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कुपोषण की जंग में प्रदेश सरकार की योजनाएं फेल, आंकड़ों ने खोल दी पोल - सुसनेर अस्पताल

बच्चों में कुपोषण दूर करने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग कई योजना चला रहा है और आंकड़े चौंकाने वाले हैं. हालात ये हैं कि 6 हजार 541 बच्चों को सप्ताह में 6 दिन पोषण आहार दिया जा रहा है, फिर भी नहीं सुधर रहे हैं हालात.

कपोषण में नहीं सुधर रहे हालात
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Published : Nov 11, 2019, 9:47 AM IST

Updated : Nov 21, 2019, 7:37 AM IST

आगर मालवा। मध्यप्रदेश में बच्चों में कुपोषण दूर करने के लिए प्रदेश सरकार कई योजनाएं चल रही है, लेकिन सुसनेर विकासखंड में ये योजनाएं जमीनी स्तर पर कितनी लागू हो रही है, इसकी जिम्मेदार अधिकारियों को खबर तक नहीं है. अगर नतीजों पर गौर करें तो तथ्य चौंकाने वाले सामने आए हैं. हालात ये हैं कि विकासखंड के अतंर्गत 182 आंगनबाड़ी केंद्र हैं, जिनमें पिछले छह महीने से 5 साल के बच्चों की संख्या 12 हजार 984 है. इनमें से 6 हजार 541 बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें पोषण आहार भोजन विभाग देता है. इसके बावजूद इनमें से 2 हजार 346 बच्चे कुपोषित और 264 बच्चे अतिकुपोषित शासकीय आकड़ों में दर्ज हैं. इस तरह से कुल 2 हजार 610 बच्चे कुपोषण का शिकार हैं.

कुपोषण के नहीं सुधर रहे हालात

खास बात ये है कि बच्चों को कुपोषण से दूर करने के लिए विभाग बड़े-बड़े दावे करता है और लाखों रुपए भी खर्च कर रहा है, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात है. अब गौर करने वाली बात ये है कि विभाग की ओर से जो भोजन बच्चों को दिया जाता है, उसके मुताबिक 12 से 15 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा और 500 के लगभग कैलोरी होनी चाहिए, लेकिन पिछले एक साल में विभाग ने एक बार भी इस बात की जांच नहीं करवाई है. बच्चों को जो पोषण आहार के नाम पर दिया जा रहा है, उसमें प्रोटीन और कैलोरी की निर्धारित मात्रा कितनी है.

क्या कहते हैं आंकड़े ?

  • साल 2018-19 में 148 बच्चे भर्ती किये गये, इनमें से 119 बच्चे कुपोषण और 29 अति कुपोषण के शिकार थे.
  • 2019-20 के 5 महीनों में 122 बच्चे भर्ती हुए, जिनमें 86 कुपोषित बच्चे और 36 अतिकुपोषित थे.

लिहाजा ये आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि महिला एवं बाल विकास विभाग कुपोषण को दूर करने के लाख दावे कर रहा हो, लेकिन नतीजा कुछ और ही दिख रहा है.

सुसनेर अस्पताल के कुपोषण वार्ड में भर्ती बच्ची की मां गुर्जरबाई ने बताया कि उनकी बेटी का पेट बढ़ता ही जा रहा है. उसे यहां भर्ती किए हुए काफी समय हो चुका है, लेकिन उसके बाद भी हालत में सुधार नहीं हो पा रहा है. उन्होंने बताया कि पिछले साल भी उनके एक बेटे की मौत ठीक से आहार और उपचार नहीं मिलने से हो गई थी.

वहीं महिला एवं बाल विकास विभाग की परियोजना अधिकारी मनीषा चौबे अपने विभाग की नाकामियों को छिपाते हुए कहती है कि विभाग द्वारा कुपोषण को दूर करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं और विभागीय सुविधाओं और सेवाओं में कोई कमी नहीं है, जबकि अधिकारी ने खुद माना कि पिछले 1 साल से पोषण आहार का लैब टेस्ट नहीं करवाया है.

