भोपाल। कोरोना महामारी ने उद्योगों के साथ ही स्टार्टअप की हालत भी खराब कर दी है. इस संकट की वजह से मध्य प्रदेश के करीब 80 फीसदी स्टार्टअप की हालत ठीक नहीं है, जबकि 10 फीसदी से अधिक स्टार्टअप बंद हो चुके हैं. कम फंडिंग ने स्टार्टअप्स को अपने कॉमर्शियल डेवलपमेंट और एक्टीविटीज को आगे बढ़ाने को फिलहाल टालने पर मजबूर कर दिया है, उनके पास न तो कोई डिमांड आ रही है और सप्लाई भी बंद हो गई है, जिससे स्टार्टअप कंपनियों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
जानकारी के मुताबिक, प्रदेश में करीब 4 हजार स्टार्टअप बने हैं. इसके साथ ही 32 इंक्यूबेशन सेंटर हैं। इनमें से अधिकतर स्टार्टअप ने कोई काम नहीं मिलने की वजह से अपना काम बंद कर दिया है, और तो और कइयों ने तो काम बदल दिया है. ईटीवी भारत ने कोरोना काल में राजधानी भोपाल के स्टार्टअप की स्थिति की पड़ताल की तो पाया कि भोपाल में स्टार्टअप की स्थिति बेहाल है. गोविंदपुरा स्थित इन्क्यूबेशन सेंटर में चलने वाले स्टार्टअप्स के चेंबर्स खाली पड़े हैं. इक्का-दुक्का स्टार्टअप को ही काम मिल पाया है.
बदलना पड़ा काम
ट्रांसपोर्ट एंड लाजिस्टिक के क्षेत्र में काम करने वाले स्टार्टअप की फाउंडर शिवांगी बताती हैं कि कोरोना के कारण स्टार्टअप पर काफी प्रभाव पड़ा है. स्कूल-कालेज और गाड़ियां बंद होने के कारण हमें अपना काम बदलना पड़ा है. अब हम ट्रेकिंग डिवाइस और ज्वेलरी बाक्स डिवाइस पर काम कर रहे हैं। वहीं को-फाउंडर प्रतीक जैन का कहना है कि प्रभाव तो पड़ा है, लेकिन काम रोका नहीं जा सकता है. हमने इसे अवसर के रूप में लिया है और नए काम तलाशे हैं.
स्टार्टअप ने आईएफए में दिखाई महामारी से संबंधित तकनीक
बिजनेस हुआ जीरो, डिमांड-सप्लाई दोनों बंद
इंश्योरेंस फील्ड में काम करने वाले महेंद्र पांचाल के मुताबिक, कोरोना के कारण स्टार्टअप में काम करने वाले स्टाफ की भी शॉर्टेज हो गई है. लोग नहीं होने कारण भी काम प्रभावित हुआ है. कोरोना के चलते फ्री मूवमेंट बंद हो गया है. इलेक्ट्रिक साइकिल और कस्टमाइज्ड बाइसिकल के फील्ड में काम करने वाले स्टार्टअप के फाउंडर निखिल जाधव का कहना है कि निवेश पर काफी प्रभाव पड़ा है। डिमांड और सप्लाई दोनों बंद हो गए हैं. वहीं पार्टी और रेस्टारेंट के लिए काम करने वाले जाकिर हुसैन के मुताबिक कोरोना ने पूरा बिजनेस जीरो कर दिया है।
प्राथमिकता क्षेत्र उधार स्टार्टअप को बंद होने से तो बचा सकता है, लेकिन एनपीए का भी है खतरा
स्टार्टअप नीति तो बनी लेकिन कोई सुधार नहीं
प्रदेश में स्टार्टअप पॉलिसी को बनाकर लागू तो कर दिया गया, लेकिन उस पर ही ढंग से क्रियान्वयन नहीं किया गया, इसके अलावा सरकार द्वारा स्टार्टअप को आर्थिक मदद नहीं की गई. जानकारी के मुताबिक, प्रदेश में वर्ष 2016 में इन्क्यूबेशन एंड स्टार्टअप पालिसी लाई गई थी और इसके लिए तत्कालीन भाजपा सरकार द्वारा सौ करोड़ रुपए का प्रारंभिक फंड का भी इंतजाम किया गया था. इसके तीन साल बाद दूसरी स्टार्टअप नीति बनाई गई जिसके बाद भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर को स्टेट आफ आर्ट इंक्यूबेटर बनाते हुए नियमों में संशोधन किए गए. इन सबके बाद भी स्टार्टअप्स की हालत में सुधार नहीं हुआ है।