हैदराबाद: दुनियाभर में इन दिनों कोविड टीकाकरण का दौर चल रहा है. भारत में भी 100 करोड़ डोज दी जा चुकी हैं. लेकिन अब भी सवाल उठ रहा है कि क्या कोरोना वैक्सीन की दो डोज़ काफी हैं ? क्या बूस्टर डोज़ या अतिरिक्त डोज़ की जरूरत भी पड़ेगी ? क्या भारत में बूस्टर डोज़ लगाने की नौबत आ गई है ? ये सवाल अमेरिका की वजह से उठ रहे हैं.
अमेरिका ने ऐसा क्या किया है ?
अमेरिका ने बूस्टर डोज़ के लिए अपने देश में बनी फाइजर (Pfizer-BioNTech) वैक्सीन के बाद मॉडर्ना (Moderna) और जॉनसन एंड जॉनसन (Johnson & Johnson) वैक्सीन के साथ तीनों वैक्सीन के मिक्स-एंड-मैच टीकाकरण को मंजूरी दे दी है. फाइजर को सितंबर माह में ही बूस्टर डोज के लिए मंजूरी मिल गई थी, जो सबसे पहले 65 साल से अधिक उम्र के लोगों और उच्च जोखिम वाले लोगों को दी जा सकती है. खुद अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन फाइजर वैक्सीन की बूस्टर डोज़ ले चुके हैं.
बूस्टर डोज़ यानि वैक्सीन की अतिरिक्त खुराक, पूर्ण टीकाकरण के बावजूद शरीर में एंटीबॉडी, इम्यूनिटी या रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर वैक्सीन की अतिरिक्त डोज़ दी जाती है. जिसे बूस्टर डोज कहते हैं. कोरोना के मामले में अगर किसी वैक्सीन की पूरी डोज़ लेने के बाद भी शरीर की इम्युनिटी कम हो रही है और फिर से कोरोना का खतरा है तो बूस्टर डोज़ दिया जाता है. ये बूस्टर डोज़ उसी वैक्सीन का हो सकता है जिसकी खुराक आप पहले ही ले चुके हैं.
मिक्स-एंड-मैच यानि टीकों का मिश्रण, इसे ऐसे समझते हैं- मान लीजिए आपने कोविशील्ड वैक्सीन की दोनों डोज़ ले ली है लेकिन इसके बाद भी आपको बूस्टर डोज़ की जरूरत है तो आप स्पूतनिक-वी, कोवैक्सीन समेत सरकार से मंजूरी प्राप्त वैक्सीन लगवा सकते हैं. यानि मिक्स-एंड-मैच में बूस्टर डोज के लिए जरूरी नहीं कि आप उसी वैक्सीन की डोज़ लें जो आप पहले ले चुके हैं.
ऐसा करने की क्या वजह है ?
सबसे पहले तो इस मंजूरी से वैक्सीन की कमी को पूरा किया जा सकेगा. मान लीजिए की एक बड़ी आबादी को बूस्टर डोज़ की जरूरत है लेकिन जो वैक्सीन उन्हें चाहिए वो उस मात्रा में मौजूद नहीं है ऐसे में बूस्टर डोज के रूप में मिक्स-एंड-मैच यानि कोई अन्य वैक्सीन की डोज़ ली जा सकती है.
अमेरिकी सरकार ने विशेषज्ञों की समिति से वैक्सीन की मिक्स एंड मैच पर एक अध्ययन को मंजूरी दी थी. जिसके परिणाम काफी चौंकाने वाले रहे थे. मिक्स एंड मैच के अध्ययन के दौरान पाया गया कि जिन लोगों ने जॉनसन एंड जॉनसन की सिंगल डोज़ वाली वैक्सीन ली थी और जब बूस्टर डोज़ के रूप मॉडर्ना की वैक्सीन लगाई गई. तो ऐसे लोगों के शरीर में 15 दिन के अंदर एंटीबॉडी का स्तर 76 गुना बढ़ गया, जबकि जॉनसन एंड जॉनसन की बूस्टर डोज़ लेने वालों में एंटीबॉडी सिर्फ चार गुना ही बढ़ी.
