इतिहास के पन्नों में दर्ज गैस त्रासदी के आज 36 साल बीत चुके हैं, जिसमें न जाने कितने परिवारों ने अपनों को खो दिया, जिसका दर्द आज भी लोगों की जहन में ताजा है, इस त्रासदी में हजारों लोगों की जान चली गई थी, आज उन्हीं परिवारों तक पहुंची ईटीवी भारत की टीम.
2 दिसंबर की रात वो खौफनाक रात-घड़ी में जैसे ही करीब 11 बजे, यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी में मिथाइल आइसोसाइनाइट गैस का रिसाव शुरू हो गया. ठंड के साथ कोहरे की चादर ने गैस को थोड़ी देर रोका, लेकिन जैसे कोहरा छंटने लगा, गैस का फैलाव बढ़ने लगा. जानलेवा गैस फैक्ट्री के आसपास के इलाके को अपने चपेट में ले लिया. और देखते ही देखते भगदड़ मच गई, हर कोई इधर-उधर भाग रहा था. लेकिन भागते-भागते ही कई लोगों की सांसे फूलने लगीं, और वो जमीन पर गिर गए. और उनकी मौत हो गई,
2 और 3 दिसंबर की रात का खौफनाक मंजर
हमीदिया अस्पताल में हजारों लोग पहुंच गए, अस्पताल का बेड कम पड़ गया, डॉक्टर इधर से उधर भागते दिखे, लाशों की गिनती तक नहीं हो पा रही थी, हर ओर चीख पुकार...और सड़कों पर लाशों की ढेर, चश्मदीद आज भी उस खौफनाक मंजर से उबर नहीं पाए हैं. और उस त्रासदी को बताते बताते उनका गला रुंध जाता है, आखों के कोर गिले हो जाते हैं.
पहली चश्मदीद, सलमा बी
सलमा बी बताती हैं कि उस रात ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने घर में मिर्ची जलाकर उनको कमरे में बंद कर दिया हो. आंखों में भारी जलन हो रही थी, किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था आखिर हुआ क्या है, मेरे परिवार में उस वक्त 5 लोग थे सब इधर-उधर भागने लगे, आंखों में जलन के बाद हम बेहोश हो गए और उसके बाद कुछ पता नहीं चला, जब गैस का रिसाव हुआ था तब लोगों ने यह भी अफवाह फैलाई थी, कि सिख समाज के लोगों ने जहरीली गैस छोड़ दी है, क्योंकि उस वक्त इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी. इस त्रासदी के दौरान उन्हे मुआवजे के तौर पर सिर्फ 200 रुपए दिए गए.
दूसरी चश्मदीद, कुमारी बाई
कुमारी बाई बतातीं हैं उस रात ने उनकी हंसती खेलती जिंदगी को बर्बाद कर दिया, उसका दर्द आज भी उनकी आखों में साफ झलता है, कुमारी बाई उस त्रासदी का दंश आज भी झेल रहीं हैं. उनके दोनों बच्चे पूरी तरह अपाहिज हो गए. उस त्रासदी को याद कर कुमारी बाई सहम जाती है, कुमारी बाई बताती हैं, कि वो मंगलवारा में रहती थी, सब अपनी जान बचाने के लिए इधर उधर भाग रहे थे कई की जान तो सिर्फ भगदड़ में ही चली गई, पिता ने परिवार की जान बचाने के लिए ऑटो रिक्शा में पूरे परिवार को बैठाकर शहर से दूर सांची शहर लेकर गए, तब जाकर जान बची, लेकिन जहरीली गैस ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था. जब उनके बच्चे हुए तो अपाहिज ही पैदा हुए. गैस का असर पानी की सप्लाई में भी हुआ, जहरीला पानी पीने से उनके पिता को कैंसर हो गया, वहीं उनके पति को भी सीने में तकलीफ है, और आज भी वह बिना गोली खाए कोई काम नहीं कर पाते हैं, सिर में काफी दर्द रहता है. वहीं मुआवजे के नाम पर सिर्फ दिखावा किया गया.
तीसरा चश्मदीद, सुरेश
सुरेश बताते हैं, उस रात जब गैस का रिसाव हुआ, तब वह सो रहे थे, यूनियन कार्बाइड से धुआं निकलते हुए दिखाई दिया, और उसके बाद आंखों में जलन के साथ पसीना आने लगा. गैस रिसाव के बाद वह घर छोड़कर भागने लगे, लेकिन इसी बीच वो नाले के पास बेहोश होकर गिर गए, फिर उसके बाद कुछ पता नहीं लग पाया क्या हुआ. गैस के कारण पूरा शरीर कमजोर हो गया था, जिसके चलते आज वो कोई भी काम बिना सहारे के नहीं कर पाते हैं. अपनों को खोने का दर्द क्या होता है, यह सुरेश से ज्यादा और कौन जानता होगा, सुरेश कहते हैं कि मुआवजा राशि पाने के लिए उन्होंने सालों इंतजार किया, लेकिन आज तक उन्हे मुआवजा नहीं मिला,
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस त्रासदी में 15 हजार लोगों की जान चली गई. लेकिन असल हकीकत कुछ और ही है, इस त्रासदी के 36 साल बीत चुके हैं, लेकिन आज भी गैस पीड़ितों को इंसाफ का इंतजार है, लेकिन ये इंतजार कब खत्म होगा, कोई नहीं जानता, गैस पीड़ित कहते हैं, कि न्याय पाने के लिए इतने बरस जी लिए, लेकिन मरने के बाद ही ये कहानी खत्म होगी.