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भोपाल गैस त्रासदी: जिस दर्द की नहीं कोई दवा, आज भी जारी है गैस पीड़ितों का संघर्ष

3 दिसंबर आते ही हर साल लोगों को भोपाल गैस त्रासदी की यादें झकझोर कर रख देती हैं. भोपाल गैस त्रासदी के 36 साल बाद भी गैस पीड़ितों के दर्द की कोई दवा नहीं है. औद्योगिक इतिहास की वो सबसे बड़ी त्रासदी जिसने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया था, आज भी लोगों के जहन में जिंदा है.

bhopal gas tragedy
भोपाल गैस त्रासदी
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Published : Dec 2, 2020, 2:34 PM IST

भोपाल। 2-3 दिसम्बर साल 1984 को तालों की नगरी भोपाल में हुई गैस त्रासदी ने कई कई परिवारों को रातों-रात उजाड़ दिया. तबाही का वो मंजर इतना खौफनाक था कि, 36 साल बाद आज भी लोगों की रुह कांप जाती है. उस रात हजारों की संख्या में लोगों की जान गई. ये एक ऐसी त्रासदी थी, जो इससे पहले दुनिया में कहीं नहीं हुई थी.

डॉक्टर्स भी नहीं कर पाए इलाज

2-3 दिसम्बर की रात जब यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव शुरू हुआ, तो चारों ओर भगदड़ मच गई. लोगों को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि, वो क्या करें और जब परेशान होकर लोग अस्पतालों की तरफ दौड़े, तो वहां डॉक्टरों को ये नहीं पता था कि, मरीजों का इलाज कैसे करना है. काली मनहूस रात में धीरे- धीरे जब मौत ने तांडव मचाना शुरू किया तो, अस्पताल लाशों से पट गए. एक अनुमान के मुताबिक गैस त्रासदी के समय करीब 4 हज़ार लोगों की मौत हुई थी.

गैस पीड़ितों के लिए बनाया गया सुपर स्पेशलिस्ट हॉस्पिटल

उस समय की स्थिति को तो संभाला नहीं जा सका, लेकिन गैस पीड़ितों पर गैस के हुए स्थाई नुकसान को देखते हुए केंद्र सरकार ने खासतौर पर गैस पीड़ितों के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर की स्थापना की, ताकि गैस पीड़ितों को सही इलाज मुहैया कराया जा सके. विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति की गई आज की हालत यह है कि, गैस पीड़ितों को तो छोड़ो सामान्य मरीजों को भी यहां जाकर इलाज के लिए परेशान होना पड़ता है. अस्पताल के लगभग 5 विभागों के डॉक्टर पिछले कुछ महीनों में जॉब छोड़ चुके हैं.

आज भी गैस पीड़ितों का संघर्ष जारी

गैस पीड़ितों को आज भी है इलाज का इंतजार

बीएमएचआरसी अस्पताल खासतौर पर गैस पीड़ितों के इलाज के लिए बनाया गया था, लेकिन अब आलम यह है कि वहां पर गैस पीड़ितों को केवल नाम का इलाज ही मिल पाता है. कई बार तो यह स्थिति होती है कि, मरीजों को भगा ही दिया जाता है. यदि उन्हें डॉक्टर से परामर्श मिल भी जाए, तो बाकी की दवाइयां उन्हें बाहर से ही खरीदनी पड़ती है. राजधानी में कई ऐसे गैस पीड़ित हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति इतनी ठीक नहीं है कि वह किसी निजी अस्पताल से इलाज का खर्चा उठा सके, इसलिए बीएमएचआरसी में मिल रहे थोड़े बहुत इलाज पर ही निर्भर हैं.

