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क्या बीजेपी की 'सांप्रदायिक राजनीति' को रोक पाएंगे किसान ? - अतुल चंद्रा

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा ने पूरी ताकत झोंक रखी है. भाजपा पलायन का मुद्दा उठाकर हिंदुओं को लुभाने की कोशिश कर रही है, लेकिन ये कितना कारगर होगा ये तो समय ही बताएगा. पढ़ें वरिष्ठ पत्रकार अतुल चंद्र का एक विश्लेषण.

will farmers push back BJP's communal politics
भाजपा और किसान आंदोलन
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Published : Feb 3, 2022, 8:31 PM IST

जिस तरह से प्रचार प्रसार हो रहा है, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बिना ध्रुवीकरण के चुनाव संभव नहीं है. चाहे वह कैराना से हिंदुओं के पलायन के बारे में हो, या 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बारे में. मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि का संदर्भ या देवबंद में एटीएस केंद्र की आधारशिला रखना, जिसमें राष्ट्रवाद पर ध्यान केंद्रित किया गया है. इस सब के केंद्र में मुस्लिम कार्ड है, जिसका उपयोग भाजपा अपने खेमे में हिंदुओं को और अधिक लुभाने के लिए कर रही है.

शामली जिले के कैराना से भाजपा के पूर्व सांसद हुकुम सिंह ने हिंदुओं के पलायन का मुद्दा उठाया था. इरादा हिंदू वोटों को मजबूत करना और जाटों और मुसलमानों के बीच दरार पैदा करना था. बाद में यह कानून और व्यवस्था का मुद्दा बन गया और इसमें कुछ भी सांप्रदायिक नहीं था. भाजपा उस मुद्दे को जीवित रखना चाहती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जाट और मुसलमान समाजवादी पार्टी-राष्ट्रीय लोक दल गठबंधन को वोट न दें. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घर-घर जाकर पलायन प्रभावित परिवारों से मुलाकात की और कहा कि कैराना के लोग अब डर के साये में नहीं जी रहे हैं. मुस्लिमों की ओर इशारा करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कथित तौर पर कहा कि 'वे कैराना के जरिए यहां कश्मीर बनाने का सपना देख रहे थे...'

यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कृष्ण जन्मभूमि का मुद्दा उठाया था. उन्होंने ट्वीट किया था कि अयोध्या में भगवान राम के मंदिर की तर्ज पर एक भव्य कृष्ण मंदिर के निर्माण की तैयारी चल रही है. इन सभी सांप्रदायिक मुद्दों के बीच, भाजपा उन किसानों को भी साधने की कोशिश कर रही है, जो तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के विरोध के दौरान 700 से अधिक किसानों की मौत से नाराज हैं. किसान इस बात से भी नाराज हैं कि लखीमपुर खीरी में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे की एसयूवी ने कई किसानों को कुचल दिया. कथित तौर पर एसयूवी वही चला रहा था, लेकिन संवेदनशील पद पर बैठे मंत्री के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई.

रालोद के प्रमुख जयंत चौधरी ने भाजपा की राजनीति को 'सांप्रदायिक रंग' देने के प्रयास को खारिज करते हुए कहा कि 'जिन्ना नहीं, बल्कि गन्ना जीतेगा.' यह एक तरह से पश्चिमी यूपी की कहानी का सार है. ऐसे मुसलमान हैं जो भाजपा से आशंकित हैं, जाट जो अब सभी मुसलमानों को दुश्मन और किसान के रूप में नहीं देखते हैं. मुख्य रूप से जाट, जो कृषि कानूनों के लिए भाजपा को माफ करने के मूड में नहीं हैं. पहली नजर में तो भाजपा के खिलाफ ही हालात हैं. यह बताता है कि अमित शाह उस क्षेत्र में मतदाताओं को लुभाने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं.

भाजपा के लिए एडवांटेज ये है कि बहुत सारे मुसलमान मैदान में हैं. एसपी-रालोद, बहुजन समाज पार्टी, एसपी, एआईएमआईएम ने पश्चिमी यूपी के जिलों में मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. यहां 10 फरवरी से पहले तीन चरणों में मतदान होना है. एसपी-आरएलडी गठबंधन ने 13 मुसलमानों और बसपा ने 17 को मैदान में उतारा है. पहले चरण में जहां 58 सीटें पर दांव है, आठ सीटें ऐसी हैं जहां सपा-रालोद और बसपा ने मुसलमानों को टिकट दिया है. मुस्लिम वोटों के बंटने की संभावना के साथ भाजपा का सारा फोकस अल्पसंख्यक समुदाय पर है. अगर वह बसपा को वोट देते हैं, तो ओबीसी वोटों को जोड़ने का फायदा सपा को नहीं मिलेगा. मायावती को भाजपा की बी-टीम माना जा रहा है. वह चुनाव नहीं जीत सकतीं, लेकिन वह यह सुनिश्चित करने के लिए सपा के वोट काटेंगी कि अखिलेश यादव भी नहीं जीतें. वोटों में इसी तरह के विभाजन ने 2017 में भाजपा की मदद की थी.