आगर मालवा। मध्यप्रदेश में बच्चों में कुपोषण दूर करने के लिए प्रदेश सरकार कई योजनाएं चल रही है, लेकिन सुसनेर विकासखंड में ये योजनाएं जमीनी स्तर पर कितनी लागू हो रही है, इसकी जिम्मेदार अधिकारियों को खबर तक नहीं है. अगर नतीजों पर गौर करें तो तथ्य चौंकाने वाले सामने आए हैं. हालात ये हैं कि विकासखंड के अतंर्गत 182 आंगनबाड़ी केंद्र हैं, जिनमें पिछले छह महीने से 5 साल के बच्चों की संख्या 12 हजार 984 है. इनमें से 6 हजार 541 बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें पोषण आहार भोजन विभाग देता है. इसके बावजूद इनमें से 2 हजार 346 बच्चे कुपोषित और 264 बच्चे अतिकुपोषित शासकीय आकड़ों में दर्ज हैं. इस तरह से कुल 2 हजार 610 बच्चे कुपोषण का शिकार हैं.

कुपोषण के नहीं सुधर रहे हालात

खास बात ये है कि बच्चों को कुपोषण से दूर करने के लिए विभाग बड़े-बड़े दावे करता है और लाखों रुपए भी खर्च कर रहा है, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात है. अब गौर करने वाली बात ये है कि विभाग की ओर से जो भोजन बच्चों को दिया जाता है, उसके मुताबिक 12 से 15 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा और 500 के लगभग कैलोरी होनी चाहिए, लेकिन पिछले एक साल में विभाग ने एक बार भी इस बात की जांच नहीं करवाई है. बच्चों को जो पोषण आहार के नाम पर दिया जा रहा है, उसमें प्रोटीन और कैलोरी की निर्धारित मात्रा कितनी है.

क्या कहते हैं आंकड़े ?

  • साल 2018-19 में 148 बच्चे भर्ती किये गये, इनमें से 119 बच्चे कुपोषण और 29 अति कुपोषण के शिकार थे.
  • 2019-20 के 5 महीनों में 122 बच्चे भर्ती हुए, जिनमें 86 कुपोषित बच्चे और 36 अतिकुपोषित थे.

लिहाजा ये आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि महिला एवं बाल विकास विभाग कुपोषण को दूर करने के लाख दावे कर रहा हो, लेकिन नतीजा कुछ और ही दिख रहा है.

सुसनेर अस्पताल के कुपोषण वार्ड में भर्ती बच्ची की मां गुर्जरबाई ने बताया कि उनकी बेटी का पेट बढ़ता ही जा रहा है. उसे यहां भर्ती किए हुए काफी समय हो चुका है, लेकिन उसके बाद भी हालत में सुधार नहीं हो पा रहा है. उन्होंने बताया कि पिछले साल भी उनके एक बेटे की मौत ठीक से आहार और उपचार नहीं मिलने से हो गई थी.

वहीं महिला एवं बाल विकास विभाग की परियोजना अधिकारी मनीषा चौबे अपने विभाग की नाकामियों को छिपाते हुए कहती है कि विभाग द्वारा कुपोषण को दूर करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं और विभागीय सुविधाओं और सेवाओं में कोई कमी नहीं है, जबकि अधिकारी ने खुद माना कि पिछले 1 साल से पोषण आहार का लैब टेस्ट नहीं करवाया है.

Intro:आगर। कुपोषण को दूर करने के लिए शासन कई योजनाएं चला रहा है, लेकिन सुसनेर विकासखंड में जमीनी स्तर पर इन योजनाओं का क्रियान्वयन किस तरह से हो रहा है। और उस क्रिन्यानवयन से कुपोषित बच्चों को कितना फायदा पहुंच रहा है। उसको देखने वाला कोई नहीं है। विकासखंड के अन्तर्गत 182 आंगनवाडी केन्द्रों में 6 माह से 5 वर्ष तक के दर्ज बच्चो की संख्या 12 हजार 984 है, इनमें से 6 हजार 541 बच्चे ऐसे है, जिन्है पोषण आहार और नाश्ता तथा भोजन विभाग के द्वारा दिया जाता है। इनमें से भी 2 हजार 346 बच्चे कुपोषित और 264 बच्चे अतिकुपोषित शासकीय आकडों में दर्ज है। और इसे दूर करने के लिए विभाग एक बडी रकम खर्च कर रहा है। इन बच्चों को जो पोषण आहार, नाश्ता और भोजन दिया जाता है। उसमें नियमों के अनुसार 12 से 15 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा और 500 के लगभग कैलोरी होना चाहिए। ये नियम भले ही लागू हो, किन्तु पिछले एक वर्ष में विभाग ने एक बार भी इस बात की जांच नहीं करवाई है। कि प्रोटीन और कैलोरी की निर्धारित मात्रा पोषण आहार में बच्चों को दी भी जा रही है या नहीं।Body:वर्ष 2018-19 में 148 बच्चे भर्ती हुएं तो 2019-20 में 5 माह में ही 122 बच्चे भर्ती