गैस पीड़ितों का संघर्ष नहीं हुआ खत्म

उषा और उनके पति मुन्नालाल बीएमएचआरसी से पिछले कई सालों से इलाज ले रहे हैं. मुन्नालाल गैस पीड़ित हैं और पिछले 11 सालों से उनकी ये हालत है कि, बिस्तर से उठ-बैठ नहीं पाते हैं. इनकी पत्नी उषा का कहना है कि, बीएमएचआरसी में इलाज नहीं मिलता, हम मजबूर हैं. इसलिए वहीं जाकर इलाज करवाना पड़ता है. इसी तरह अपाहिज हो चुके अकरम मियां भी इस स्थिति में नहीं है कि, उन्हें अस्पताल ले जाया जा सके. उनके परिजनों ने बताया कि, थोड़ा बहुत इलाज मिल जाता है, बाकी दवाइयां हम बाहर से खरीदते हैं.

इलाज नहीं, मौत परोस रहा बीएमएचआरसी

गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता रचना ढिंगरा का कहना है कि, बीएमएचआरसी में ऐसा कुप्रबंधन है कि, मरीजों को वहां इलाज नहीं मौत मिलती है. कोरोना काल में अस्पताल प्रबंधन ने उसे बंद कर दिया था और सिर्फ कोविड-19 के मरीजों का इलाज किया जाता था. उस समय 76 मरीज भर्ती थे, जिन्हें रातों रात भगाया गया, जिनमें से बाद में 8 लोगों की मौत हो गयी. बाद में कोर्ट के दखल के बाद इसे फिर से गैस पीड़ितों के लिये शुरू किया गया. अब तक वहां से आइसोलेशन वार्ड में 13 मरीजों की मौत कोविड 19 से हुई, जिसे छुपाया गया. इसका खुलासा आरटीआई से हुआ.

⦁ पिछले साल आईपीडी में भर्ती हुए और इस साल भर्ती हुए मरीजों के आंकड़ों की तुलना की जाए तो ये बात सामने आती है कि, 8% से 12% की गिरावट आई है. डायलिसिस, सिटी स्कैन, एमआरआई की जांचे बन्द हो गयी थी.

⦁ आईसीएमआर के तहत आता है अस्पताल- बता दें कि भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एन्ड रिसर्च सेंटर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के तहत संचालित किया जा रहा है.

⦁ यहां हो रही लापरवाही को लेकर कई बार हाई कोर्ट भी बीएमएचआरसी को फटकार लगा चुका है पर स्थिति सुधारने का नाम ही नहीं ले रही है.

भोपाल। 2-3 दिसम्बर साल 1984 को तालों की नगरी भोपाल में हुई गैस त्रासदी ने कई कई परिवारों को रातों-रात उजाड़ दिया. तबाही का वो मंजर इतना खौफनाक था कि, 36 साल बाद आज भी लोगों की रुह कांप जाती है. उस रात हजारों की संख्या में लोगों की जान गई. ये एक ऐसी त्रासदी थी, जो इससे पहले दुनिया में कहीं नहीं हुई थी.

डॉक्टर्स भी नहीं कर पाए इलाज

2-3 दिसम्बर की रात जब यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव शुरू हुआ, तो चारों ओर भगदड़ मच गई. लोगों को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि, वो क्या करें और जब परेशान होकर लोग अस्पतालों की तरफ दौड़े, तो वहां डॉक्टरों को ये नहीं पता था कि, मरीजों का इलाज कैसे करना है. काली मनहूस रात में धीरे- धीरे जब मौत ने तांडव मचाना शुरू किया तो, अस्पताल लाशों से पट गए. एक अनुमान के मुताबिक गैस त्रासदी के समय करीब 4 हज़ार लोगों की मौत हुई थी.

गैस पीड़ितों के लिए बनाया गया सुपर स्पेशलिस्ट हॉस्पिटल

उस समय की स्थिति को तो संभाला नहीं जा सका, लेकिन गैस पीड़ितों पर गैस के हुए स्थाई नुकसान को देखते हुए केंद्र सरकार ने खासतौर पर गैस पीड़ितों के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर की स्थापना की, ताकि गैस पीड़ितों को सही इलाज मुहैया कराया जा सके. विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति की गई आज की हालत यह है कि, गैस पीड़ितों को तो छोड़ो सामान्य मरीजों को भी यहां जाकर इलाज के लिए परेशान होना पड़ता है. अस्पताल के लगभग 5 विभागों के डॉक्टर पिछले कुछ महीनों में जॉब छोड़ चुके हैं.

