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क्या होता है ग्रीन कॉरिडोर?, कैसे बचाई जा सकती है अंग प्रत्यारोपण से मरीज की जान - WHAT IS GREEN CORRIDOR

ग्रीन कॉरिडोर क्या होता है. यह क्यों बनाया जाता है. अंग दान करने की प्रक्रिया क्या है. कौन सा अंग कितने समय तक जिंदा रहता

WHAT IS GREEN CORRIDOR
ग्रीन कॉरिडोर क्यों बनाया जाता है (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jan 23, 2025, 8:53 PM IST

जबलपुर: मध्य प्रदेश के जबलपुर में गुरुवार को एक ग्रीन कॉरिडोर बनाकर लीवर और हार्ट को भोपाल और इंदौर ट्रांसप्लांट के लिए भेजा गया. आपने गौर किया होगा कि जब किसी मृतक का आर्गन डोनेट किया जाता है तो ग्रीन कॉरिडोर से ही उसे एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल ले जाया जाता है. अब सवाल उठता है कि ये ग्रीन कॉरिडोर क्या है. ऑर्गन ट्रांसफर करते समय यह क्यों बनाया जाता है. यह कैसे बनाया जाता है. आज हम इस लेख में इन्ही सवालों का जवाब जानेंगे. इसके अलावा ऑर्गन डोनेशन और ट्रांसप्लांट से जुड़े कई पहलुओं को भी जानेंगे.

ग्रीन कॉरिडोर क्या होता है?

ग्रीन कॉरिडोर एक स्पेशल रूट होता है, जो दो अस्पतालों के बीच बनाया जाता है. एक अस्पताल जहां कोई मरीज अपना अंगदान कर रहा हो और दूसरा वह अस्पताल जहां कोई दूसरे मरीज को यह अंगदान किया जा रहा हो. इन दोनों अस्पतालों को कनेक्ट करने वाले रास्ते को ब्लॉक कर दिया जाता है. जिससे उस रोड पर किसी वाहन की आवाजाही न हो सके और एंबुलेंस की मदद से जल्द से जल्द दान किए हुए अंग को जरूरतमंद तक पहुंचाया जा सके. इस दौरान उस रास्ते पर एक एंबुलेंस और दो सुरक्षा वाहन ही चलते हैं. इस काम में डॉक्टरों की टीम के अलावा पुलिस और प्रशासन का सहयोग भी बहुत महत्वपूर्ण होता है.

अंगदान करने की प्रक्रिया क्या है (ETV Bharat)

उदाहरण के तौर पर गुरुवार को जबलपुर में सुपर स्पेशलिटी अस्पताल से लेकर भोपाल एम्स तक के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया, तो जबलपुर के सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में डॉक्टरों ने ब्रेन डेड मरीज बलिराम कुशवाहा का हृदय निकाल उसे एक बॉक्स में पैक किया और प्रशासन ने सुपर स्पेशलिटी अस्पताल से लेकर डुमना विमानतल तक पूरे रास्ते को ब्लॉक कर दिया. डॉ संजय मिश्रा का कहना है कि "एक हार्ट को ट्रांसप्लांट करने के लिए मात्र 3 घंटे का समय मिलता है. इसलिए 3 घंटे से कम समय में इसे जबलपुर से भोपाल तक भेजने के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाना पड़ा."

Why MAKE green corridor donation
हेलिकॉप्टर से ले जाया गया अंग (ETV Bharat)

अंग प्रत्यारोपण कानून क्या है?

भारत में अंगदान करने के लिए मानव अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम 1994 बनाया गया था. इसके तहत अंगदान किया जाता है. भारत सरकार अंग प्रत्यारोपण बढ़ाना चाहती है इसलिए राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम देश में चल रहा है और इसके लिए 149 करोड़ का बजट भी सरकार ने तय किया है.