अमेरिका के खाद्य एवं औषधि प्रशासन (US FDA) के मुताबिक मॉडर्ना वैक्सीन की बूस्टर डोज़ को प्राइमरी डोज के कम से कम 6 महीने के बाद 65 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों के लिए और 18 से 64 वर्ष की आयु के कोविड के उच्च जोखिम वाले लोगों के लिए अधिकृत किया. साथ ही एक डोज़ वाली जॉनसन एंड जॉनसन वैक्सीन के बूस्टर खुराक के लिए,18 वर्ष और उससे अधिक उम्र के व्यक्तियों के लिए एकल-खुराक के पूरा होने के कम से कम 2 महीने बाद एकल बूस्टर खुराक के उपयोग को अधिकृत किया.
भारत में भी मिलेगी बूस्टर डोज़ ?
भारत में कोरोना वैक्सीन की 100 करोड़ से अधिक डोज दी जा चुकी हैं. इसमें वैक्सीन की दोनों डोज़ लेने वालों की तादाद भी आने वाले दिनों में 30 करोड़ तक पहुंच सकती है. ऐसे में सवाल है कि क्या भारत में भी बूस्टर डोज़ मिलेगी ? दरअसल कुछ समय पहले जब बूस्टर डोज का सवाल उठा था तो सरकार पर्याप्त डाटा ना होने का हवाला दिया था. पर्याप्त डाटा यानि दोनों डोज़ लेने के बाद इम्यून या एंटी बॉडी का कम होना या पूर्ण टीकाकरण के बाद भी कोरोना संक्रमित होने जैसे मामलों से जुड़ा डाटा उपलब्ध नहीं था. लेकिन अब जब एक अच्छी खासी आबादी का टीकाकरण हो चुका है तो ये सवाल फिर से उठ रहा है.
नीति आयोग के सदस्य और कोविड टास्क फोर्स के प्रमुख डॉ. वीके पॉल का कहना है कि भारत का ध्यान पूरी व्यस्क आबादी के टीकाकरण पर है. उन्होंने फिर दोहराया कि ये एक शोध का विषय है और अभी तक बूस्टर डोज के प्रभाव से जुड़ा पर्याप्त डाटा नहीं है इसलिये बूस्टर डोज को लेकर कोई विचार नहीं चल रहा है.
भारत में वैक्सीन का मिक्स-एंड-मैच
भारत में भी मिक्स-एंड-मैच वैक्सीनेशन के प्रभावों को जानने के लिए अध्ययन किया. इस बारे में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने बताया कि भारत में निर्मित कोविशील्ड और कोवैक्सीन के मिक्स डोज को लेकर किए जा रहे अध्ययन के अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं. वैक्सीन की दो खुराक में कोविशील्ड और कोवैक्सीन के टीके देकर प्रतिरक्षा प्रणाली को और मजबूत किया जा सकता है. अध्ययन के मुताबिक इन दोनों वैक्सीन का मिक्स-एंड-मैच सुरक्षित और इम्यून सिस्टम को मजबूती देने में कारगर है.
दरअसल भारत में मौजूदा वैक्सीनेशन प्रोटोकॉल के मुताबिक जिस वैक्सीन की पहली डोज़ ली गई है उसी वैक्सीन का दूसरा डोज़ लेने का सुझाव दिया गया है. हालांकि कोरोना के सामने आ रहे खतरनाक वैरिएंट्स को लेकर किए गए अध्ययनों में वैज्ञानिकों ने मिक्स एंड मैच वैक्सीनेशन को ज्यादा प्रभावी माना है.
