मर्मज्ञ और कर्मकांडी पंडितों की दृष्टि में ब्राह्मण विरोध की ये राजनीति कलयुग के प्रभाव का भी नतीजा है. शास्त्रों और वेद पुराण के जानकार जो बताते हैं उनसे मुताबिक

लोधी समाज की पंचायत में हुआ फैसला, 5 गावों में नहीं करवाएंगे पंडितों से पूजा पाठ, विवाह, बुलाने वाले पर लगेगा 5 हजार का जुर्माना

- ब्राह्मण द्वारा अनुष्ठान नहीं कराने से पुरखे नाराज़ रहेंगे. ब्राम्हणों से अनुष्ठान कराने से ही पुरखे संतुष्ट होते हैं.
- हिंदू समाज की परंपरा में जन्म से लेकर मृत्यु तक कोई भी कार्य पंडितों के बिना संभव नहीं है. किसी और समाज के व्यक्ति से कर्मकांड करना शास्त्र सम्मत और सनातन धर्म के अनुरूप नहीं होगा.
- भगवान विष्णु ने भी जब यज्ञ संपन्न करवाया तो 27 वैदव्य ब्राम्हणों को ही आमंत्रित किया था.
- शास्त्रों में लिखा है संसार में हर तरह के श्राप से मुक्ति मिल सकती है. ब्राह्मण के श्राप से मुक्ति नही मिलती.
- भृगु ऋषि ने भगवान विष्णु की छाती पर अपने पैर से प्रहार किया था, चूंकि वे ब्राह्मण देव थे तो भगवान ने भी उन्हें क्षमा कर दिया था.
- सनातन धर्म के सोलह संस्कारों में से एक विवाह या पाणिग्रहण संस्कार भी जो ब्राह्मण के बिना समपन्न होंगे वे सनातन परंपरा से अनुसार नहीं होंगे.
- शास्त्र मर्मज्ञ मानते हैं कि धरती पर ब्राह्मणों के अपमान का अर्थ कलयुग का प्रभाव तेज़ होने से है.
- जो ब्राम्हणों से दूर हुआ उसका पतन तय.
- राजा बेन ने ब्राह्मणों को पूजा पाठ हवन आदि से दूर कर दिया था. ब्राह्मण ऋषियो के श्राप से उनका पतन हो गया.

भगवान का भी विवाह पंडितों ने ही कराया: पंडित विष्णु राजौरिया ने बताया कि शास्त्रों में ये कहा गया है कि वेद की ऋचाओं के पाठ का अधिकार केवल पंडितों को ही है. ब्राह्मणों को देवता बताते हुए वेदों में एक मंत्र भी है.

दैवाधीनम जगत सर्वं , मंत्राधीनाश्च देवता |
ते मंत्रा ब्रम्हानाधीना , तस्मात् ब्राम्हण देवता
भावार्थ - सम्पूर्ण जगत देवताओं के अधीन है , देवता मन्त्रों के आधीन है , मंत्र ब्राम्हण के अधीन है , इसलिए ब्राम्हण देवता है

ब्राम्हण के बिना कोई संस्कार संपूर्ण नहीं हो सकता. पंडित राजौरिया कहते हैं कि मैं विकल्प पर मैं नहीं जाता. अब भागकर शादी कर ली. संतान उत्पत्ति भी हो गई. मृत्यु में भी बिना संस्कार के अंतिम यात्रा पूर्ण हुई. करने को आप कुछ भी कर लीजिए. करवा लीजिए. लेकिन वह सनातन धर्म के अनुरुप नहीं होगा. ये समाज में विकृति लाने की शुरुआत है और पशुवत व्यवहार इसका परिणाम है. राजौरिया बताते हैं विश्वामित्र भगवान राम को लेकर गए थे लेकिन उनका विवाह शतानंद जी ने समपन्न करवाया था क्योंकि वे ब्राम्हण थे.