मध्य प्रदेश में पहली बार हार्ट के लिए ग्रीन कॉरिडोर

मध्य प्रदेश अंग प्रत्यारोपण के मामले में भारत के तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश से काफी पीछे है. संयुक्त संचालक स्वास्थ्य डॉ. संजय मिश्रा का कहना है कि यह पहला मामला है जब किसी सरकारी अस्पताल ने मध्य प्रदेश में अंग प्रत्यारोपण के मामले में हृदय ट्रांसप्लांट करने के लिए कॉरिडोर बनाया गया. जबलपुर में इसके पहले दो निजी अस्पतालों ने भी इस तरह का गलियारा बनाकर अंग दान करवाया लेकिन हृदय के मामले में यह पहला प्रयास था. इसमें चॉपर हेलीकॉप्टर और एक प्राइवेट जेट का इस्तेमाल किया गया.

कौन सा अंग कितनी देर तक दान किया जा सकता है

किसी आदमी की मृत्यु या ब्रेनडेड होने की स्थिति में 24 घंटे तक किडनी, 3 घंटे तक हार्ट, 2 घंटे तक आंखों का कॉर्निया, 12 घंटे तक लीवर, 10 घंटे तक लंग्स और 5 घंटे तक त्वचा का दान किया जा सकता है. जबलपुर में बलिराम कुशवाहा के मामले में डॉ. फोडेद्र सोलंकी ने बताया कि "बलिराम कुशवाहा के परिवार के लोगों ने कल दोपहर में अंगदान की सहमति दी.

इसके बाद बलिराम कुशवाहा के शरीर की ब्रेनडेड होने की स्थिति को दो बार एग्जामिन किया गया. क्योंकि नियम के अनुसार ऐसा करना जरूरी है. इसके बाद उनके शरीर के अंगों को जांचा गया, तो बलिराम के शरीर में हृदय और लीवर ठीक काम कर रहे थे, लेकिन किडनी ने काम करना लगभग बंद कर दिया था. इसलिए बलिराम कुशवाहा के शरीर से केवल हृदय और लीवर ही डोनेट किया जा सका."

ऑर्गन डोनेशन और क्रॉस मैच की प्रक्रिया

डॉ. संजय मिश्रा ने बताया की "जैसे ही बलिराम के परिवार ने सहमति दी, उन्होंने तुरंत इस बात की जानकारी सरकार की ऑर्गन डोनेशन फोरम पर सार्वजनिक की. इसके बाद ऑर्गन डोनेशन के लिए जरूरी मीटिंग कॉल की गई और प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के पहले डॉक्टर को यह तय करना था कि बलिराम के शरीर के अंग किसे दान किए जाएं. तब भोपाल एम्स में भर्ती एक मरीज के बारे में जानकारी मिली जिन्हें हृदय की जरूरत थी.

उनका ब्लड ग्रुप भी मृतक से मैच करता हुआ पाया गया. हृदय के बाद कोशिकाओं के मैच करने की प्रक्रिया शुरू होती है. यदि एक बार कोशिकाएं भी मैच हो जाती हैं तो यह ट्रांसप्लांट किया जा सकता है. जबलपुर में फिलहाल केवल किडनी ट्रांसप्लांट के लिए जरूरी कोशिकाओं के मैच करने की सुविधा उपलब्ध है."

ऑर्गन डोनेशन कैसे होता है?

मृत्यु के बाद सामान्य तौर पर अंतिम संस्कार किया जाता है, लेकिन बीते कुछ दिनों से लोगों के बीच में जागरूकता बढ़ रही है और लोग मेडिकल कॉलेज में जाकर अपनी देह मेडिकल स्टूडेंट्स के लिए दान कर रहे हैं. ताकि इसका इस्तेमाल अध्ययन के लिए किया जा सके. इसी तरह ब्रेनडेड मरीज के मामले में उसके परिजनों को यह फैसला करना होता है कि वे अपने मरीज के शरीर के अंगों का दान करना चाहते हैं कि नहीं.

छोटे शहरों में मशीनरी का है अभाव

अंगदान में सबसे महत्वपूर्ण काम दानदाता और दान लेने वाले शरीर के अंगों की कोशिकाओं का क्रॉस मैच होता है. यह एक जटिल प्रक्रिया है और इसकी सुविधा फिलहाल जबलपुर में नहीं है. मध्य प्रदेश में केवल इंदौर में यह सुविधा उपलब्ध है. यदि कोशिकाओं के क्रॉस मैच की सुविधा मध्य प्रदेश के दूसरे मेडिकल कॉलेज में भी शुरू हो जाए, तो अंगदान की प्रक्रिया को और बढ़ाया जा सकता है और ज्यादा लोगों की जान बचाई जा सकती है.