बूस्टर और मिक्स-एंड-मैच को लेकर WHO की राय
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) पहले से ही बूस्टर डोज़ के खिलाफ रहा है. कोविड-19 को देखते हुए WHO (world health organization) की राय और मकसद है सभी लोगों तक वैक्सीन पहुंचाना. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया के कई गरीब देश बहुत मुश्किल से अपनी आबादी के लिए कोरोना वैक्सीन का जुगाड़ कर पा रहे हैं जबकि कई विकसित देश पूर्ण टीकाकरण के बाद बूस्टर डोज और मिक्स-एंड-मैच वैक्सीन की तरफ बढ़ रहे हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की ये चिंता एक तरह से वाजिब भी लगती है. आंकड़ों के मुताबिक दुनियाभर में कुल 6 अरब से ज्यादा डोज़ दी जा चुकी हैं और रोजाना औसतन ढाई करोड़ लोगों का टीकाकरण हो रहा है. दुनिया की करीब 48 से 49 फीसदी आबादी को कोरोना वैक्सीन की कम से कम एक डोज़ मिल चुकी है. लेकिन कम आय वाले देशों में तीन फीसदी से भी कम आबादी को एक डोज़ नसीब हो पाई है. अफ्रीक में सिर्फ 7 फीसदी लोगों का टीकाकरण हो पाया है.
WHO के महानिदेशक टेड्रोस गेब्रेइसस ने कहा, 'बूस्टर डोज स्टार्ट करना वास्तव में वैश्विक समुदाय के लिए बहुत बुरा होगा।' दरअसल, WHO का जोर अमीर-गरीब, विकसित-विकासशील सभी देशों में सबको वैक्सीन उपलब्ध कराने पर है. बूस्टर डोज़ वैक्सीन की पूरी खुराक लेने के बाद लिया जाता है. अमेरिका जैसे देश अपने नागरिकों की सुरक्षा को देखते हुए कर बूस्टर डोज दे रहे हैं जबकि कई देशों की बहुत बड़ी आबादी को पहला टीका भी नहीं मिल पाया है. इसके अलावा अमेरिका से लेकर कनाडा, जर्मनी, फ्रांस और थाईलैंड जैसे देश दो या तीन खुराक में अलग-अलग टीके लगवाने की अनुमति दे चुके हैं.
कई दूसरे देशों में भी स्वास्थ्य कर्मियों और फ्रंट लाइन वर्कर से लेकर बुजुर्गों और बीमारों के लिए इस तरह की मंजूरी दे चुके हैं. जबकि WHO का कहना है कि भले ही मिक्स-एंड-मैच वैक्सीनेशन के परिणाम आशाजनक दिखाई दे रहे हों, लेकिन व्यापक स्तर पर इसे लागू करने के लिए इसकी प्रभावशीलता की जांच के लिए बड़े अध्ययन की जरूरत है.
क्यों जरूरी है बूस्टर डोज़ ?
पूरी तरह से टीकाकरण के बाद भी कुछ देशों में कोरोना संक्रमण के मामले सामने आए हैं. अमेरिका भी उन देशों में से एक है. कई अध्यनों में पाया गया कि वैक्सीन लेने के कुछ महीनों बाद इम्युनिटी कमजोर पड़ने लगती है. वैक्सीन लगने से अस्पताल में भर्ती होने की आशंका तो कम होती है लेकिन एक वक्त के बाद वैक्सीन का असर भी कम हो जाता है.
स्टडीज में पाया गया कि कोरोना के तरह-तरह के वैरिएंट भी वैक्सीन के बनाए सुरक्षा कवच को भेद सकते हैं. खासकर इम्यूनिटी, एंटीबॉडी कम होने और खासकर बुजुर्ग और बीमारों को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. जिसके बाद बूस्टर डोज़ के विकल्प पर कई देशों ने मंथन किया और इसे लागू भी कर दिया. कई विशेषज्ञ बूस्टर डोज़ यानि एक अतिरिक्त डोज़ देने के पक्ष में है. क्योंकि बूस्टर डोज़ से इम्यूनिटी की मात्रा, गुणवत्ता और टिकाऊपन में इजाफा होता है. दुनियाभर में हुए अध्ययनों के रिजल्ट भी बूस्टर डोज के हक में जाते हैं.
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