आज भी गैस पीड़ितों का संघर्ष जारी

गैस पीड़ितों को आज भी है इलाज का इंतजार

बीएमएचआरसी अस्पताल खासतौर पर गैस पीड़ितों के इलाज के लिए बनाया गया था, लेकिन अब आलम यह है कि वहां पर गैस पीड़ितों को केवल नाम का इलाज ही मिल पाता है. कई बार तो यह स्थिति होती है कि, मरीजों को भगा ही दिया जाता है. यदि उन्हें डॉक्टर से परामर्श मिल भी जाए, तो बाकी की दवाइयां उन्हें बाहर से ही खरीदनी पड़ती है. राजधानी में कई ऐसे गैस पीड़ित हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति इतनी ठीक नहीं है कि वह किसी निजी अस्पताल से इलाज का खर्चा उठा सके, इसलिए बीएमएचआरसी में मिल रहे थोड़े बहुत इलाज पर ही निर्भर हैं.

गैस पीड़ितों का संघर्ष नहीं हुआ खत्म

उषा और उनके पति मुन्नालाल बीएमएचआरसी से पिछले कई सालों से इलाज ले रहे हैं. मुन्नालाल गैस पीड़ित हैं और पिछले 11 सालों से उनकी ये हालत है कि, बिस्तर से उठ-बैठ नहीं पाते हैं. इनकी पत्नी उषा का कहना है कि, बीएमएचआरसी में इलाज नहीं मिलता, हम मजबूर हैं. इसलिए वहीं जाकर इलाज करवाना पड़ता है. इसी तरह अपाहिज हो चुके अकरम मियां भी इस स्थिति में नहीं है कि, उन्हें अस्पताल ले जाया जा सके. उनके परिजनों ने बताया कि, थोड़ा बहुत इलाज मिल जाता है, बाकी दवाइयां हम बाहर से खरीदते हैं.

इलाज नहीं, मौत परोस रहा बीएमएचआरसी

गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता रचना ढिंगरा का कहना है कि, बीएमएचआरसी में ऐसा कुप्रबंधन है कि, मरीजों को वहां इलाज नहीं मौत मिलती है. कोरोना काल में अस्पताल प्रबंधन ने उसे बंद कर दिया था और सिर्फ कोविड-19 के मरीजों का इलाज किया जाता था. उस समय 76 मरीज भर्ती थे, जिन्हें रातों रात भगाया गया, जिनमें से बाद में 8 लोगों की मौत हो गयी. बाद में कोर्ट के दखल के बाद इसे फिर से गैस पीड़ितों के लिये शुरू किया गया. अब तक वहां से आइसोलेशन वार्ड में 13 मरीजों की मौत कोविड 19 से हुई, जिसे छुपाया गया. इसका खुलासा आरटीआई से हुआ.

⦁ पिछले साल आईपीडी में भर्ती हुए और इस साल भर्ती हुए मरीजों के आंकड़ों की तुलना की जाए तो ये बात सामने आती है कि, 8% से 12% की गिरावट आई है. डायलिसिस, सिटी स्कैन, एमआरआई की जांचे बन्द हो गयी थी.

⦁ आईसीएमआर के तहत आता है अस्पताल- बता दें कि भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एन्ड रिसर्च सेंटर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के तहत संचालित किया जा रहा है.

⦁ यहां हो रही लापरवाही को लेकर कई बार हाई कोर्ट भी बीएमएचआरसी को फटकार लगा चुका है पर स्थिति सुधारने का नाम ही नहीं ले रही है.

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