जबलपुर: मध्य प्रदेश के जबलपुर में गुरुवार को एक ग्रीन कॉरिडोर बनाकर लीवर और हार्ट को भोपाल और इंदौर ट्रांसप्लांट के लिए भेजा गया. आपने गौर किया होगा कि जब किसी मृतक का आर्गन डोनेट किया जाता है तो ग्रीन कॉरिडोर से ही उसे एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल ले जाया जाता है. अब सवाल उठता है कि ये ग्रीन कॉरिडोर क्या है. ऑर्गन ट्रांसफर करते समय यह क्यों बनाया जाता है. यह कैसे बनाया जाता है. आज हम इस लेख में इन्ही सवालों का जवाब जानेंगे. इसके अलावा ऑर्गन डोनेशन और ट्रांसप्लांट से जुड़े कई पहलुओं को भी जानेंगे.

ग्रीन कॉरिडोर क्या होता है?

ग्रीन कॉरिडोर एक स्पेशल रूट होता है, जो दो अस्पतालों के बीच बनाया जाता है. एक अस्पताल जहां कोई मरीज अपना अंगदान कर रहा हो और दूसरा वह अस्पताल जहां कोई दूसरे मरीज को यह अंगदान किया जा रहा हो. इन दोनों अस्पतालों को कनेक्ट करने वाले रास्ते को ब्लॉक कर दिया जाता है. जिससे उस रोड पर किसी वाहन की आवाजाही न हो सके और एंबुलेंस की मदद से जल्द से जल्द दान किए हुए अंग को जरूरतमंद तक पहुंचाया जा सके. इस दौरान उस रास्ते पर एक एंबुलेंस और दो सुरक्षा वाहन ही चलते हैं. इस काम में डॉक्टरों की टीम के अलावा पुलिस और प्रशासन का सहयोग भी बहुत महत्वपूर्ण होता है.

अंगदान करने की प्रक्रिया क्या है (ETV Bharat)

उदाहरण के तौर पर गुरुवार को जबलपुर में सुपर स्पेशलिटी अस्पताल से लेकर भोपाल एम्स तक के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया, तो जबलपुर के सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में डॉक्टरों ने ब्रेन डेड मरीज बलिराम कुशवाहा का हृदय निकाल उसे एक बॉक्स में पैक किया और प्रशासन ने सुपर स्पेशलिटी अस्पताल से लेकर डुमना विमानतल तक पूरे रास्ते को ब्लॉक कर दिया. डॉ संजय मिश्रा का कहना है कि "एक हार्ट को ट्रांसप्लांट करने के लिए मात्र 3 घंटे का समय मिलता है. इसलिए 3 घंटे से कम समय में इसे जबलपुर से भोपाल तक भेजने के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाना पड़ा."

Why MAKE green corridor donation
हेलिकॉप्टर से ले जाया गया अंग (ETV Bharat)

अंग प्रत्यारोपण कानून क्या है?

भारत में अंगदान करने के लिए मानव अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम 1994 बनाया गया था. इसके तहत अंगदान किया जाता है. भारत सरकार अंग प्रत्यारोपण बढ़ाना चाहती है इसलिए राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम देश में चल रहा है और इसके लिए 149 करोड़ का बजट भी सरकार ने तय किया है.

मध्य प्रदेश में पहली बार हार्ट के लिए ग्रीन कॉरिडोर

मध्य प्रदेश अंग प्रत्यारोपण के मामले में भारत के तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश से काफी पीछे है. संयुक्त संचालक स्वास्थ्य डॉ. संजय मिश्रा का कहना है कि यह पहला मामला है जब किसी सरकारी अस्पताल ने मध्य प्रदेश में अंग प्रत्यारोपण के मामले में हृदय ट्रांसप्लांट करने के लिए कॉरिडोर बनाया गया. जबलपुर में इसके पहले दो निजी अस्पतालों ने भी इस तरह का गलियारा बनाकर अंग दान करवाया लेकिन हृदय के मामले में यह पहला प्रयास था. इसमें चॉपर हेलीकॉप्टर और एक प्राइवेट जेट का इस्तेमाल किया गया.