पंडितों की मौजूदगी के बिना हर संस्कार अधूरा: शास्त्रों के जानकार अनिलानंद महाराज के मुताबिक सनातन धर्म को मानने वाले हिंदू समाज के लोग पंडितों के बगैर किसी भी संस्कार की पूर्णता नहीं मानते. रामायण, महाभारत या कोई भी पुराण उठा लीजिए. पंडितों का पूजन विधान शास्त्र सम्मत है. कृष्ण जी का नामकरण संस्कार हुआ था, तब बहुत दूर से ब्राह्मण आए थे. दक्षिण की रामायण में उल्लेख मिलता है कि जब भगवान राम ने रामेश्वर की स्थापना की तो जामवंत ने कहा कि हम ब्राह्मण कहां से लाएंगे, बिना ब्राम्हण के तो शिवलिंग की स्थापना हो नहीं पाएगी. तब भगवान राम के कहने पर जामवंत रावण को लेकर आए. उन्होनें भगवान रामेश्वर की स्थापना कराई और लंका लौट गए. ये प्रसंग बताता है कि सनातन हिंदू समाज में ब्राह्मण का क्या महत्व है.अनिलानंद ब्राह्मणों का विरोध करने पर चेतावनी देते हुए सवाल उठाते हैं. वे कहते हैं कि अगर पंडित विवाह संस्कार या बाकी मांगलिक कार्य नहीं कराएगा, तो कौन कराएगा, मत करवाइए. पर ये तय जानिए कि इससे समाज विनाश की तरफ जाएगा.

भोपाल। लोधी समाज की महापंचायत में 5 गांवोंं में पूजा पाठ, विवाह या अन्य मांगलिक कार्यक्रमों में पंडितों को बुलाने पर रोक लगा दी है. समाज की पंचायत ने यह फरमान भी सुनाया है कि अगर कोई पंडित को बुलाएगा तो उसपर 51 सौ रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा. उस व्यक्ति के परिवार का सामाजिक बहिष्कार भी कर दिया जाएगा. ब्राह्मण विरोध में उठाए गए लोधी समाज के कदम ने नई बहस को जन्म दे दिया है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या ब्राह्मण के बगैर कोई भी धार्मिक संस्कार संभव हैं? हिंदू समाज के सोलह संस्कारों के पूजन विधान में पंडित की मौजूदगी क्यों ज़रुरी है? विरोध की राजनीति अपनी जगह है, लेकिन क्या लोधी समाज को कर्मकांडी ब्राह्मण या पंडित का विकल्प मिल गया है. अगर ऐसा है भी तो क्या पंडितों के बिना कोई भी शुभकार्य शास्त्र सम्मत माना जाएगा. इस बारे में हमारे वेद पुराण क्या कहते हैं.

pandit lodhi disupute
पंडितों को बुलाने पर बैन

सियासी स्टंट या विकल्प की तलाश: ब्राह्मणों या पंडितों का विरोध पहली नजर में खालिस सियासी स्टंट ही नजर आता है. लेकिन शिवपुरी में जिस तरह से पंचायत का फैसला लोगों को पढ़कर सुनाया गया. इस पर पंचनामा भी तैयार कराया गया उसपर सवाल उठता है. क्या ऐसा संभव हो पाएगा. ईटीवी भारत ने कर्मकांडी पंडित कथावाचक और शास्त्रों के जानकारों से बात की. और सार जानने निकालने की कोशिश की सनातन धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक कर्मकांडी पंडित की मौजूदगी क्यों जरुरी है. शास्त्र मर्मज्ञ और कर्मकांडी पंडितों की दृष्टि में ब्राह्मण विरोध की ये राजनीति कलयुग के प्रभाव का भी नतीजा है. शास्त्रों और वेद पुराण के जानकार जो बताते हैं उनसे मुताबिक

लोधी समाज की पंचायत में हुआ फैसला, 5 गावों में नहीं करवाएंगे पंडितों से पूजा पाठ, विवाह, बुलाने वाले पर लगेगा 5 हजार का जुर्माना