पोषण पुर्नवास केन्द्र जो कि सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में बना हुआ है। उसमें पिछले 5 माह में कई अतिकुपोषित बच्चें भर्ती हुएं है। जिनमें अंजु पिता नाहरसिंह उम्र 2 वर्ष। इसे जब भर्ती कराया गया जब उसका वजन 4 किलो 600 ग्राम था। जबकि स्वस्थ्य बच्चें का वजन 9 किलो 500 ग्राम होना चाहिए। परसुलिया निवासी जितेन्द्र पिता बालचंद उम्र 1 वर्ष को जब भर्ती कराया गया तब उसका वजन 5 किलो 700 ग्राम था। जबकि उसका वजन 8 किलो होना चाहिए। वित्तीय वर्ष 2018-19 में कुल 148 बच्चे इस केन्द्र में भर्ती है, जिनमें से 119 कुपोषित तथा 29 अतिकुपोषित बच्चे भर्ती है। इसके विपरित वित्तीय वर्ष 2019-20 में अप्रेल से सितम्बर माह में ही 122 बच्चे भर्ती हुएं है। जिनमें 36 अतिकुपोषित तथा 86 कुपोषित बच्चे भर्ती हुएं थे। इन आंकडो से यह बात स्पष्ट हो जाती है। कि महिला एवं बाल विकास विभाग कुपोषण के लिए भले ही कितनी ही मेहनत करे किन्तु कही न कही खामी जरूर है।Conclusion:आंगनवाडीयों में दर्ज बच्चों में से 20 प्रतिशत से भी अधिक है कुपोषित

सुसनेर विकासखंड में महिला बाल विकास विभाग के अधीन 182 आंगनवाडीयों में 6 माह से 5 वर्ष तक के कूल 12 हजार 984 बच्चे दर्ज है। इनमें से 20 प्रतिशत से भी अधिक बच्चे कुपोषण का शिकार है। और इन बच्चों को कुपोषण से बाहर निकालने के लिए विभाग बच्चे पर 12 रूपये प्रतिदिन और गर्भवती पर 9 रूपये प्रतिदिन खर्च करता है। उसके बाद भी नहीं सुधर पा रहे है हालात। कुल दर्ज 12 हजार 984 बच्चों में से 2346 कुपोषित और 264 अतिकुपोषित बच्चे है। इस तरह से कूल 2 हजार 610 बच्चे कुपोषण का शिकार है।

सुसनेर अस्पताल के कुपोषण वार्ड में भर्ती बालिका की मां गुर्जरबाई ने बताया कि उनकी बेटी का पेट बढता ही जा रहा है। उसको यहां भर्ती किये हुएं काफी समय हो चुका है, लेकिन उसके बाद भी हालत में सुधार नहीं हो पा रहा है। उन्होने बताया कि बीते वर्षो भी उनके एक बेटे की मृत्यु भी ठीक से उपचार नहीं व आहार नहीं मिलने के कारण हो गई थी।

महिला एवं बाल विकास विभाग की परियोजना अधिकारी मनीषा चौबे ने बताया कि विभाग के द्वारा बच्चों और गर्भवती महिलाओं को पोषण आहार समय-समय पर दिया जाता है। पोषण आहार में 12 से 15 प्रतिशत प्रोटीन और 500 ग्राम कैलोरी होना चाहिए। विभाग ने पिछले 1 साल से पोषण आहार का लेब टेस्ट नहीं करवाया है। विभाग के द्वारा कुपोषण को दूर करने के लिए प्रयास किए जा रहे है।

विज्युअल- कुपोषण वार्ड में भर्ती बालिका, कुपोषण वार्ड में महिलाएं व भर्ती बच्चे।
महिला एवं बाल विकास विभाग के कार्यालय का।
आंगनवाडी केन्द्र व उसमें मौजूद बच्चे।

बाईट- गुर्जर बाई, पीडित बच्चे की मां, सुसनेर।
बाईट- मनीषा चौबे, परियोजना अधिकारी, महिला एवं बाल विकास विभाग, सुसनेर।
Last Updated : Nov 21, 2019, 7:37 AM IST
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