हैदराबाद : कई बच्चे बहुत प्रतिभाशाली होते हैं परंतु उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता. कुछ बच्चे पढ़ना चाहते हैं, परंतु जब पढ़ने की जगह अनुकूल नहीं हो तो उनका मन नहीं लगता और वे ज्यादा समय पढ़ाई के लिए नहीं बैठ पाते. कुछ का परीक्षा परिणाम उनकी प्रतिभा के अनुकूल नहीं आता. इन सबका समाधान वास्तु शास्त्र के माध्यम से किया जा सकता है.
भवन के पश्चिम दिशा मध्य से दक्षिण की ओर चलते ही जो स्थान आता है, वह विद्याभ्यास के लिए उत्तम होता है, इसलिए भवन की वास्तु योजना में इसी जगह को बच्चों के शयन कक्ष के रूप में विकसित कर लिया जाए. यदि पश्चिम दिशा में बच्चों का शयन कक्ष हो, वे दक्षिण दिशा में सिर करके और उत्तर दिशा में पैर करके सोएं तो अच्छे परिणाम लाए जा सकते हैं.
शास्त्रीय आधारों पर वे बच्चे जो तकनीकी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, उनके लिए दक्षिण-पूर्व या अग्निकोण में विद्याभ्यास शुभ परिणाम लाता है.
अग्निकोण में यदि बच्चे सीमित घंटों के लिए बैठें तो उन्हें अतिरिक्त ऊर्जा प्राप्त होती है और वे ज्यादा अच्छा परिणाम ला पाते हैं. जिन बच्चों को अनिद्रा रहती है, उन्हें अग्निकोण में न सोकर दक्षिण दिशा मध्य में सोना चाहिए.
दक्षिण मध्य दिशा यद्यपि गृहस्वामी के लिए ही प्रशस्त बताई गई है, परंतु अनिद्रा या पढ़ाई में मन न लगने की स्थिति में विद्यार्थी को दक्षिण दिशा का सीमित अवधि के लिए प्रयोग ठीक रहता है. ध्यान रहे कि शयन दक्षिण दिशा में सिर करके ही करना चाहिए.
विद्यार्थियों के लिए पूर्व दिशा में सिर करके सोना ठीक तो रहता है, परंतु उच्च तकनीकी प्रशिक्षण वाले विद्यार्थियों के लिए दक्षिण में सिर और उत्तर में पैर करके सोना अधिक लाभदायक पाए गए हैं.
जिन विद्यार्थियों का अध्ययन कक्ष वायव्य कोण में होता है, उनके मन में उच्चाटन की प्रवृत्ति होती है. उनका मन पढ़ाई में कम लगता है और दोस्तों में ज्यादा लगता है. उत्तर दिशा में मुंह करके पढ़ना श्रेष्ठ माना गया है.
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माता-पिता को चाहिए कि किसी ऐसी दीवार के सहारे जिसमें खिड़की हो, बच्चे को एक टेबल-कुर्सी लगाकर दें. बच्चा यथासम्भव उत्तर में अन्यथा पूर्व में मुंह करके बैठे. उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे बच्चों की एकाग्रता भंग होने की स्थिति में उन्हें पॉकेट ट्रांजिस्टर दिया जाने का अनुभव अच्छा पाया गया है.
ब्रह्म स्थान में अध्ययन एवं शयन वर्जित है. उत्तर दिशा या ईशान कोण में, उत्तर दिशा में मुंह करके अध्ययन करना प्रशस्त है, परंतु परीक्षा से ठीक एक सप्ताह पहले अग्निकोण या दक्षिण में स्थापित हो जाना लाभ प्रदान करता है. अग्निकोण में शयन उचित नहीं है. केवल अध्ययन के लिए तीन-चार घंटे बिताए जा सकते हैं.
यंत्रों के साथ अध्ययन करना अग्निकोण में उचित रहता है. सलाहकार बनने के लिए किए जाने वाले अध्ययन भी अग्निकोण में प्रशस्त माने गए हैं. बाकी सभी मामलों में पश्चिम दिशा ही श्रेष्ठ है.
लेखक - पंडित सतीश शर्मा, सुप्रसिद्ध वास्तुशास्त्री
ईमेल - satishsharma54@gmail.com