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'बीजेपी एक प्राइवेट लिमिटेड बन गई है, अटल- आडवाणी से जुड़े वरिष्ठों को कर रही है साइड लाइन' - लोकसभा चुनाव 2019

अनूप मिश्रा का टिकट काटे जाने पर कांग्रेस बीजेपी का घेराव कर रही है. कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी अपने वरिष्ठ नेताओं को साइड लाइन कर रही है. वहीं बीजेपी का कहना है कि अनूप मिश्रा कल तक चुनाव जीतते थे अब वह चुनाव जिताएंगे.

क्या बीजेपी कर रही है वरिष्ठों को साइड लाइन?
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Published : Apr 5, 2019, 6:49 PM IST

ग्वालियर। बीजेपी ने पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेई के भांजे अनूप मिश्रा का टिकट काट दिया है. कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी अब अटल और आडवाणी से जुड़े लोगों को साइड लाइन करने में जुटी हुई है, अनुप मिश्रा भी उन्हीं में से एक हैं. कांग्रेस ने बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा कि बीजेपी एक पार्टी नहीं बल्कि प्राईवेट लिमिटेड बन चुकी है, जिसके सीएमडी नरेंद्र मोदी हैं तो एमडी अमित शाह हैं.

क्या बीजेपी कर रही है वरिष्ठों को साइड लाइन?
वहीं अनूप मिश्रा का टिकट काटे जाने पर बीजेपी का कहना है कि कल तक वो चुनाव जीतते थे अब वह चुनाव जिताएंगे.

सियासी गलियारों में चर्चा है कि अनूप मिश्रा का राजनीतिक भविष्य दांव पर लग गया है. एक जमाने में प्रदेश के कद्दावर नेताओं में शुमार अनूप मिश्रा ने ग्वालियर से अपनी दावेदारी भले ही पेश की हो लेकिन उन्हें टिकट मिलने के आसार कम ही नजर आ रहे हैं. राजनीतिक जानकारों की मानें तो उनकी यह स्थिति बार-बार सीट बदलने से हुई है.

सन् 1990 में अनुप मिश्रा ने पहली बार भितरबार यानी गिर विधानसभा से चुनाव जीता था. लेकिन 1993 में उन्हें इस सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा. 1998 में उन्होंने अपनी सीट बदल ली और वह लश्कर ग्वालियर यानी ग्वालियर दक्षिण सीट से मैदान में उतरे और चुनाव में फतेह हासिल की. लेकिन, 2003 में उन्होंने दक्षिण विधानसभा यानी ग्वालियर पूर्व का रुख किया. इस सीट से उन्होंने 2003 और 2008 के चुनावों में जीत दर्ज की.

2013 में वो फिर भितरवार का रुख कर गए. लेकिन, इस बार जनता ने उन्हें नकार दिया. विधानसभा चुनाव में मिली हार के बावजूद पार्टी ने साल 2014 में उन्हें मुरैना से लोकसभा प्रत्याशी बनाया. एक बार फिर अनुप मिश्रा की किस्मत ने उनका साथ दिया और वह एक लाख से ज्यादा वोटों से चुनाव जीत गए.

उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता डॉक्टर गोविंद सिंह को हराया. लेकिन, यहां उनका मन नहीं लगा और वह फिर से भितरवार से चुनावी मैदान में उतर गये. लेकिन यहां उनका जादू नहीं चल सका. पार्टी ने भी लोकसभा में उनकी जगह मुरैना से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया. अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस चुनाव के साथ अनूप मिश्रा का चुनावी सफर खत्म हो जाएगा?

ग्वालियर। बीजेपी ने पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेई के भांजे अनूप मिश्रा का टिकट काट दिया है. कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी अब अटल और आडवाणी से जुड़े लोगों को साइड लाइन करने में जुटी हुई है, अनुप मिश्रा भी उन्हीं में से एक हैं. कांग्रेस ने बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा कि बीजेपी एक पार्टी नहीं बल्कि प्राईवेट लिमिटेड बन चुकी है, जिसके सीएमडी नरेंद्र मोदी हैं तो एमडी अमित शाह हैं.

क्या बीजेपी कर रही है वरिष्ठों को साइड लाइन?
वहीं अनूप मिश्रा का टिकट काटे जाने पर बीजेपी का कहना है कि कल तक वो चुनाव जीतते थे अब वह चुनाव जिताएंगे.

सियासी गलियारों में चर्चा है कि अनूप मिश्रा का राजनीतिक भविष्य दांव पर लग गया है. एक जमाने में प्रदेश के कद्दावर नेताओं में शुमार अनूप मिश्रा ने ग्वालियर से अपनी दावेदारी भले ही पेश की हो लेकिन उन्हें टिकट मिलने के आसार कम ही नजर आ रहे हैं. राजनीतिक जानकारों की मानें तो उनकी यह स्थिति बार-बार सीट बदलने से हुई है.

सन् 1990 में अनुप मिश्रा ने पहली बार भितरबार यानी गिर विधानसभा से चुनाव जीता था. लेकिन 1993 में उन्हें इस सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा. 1998 में उन्होंने अपनी सीट बदल ली और वह लश्कर ग्वालियर यानी ग्वालियर दक्षिण सीट से मैदान में उतरे और चुनाव में फतेह हासिल की. लेकिन, 2003 में उन्होंने दक्षिण विधानसभा यानी ग्वालियर पूर्व का रुख किया. इस सीट से उन्होंने 2003 और 2008 के चुनावों में जीत दर्ज की.