- ब्राह्मण द्वारा अनुष्ठान नहीं कराने से पुरखे नाराज़ रहेंगे. ब्राम्हणों से अनुष्ठान कराने से ही पुरखे संतुष्ट होते हैं.
- हिंदू समाज की परंपरा में जन्म से लेकर मृत्यु तक कोई भी कार्य पंडितों के बिना संभव नहीं है. किसी और समाज के व्यक्ति से कर्मकांड करना शास्त्र सम्मत और सनातन धर्म के अनुरूप नहीं होगा.
- भगवान विष्णु ने भी जब यज्ञ संपन्न करवाया तो 27 वैदव्य ब्राम्हणों को ही आमंत्रित किया था.
- शास्त्रों में लिखा है संसार में हर तरह के श्राप से मुक्ति मिल सकती है. ब्राह्मण के श्राप से मुक्ति नही मिलती.
- भृगु ऋषि ने भगवान विष्णु की छाती पर अपने पैर से प्रहार किया था, चूंकि वे ब्राह्मण देव थे तो भगवान ने भी उन्हें क्षमा कर दिया था.
- सनातन धर्म के सोलह संस्कारों में से एक विवाह या पाणिग्रहण संस्कार भी जो ब्राह्मण के बिना समपन्न होंगे वे सनातन परंपरा से अनुसार नहीं होंगे.
- शास्त्र मर्मज्ञ मानते हैं कि धरती पर ब्राह्मणों के अपमान का अर्थ कलयुग का प्रभाव तेज़ होने से है.
- जो ब्राम्हणों से दूर हुआ उसका पतन तय.
- राजा बेन ने ब्राह्मणों को पूजा पाठ हवन आदि से दूर कर दिया था. ब्राह्मण ऋषियो के श्राप से उनका पतन हो गया.

भगवान का भी विवाह पंडितों ने ही कराया: पंडित विष्णु राजौरिया ने बताया कि शास्त्रों में ये कहा गया है कि वेद की ऋचाओं के पाठ का अधिकार केवल पंडितों को ही है. ब्राह्मणों को देवता बताते हुए वेदों में एक मंत्र भी है.

दैवाधीनम जगत सर्वं , मंत्राधीनाश्च देवता |
ते मंत्रा ब्रम्हानाधीना , तस्मात् ब्राम्हण देवता
भावार्थ - सम्पूर्ण जगत देवताओं के अधीन है , देवता मन्त्रों के आधीन है , मंत्र ब्राम्हण के अधीन है , इसलिए ब्राम्हण देवता है

ब्राम्हण के बिना कोई संस्कार संपूर्ण नहीं हो सकता. पंडित राजौरिया कहते हैं कि मैं विकल्प पर मैं नहीं जाता. अब भागकर शादी कर ली. संतान उत्पत्ति भी हो गई. मृत्यु में भी बिना संस्कार के अंतिम यात्रा पूर्ण हुई. करने को आप कुछ भी कर लीजिए. करवा लीजिए. लेकिन वह सनातन धर्म के अनुरुप नहीं होगा. ये समाज में विकृति लाने की शुरुआत है और पशुवत व्यवहार इसका परिणाम है. राजौरिया बताते हैं विश्वामित्र भगवान राम को लेकर गए थे लेकिन उनका विवाह शतानंद जी ने समपन्न करवाया था क्योंकि वे ब्राम्हण थे.

पंडितों की मौजूदगी के बिना हर संस्कार अधूरा: शास्त्रों के जानकार अनिलानंद महाराज के मुताबिक सनातन धर्म को मानने वाले हिंदू समाज के लोग पंडितों के बगैर किसी भी संस्कार की पूर्णता नहीं मानते. रामायण, महाभारत या कोई भी पुराण उठा लीजिए. पंडितों का पूजन विधान शास्त्र सम्मत है. कृष्ण जी का नामकरण संस्कार हुआ था, तब बहुत दूर से ब्राह्मण आए थे. दक्षिण की रामायण में उल्लेख मिलता है कि जब भगवान राम ने रामेश्वर की स्थापना की तो जामवंत ने कहा कि हम ब्राह्मण कहां से लाएंगे, बिना ब्राम्हण के तो शिवलिंग की स्थापना हो नहीं पाएगी. तब भगवान राम के कहने पर जामवंत रावण को लेकर आए. उन्होनें भगवान रामेश्वर की स्थापना कराई और लंका लौट गए. ये प्रसंग बताता है कि सनातन हिंदू समाज में ब्राह्मण का क्या महत्व है.अनिलानंद ब्राह्मणों का विरोध करने पर चेतावनी देते हुए सवाल उठाते हैं. वे कहते हैं कि अगर पंडित विवाह संस्कार या बाकी मांगलिक कार्य नहीं कराएगा, तो कौन कराएगा, मत करवाइए. पर ये तय जानिए कि इससे समाज विनाश की तरफ जाएगा.

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