कौन सा अंग कितनी देर तक दान किया जा सकता है

किसी आदमी की मृत्यु या ब्रेनडेड होने की स्थिति में 24 घंटे तक किडनी, 3 घंटे तक हार्ट, 2 घंटे तक आंखों का कॉर्निया, 12 घंटे तक लीवर, 10 घंटे तक लंग्स और 5 घंटे तक त्वचा का दान किया जा सकता है. जबलपुर में बलिराम कुशवाहा के मामले में डॉ. फोडेद्र सोलंकी ने बताया कि "बलिराम कुशवाहा के परिवार के लोगों ने कल दोपहर में अंगदान की सहमति दी.

इसके बाद बलिराम कुशवाहा के शरीर की ब्रेनडेड होने की स्थिति को दो बार एग्जामिन किया गया. क्योंकि नियम के अनुसार ऐसा करना जरूरी है. इसके बाद उनके शरीर के अंगों को जांचा गया, तो बलिराम के शरीर में हृदय और लीवर ठीक काम कर रहे थे, लेकिन किडनी ने काम करना लगभग बंद कर दिया था. इसलिए बलिराम कुशवाहा के शरीर से केवल हृदय और लीवर ही डोनेट किया जा सका."

ऑर्गन डोनेशन और क्रॉस मैच की प्रक्रिया

डॉ. संजय मिश्रा ने बताया की "जैसे ही बलिराम के परिवार ने सहमति दी, उन्होंने तुरंत इस बात की जानकारी सरकार की ऑर्गन डोनेशन फोरम पर सार्वजनिक की. इसके बाद ऑर्गन डोनेशन के लिए जरूरी मीटिंग कॉल की गई और प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के पहले डॉक्टर को यह तय करना था कि बलिराम के शरीर के अंग किसे दान किए जाएं. तब भोपाल एम्स में भर्ती एक मरीज के बारे में जानकारी मिली जिन्हें हृदय की जरूरत थी.

उनका ब्लड ग्रुप भी मृतक से मैच करता हुआ पाया गया. हृदय के बाद कोशिकाओं के मैच करने की प्रक्रिया शुरू होती है. यदि एक बार कोशिकाएं भी मैच हो जाती हैं तो यह ट्रांसप्लांट किया जा सकता है. जबलपुर में फिलहाल केवल किडनी ट्रांसप्लांट के लिए जरूरी कोशिकाओं के मैच करने की सुविधा उपलब्ध है."

ऑर्गन डोनेशन कैसे होता है?

मृत्यु के बाद सामान्य तौर पर अंतिम संस्कार किया जाता है, लेकिन बीते कुछ दिनों से लोगों के बीच में जागरूकता बढ़ रही है और लोग मेडिकल कॉलेज में जाकर अपनी देह मेडिकल स्टूडेंट्स के लिए दान कर रहे हैं. ताकि इसका इस्तेमाल अध्ययन के लिए किया जा सके. इसी तरह ब्रेनडेड मरीज के मामले में उसके परिजनों को यह फैसला करना होता है कि वे अपने मरीज के शरीर के अंगों का दान करना चाहते हैं कि नहीं.

छोटे शहरों में मशीनरी का है अभाव

अंगदान में सबसे महत्वपूर्ण काम दानदाता और दान लेने वाले शरीर के अंगों की कोशिकाओं का क्रॉस मैच होता है. यह एक जटिल प्रक्रिया है और इसकी सुविधा फिलहाल जबलपुर में नहीं है. मध्य प्रदेश में केवल इंदौर में यह सुविधा उपलब्ध है. यदि कोशिकाओं के क्रॉस मैच की सुविधा मध्य प्रदेश के दूसरे मेडिकल कॉलेज में भी शुरू हो जाए, तो अंगदान की प्रक्रिया को और बढ़ाया जा सकता है और ज्यादा लोगों की जान बचाई जा सकती है.

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