2013 में वो फिर भितरवार का रुख कर गए. लेकिन, इस बार जनता ने उन्हें नकार दिया. विधानसभा चुनाव में मिली हार के बावजूद पार्टी ने साल 2014 में उन्हें मुरैना से लोकसभा प्रत्याशी बनाया. एक बार फिर अनुप मिश्रा की किस्मत ने उनका साथ दिया और वह एक लाख से ज्यादा वोटों से चुनाव जीत गए.

उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता डॉक्टर गोविंद सिंह को हराया. लेकिन, यहां उनका मन नहीं लगा और वह फिर से भितरवार से चुनावी मैदान में उतर गये. लेकिन यहां उनका जादू नहीं चल सका. पार्टी ने भी लोकसभा में उनकी जगह मुरैना से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया. अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस चुनाव के साथ अनूप मिश्रा का चुनावी सफर खत्म हो जाएगा?

Intro:ग्वालियर- भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के भांजे अनूप मिश्रा का राजनीतिक भविष्य दांव पर लग गया है क्या प्रत्याशी के तौर पर उनका कैरियर हाशिए पर चला गया है कुछ इसी तरह के सवाल इन दिनों राजनीति के गलियारों में घूम रही है एक जमाने में प्रदेश के कद्दावर नेताओं के तौर पर जाने वाली अनुप मिश्रा का बीजेपी से मुरैना से टिकट काट दिया है वही हुआ ग्वालियर से अपनी दावेदारी भले ही पेश कर रहे हो लेकिन उनको टिकट मिलने की संभावना कम ही नजर आ रही है। कांग्रेस जहां अनुप मिश्रा की टिकट न दिए जाने पर चुटकी ले रही है तो वहीं बीजेपी का कहना है कि कल तक वह चुनाव जीतते थे अब वह चुनाव जिताएंगे ।


Body:वहीं राजनीतिक जानकारी की माने तो उनकी यह स्थिति बार-बार सीट बदलने से हुई है। साल 1990 में अनुप मिश्रा पहली बार गिर विधानसभा जो कि अब भितरबार के नाम से जानी जाती है वहां से उन्होंने चुनाव जीता था उन्होंने इस सीट पर उस जमाने में कांग्रेस के दिग्गज कहै जाने वाले बालेंद्र शुक्ला को चुनावी मैदान में पटखनी दी थी। 1993 का चुनाव भी अनूप मिश्रा ने इसी सीट से लड़ा ।लेकिन उन्हें इस बार हार का सामना करना पड़ा था साल 1998 में उन्होंने अपनी सीट बदल ली और वह लश्कर ग्वालियर जो कि ग्वालियर दक्षिण के नाम से जानी जाती है वह सीट मैदान में उतरे और फतेह हासिल की। उसके बाद वह प्रदेश में बड़ा नेता के रूप में उभरे । लेकिन चुनाव 2003 में उन्होंने फिर एक बार विधानसभा बदली और इस बार दक्षिण विधानसभा वर्तमान की ग्वालियर पूर्व से लड़ने चले गए यहां उन्होंने न केवल 2003 का चुनाव जीता बल्कि साल 2008 के चुनाव में भी जीत दर्ज की। जीत का अंतर बहुत कम था इसलिए उन्होंने 2013 में फिर सीट बदल ली और फिर से पुरानी सीट भितरवार का रुख किया लेकिन इस बार जनता ने उन्हें नकार दिया जहां से कांग्रेस के लाखन सिंह ने उन्हें चित कर दिया । अनुप मिश्रा के कद को देखते हुए विधानसभा चुनाव में मिली हार के बावजूद पार्टी ने साल 2014 में लोकसभा का मुरैना से प्रत्याशी बनाया । एक बार फिर अनुप मिश्रा की किस्मत ने साथ दिया और वह एक लाख से अधिक वोटों से चुनाव जीते। यहां उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता डॉक्टर गोविंद सिंह को हराया । लेकिन उनका यह मन नहीं लगा और फिर वह विधानसभा बदली और फिर एक बार भितरवार से मैदान में उतर गये। लेकिन वह इस बार भितरवार से हार गये।जब लोकसभा प्रत्याशियों का ऐलान हुआ तो उनकी जगह मुरैना से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को पार्टी ने अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया ।अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अनुप मिश्रा का चुनाव लड़ने का समय खत्म हो गया ।


Conclusion:वहीं कांग्रेसी नेता चुटकी लेते हुए यह कहते नजर आ रही है कि बीजेपी अब अटल और आडवाणी से जुड़े लोगों को साइड लाइन करने में जुटी हुई है अनुप मिश्रा भी उन्हीं में से एक है। वहीं बीजेपी नेता का कहना है कि अनुप मिश्रा ने कद केवल ग्वालियर चंबल बल्कि पूरे प्रदेश में प्रभाव रखने वाली नेता है बीजेपी लोकसभा चुनाव में उनके कद का उपयोग कर पूरे मध्यप्रदेश में फतह हासिल करेगी।

बाईट - राजेश सोलंकी , बीजेपी नेता

बाईट - आर पी सिंह , कॉंग्रेस नेता

बाईट- देव श्री माली , बरिष्ठ राजनैतिक विश्लेषक
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