अखिलेश यादव और जयंत यादव को भी असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम से भिड़ना है, जिसने मौलाना उमर मदनी को मैदान में उतारा है. मदनी के दादा अरशद मदनी दारुल उलूम देवबंद मदरसा के प्रिंसिपल हैं. मौलाना उमर के चाचा मौलाना महमूद मदनी जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष हैं. एआईएमआईएम ने पांच अन्य मुसलमानों को मैदान में उतारा है. मौलाना उमर देवबंद से चुनाव लड़ेंगे.

मुरादाबाद और संभल में मुसलमानों की संख्या 47.12 प्रतिशत है. बिजनौर में 43.03 प्रतिशत, मुजफ्फरनगर और शामली में 41.30 प्रतिशत और अमरोहा में 40.78 प्रतिशत है. पहले चरण में जिन जिलों में मतदान होना है उनमें- कैराना, हापुड़, मुजफ्फरनगर, अलीगढ़, बुलंदशहर और गाजियाबाद- 20 प्रतिशत या उससे अधिक मुस्लिम आबादी वाले जिले हैं, इससे मुस्लिम वोट निर्णायक साबित होते हैं.

किसान नेता और भारतीय किसान संघ के मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक मुसलमानों की बात नहीं करते हैं. पिछले महीने की शुरुआत में उन्होंने कहा था कि चुनाव भाजपा समर्थक और विरोधी मतदाताओं के बीच होंगे. गौरतलब है कि उन्होंने कहा कि किसानों के सालभर के विरोध ने उन्हें भाजपा के खिलाफ खड़ा कर दिया है. अगर ऐसा है, तो भाजपा 2017 के चुनावों के अपने प्रदर्शन को दोहराने में असमर्थ होगी, जब उसने इस क्षेत्र की 70 में से 51 सीटों पर जीत हासिल की थी. पश्चिमी यूपी को सपा के हाथ में जाने से बचाने के लिए तमाम हथकंडे आजमा रहे सत्ताधारी पार्टी के चाणक्य अमित शाह के लिए यह एक बड़ा झटका होगा.

पढ़ें- UP Election : प्रियंका के 'अपने' नहीं रहे अपने, बढ़ रहीं चुनौतियां

जिस तरह से प्रचार प्रसार हो रहा है, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बिना ध्रुवीकरण के चुनाव संभव नहीं है. चाहे वह कैराना से हिंदुओं के पलायन के बारे में हो, या 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बारे में. मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि का संदर्भ या देवबंद में एटीएस केंद्र की आधारशिला रखना, जिसमें राष्ट्रवाद पर ध्यान केंद्रित किया गया है. इस सब के केंद्र में मुस्लिम कार्ड है, जिसका उपयोग भाजपा अपने खेमे में हिंदुओं को और अधिक लुभाने के लिए कर रही है.

शामली जिले के कैराना से भाजपा के पूर्व सांसद हुकुम सिंह ने हिंदुओं के पलायन का मुद्दा उठाया था. इरादा हिंदू वोटों को मजबूत करना और जाटों और मुसलमानों के बीच दरार पैदा करना था. बाद में यह कानून और व्यवस्था का मुद्दा बन गया और इसमें कुछ भी सांप्रदायिक नहीं था. भाजपा उस मुद्दे को जीवित रखना चाहती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जाट और मुसलमान समाजवादी पार्टी-राष्ट्रीय लोक दल गठबंधन को वोट न दें. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घर-घर जाकर पलायन प्रभावित परिवारों से मुलाकात की और कहा कि कैराना के लोग अब डर के साये में नहीं जी रहे हैं. मुस्लिमों की ओर इशारा करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कथित तौर पर कहा कि 'वे कैराना के जरिए यहां कश्मीर बनाने का सपना देख रहे थे...'

यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कृष्ण जन्मभूमि का मुद्दा उठाया था. उन्होंने ट्वीट किया था कि अयोध्या में भगवान राम के मंदिर की तर्ज पर एक भव्य कृष्ण मंदिर के निर्माण की तैयारी चल रही है. इन सभी सांप्रदायिक मुद्दों के बीच, भाजपा उन किसानों को भी साधने की कोशिश कर रही है, जो तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के विरोध के दौरान 700 से अधिक किसानों की मौत से नाराज हैं. किसान इस बात से भी नाराज हैं कि लखीमपुर खीरी में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे की एसयूवी ने कई किसानों को कुचल दिया. कथित तौर पर एसयूवी वही चला रहा था, लेकिन संवेदनशील पद पर बैठे मंत्री के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई.

रालोद के प्रमुख जयंत चौधरी ने भाजपा की राजनीति को 'सांप्रदायिक रंग' देने के प्रयास को खारिज करते हुए कहा कि 'जिन्ना नहीं, बल्कि गन्ना जीतेगा.' यह एक तरह से पश्चिमी यूपी की कहानी का सार है. ऐसे मुसलमान हैं जो भाजपा से आशंकित हैं, जाट जो अब सभी मुसलमानों को दुश्मन और किसान के रूप में नहीं देखते हैं. मुख्य रूप से जाट, जो कृषि कानूनों के लिए भाजपा को माफ करने के मूड में नहीं हैं. पहली नजर में तो भाजपा के खिलाफ ही हालात हैं. यह बताता है कि अमित शाह उस क्षेत्र में मतदाताओं को लुभाने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं.

भाजपा के लिए एडवांटेज ये है कि बहुत सारे मुसलमान मैदान में हैं. एसपी-रालोद, बहुजन समाज पार्टी, एसपी, एआईएमआईएम ने पश्चिमी यूपी के जिलों में मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. यहां 10 फरवरी से पहले तीन चरणों में मतदान होना है. एसपी-आरएलडी गठबंधन ने 13 मुसलमानों और बसपा ने 17 को मैदान में उतारा है. पहले चरण में जहां 58 सीटें पर दांव है, आठ सीटें ऐसी हैं जहां सपा-रालोद और बसपा ने मुसलमानों को टिकट दिया है. मुस्लिम वोटों के बंटने की संभावना के साथ भाजपा का सारा फोकस अल्पसंख्यक समुदाय पर है. अगर वह बसपा को वोट देते हैं, तो ओबीसी वोटों को जोड़ने का फायदा सपा को नहीं मिलेगा. मायावती को भाजपा की बी-टीम माना जा रहा है. वह चुनाव नहीं जीत सकतीं, लेकिन वह यह सुनिश्चित करने के लिए सपा के वोट काटेंगी कि अखिलेश यादव भी नहीं जीतें. वोटों में इसी तरह के विभाजन ने 2017 में भाजपा की मदद की थी.

अखिलेश यादव और जयंत यादव को भी असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम से भिड़ना है, जिसने मौलाना उमर मदनी को मैदान में उतारा है. मदनी के दादा अरशद मदनी दारुल उलूम देवबंद मदरसा के प्रिंसिपल हैं. मौलाना उमर के चाचा मौलाना महमूद मदनी जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष हैं. एआईएमआईएम ने पांच अन्य मुसलमानों को मैदान में उतारा है. मौलाना उमर देवबंद से चुनाव लड़ेंगे.

मुरादाबाद और संभल में मुसलमानों की संख्या 47.12 प्रतिशत है. बिजनौर में 43.03 प्रतिशत, मुजफ्फरनगर और शामली में 41.30 प्रतिशत और अमरोहा में 40.78 प्रतिशत है. पहले चरण में जिन जिलों में मतदान होना है उनमें- कैराना, हापुड़, मुजफ्फरनगर, अलीगढ़, बुलंदशहर और गाजियाबाद- 20 प्रतिशत या उससे अधिक मुस्लिम आबादी वाले जिले हैं, इससे मुस्लिम वोट निर्णायक साबित होते हैं.

किसान नेता और भारतीय किसान संघ के मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक मुसलमानों की बात नहीं करते हैं. पिछले महीने की शुरुआत में उन्होंने कहा था कि चुनाव भाजपा समर्थक और विरोधी मतदाताओं के बीच होंगे. गौरतलब है कि उन्होंने कहा कि किसानों के सालभर के विरोध ने उन्हें भाजपा के खिलाफ खड़ा कर दिया है. अगर ऐसा है, तो भाजपा 2017 के चुनावों के अपने प्रदर्शन को दोहराने में असमर्थ होगी, जब उसने इस क्षेत्र की 70 में से 51 सीटों पर जीत हासिल की थी. पश्चिमी यूपी को सपा के हाथ में जाने से बचाने के लिए तमाम हथकंडे आजमा रहे सत्ताधारी पार्टी के चाणक्य अमित शाह के लिए यह एक बड़ा झटका होगा.

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