हैदराबाद : बिहार की राजनीति में अभी दो भाई सुर्खियां बटोर रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के बेटे तेजप्रताप यादव और तेजस्वी यादव. इस बार मामला पिता के विरासत का है. इस कारण राजद (RJD) ही दो खेमों में बंटा दिख रहा है. दोनों भाई राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के विधायक हैं और नीतीश सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं. तेजस्वी उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं और 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी को 75 सीट दिलाने के बाद बिहार की राजनीति में बड़ा कद हासिल कर चुके हैं.
जब से लालू प्रसाद यादव जेल से रिहा होकर पटना लौटे हैं, बिहार की राजनीति में अचानक गर्मी आ गई है. मगर सियासत की गर्मी उनकी ही पार्टी राष्ट्रीय जनता दल में ज्यादा महसूस की जा रही है. इस बार विरासत का संग्राम छात्र राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष को हटाने के बाद छिड़ा है. राजद (RJD) प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह (Jagdanand Singh) ने तेजप्रताप यादव के बेहद खास आकाश यादव को स्टूडेंट विंग के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया. उनकी जगह गगन कुमार को जिम्मेदारी सौंपी गई. तेजप्रताप समर्थक मानते हैं कि जगदानंद सिंह ने तेजस्वी यादव के इशारे पर यह कार्रवाई की. दोनों भाइयों के बीच पोस्टर वॉर ने भी मतभेदों की खबरों को हवा दी है. पहले तेजप्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) की ओर से लगाए गए पोस्टर से तेजस्वी यादव गायब कर दिए गए, फिर इसके बाद तेजस्वी खेमे ने तेजप्रताप यादव को आउट कर दिया.
क्या लालू यादव चाहते हैं कि उत्तराधिकारी का फैसला हो जाए
इस रस्साकशी और हंगामे लालू प्रसाद यादव खामोश हैं. पार्टी के बड़े नेता भी तेजस्वी को लालू प्रसाद यादव का स्वाभाविक उत्तराधिकारी मानते हैं. शायद लालू प्रसाद भी तेजस्वी को विरासत सौंपना चाहते हैं. तेजस्वी की तारीफ कर वह अपनी मंशा जता चुके हैं. भविष्य में उनके परिवार के अन्य सदस्यों से भी तेजस्वी को चुनौती मिल सकती है. लालू यादव भी अपने वारिस तेजस्वी को खुलकर दांव लगाने का मौका दे रहे हैं, ताकि परिवार और पार्टी के बीच दावेदारी करने वालों को 2021 में ही सबक मिल जाए. वह अभी चल रहे विवाद का अंत अपने एक बयान और आदेश से कर सकते हैं और आने वाले वक्त में वह ऐसा करेंगे भी.
कई पावर सेंटर होने से पार्टी में विवाद
पॉलिटिकल एक्सपर्ट मानते हैं कि लोकतंत्र में एक नेता या परिवार आधारित राजनीतिक दलों में दरार की स्थिति तब आती है, जब एक से ज्यादा पावर सेंटर हो जाते हैं. ऐसे विवाद में अंतिम फैसला उसी का माना जाता है, जिसकी विरासत दांव पर लगी होती है. जनता भी उस फैसले के हिसाब से ही नए नेता में भरोसा जताती है. मसलन, हरियाणा में चौधरी देवीलाल ने अपने तीन बेटों में से ओमप्रकाश चौटाला को उत्तराधिकारी घोषित किया. महाराष्ट्र में शिवसेना प्रमुख रहे बाल ठाकरे ने उद्भव को पार्टी की गद्दी सौंपी. तमिलनाडु में करुणानिधि ने अपने 6 बेटों-बेटियों में से स्टालिन को डीएमके के उत्तराधिकार के लिए चुना.
तमिलनाडु : अलागिरी और स्टालिन के बीच हुआ था सत्ता संघर्ष
2014 के बाद से डीएमके में सत्ता संघर्ष शुरू हुआ. करुणानिधि के दो बेटे एम के अलागिरी और एम के स्टालिन सक्रिय राजनीति में हैं. उनकी एक बेटी कोनिमोझी भी राजनीति में एक्टिव हैं. जब बात विरासत की आई तो करुणानिधि ने स्टालिन को 2016 में पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. कोनिमोझी पिता के फैसले के साथ रही. अलागिरी ने विद्रोह का झंडा उठाया तो उन्हें 2018 में ही डीएमके से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. 2021 के विधानसभा चुनाव में डीएमके को बहुमत मिला और एम के स्टालिन चीफ मिनिस्टर बने. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि स्टालिन पार्टी के अन्य नेताओं की तुलना में आम लोगों से कहीं भी मिल लेते हैं, इस कारण वह लोगों में काफी तेजी से लोकप्रिय हो गए थे. संघर्ष के बाद से अलागिरी राजनीति में अलग-थलग पड़े हैं.
हरियाणा : पहले देवीलाल फिर ओमप्रकाश चौटाला के विरासत पर हुआ संघर्ष
हरियाणा में देवीलाल शक्तिशाली नेता रहे. कांग्रेस, लोकदल, जनता दल के रास्ते उन्होंने किसान नेता की छवि बनाई. विश्वनाथ प्रताप सिंह से मतभेद के बाद इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) बनाया. यह पूरी तरह से देवीलाल और उनके परिवार की पार्टी थी. चौधरी देवीलाल के तीन बेटे हैं. रणजीत सिंह चौटाला, ओमप्रकाश चौटाला और जगदीश चंद्र चौटाला. देवीलाल ने ओमप्रकाश चौटाला को मुख्यमंत्री बनाकर अपना उत्तराधिकारी घोषित किया. बाद में रणजीत सिंह कांग्रेस में शामिल हो गए और जगदीश चंद्र ने भाजपा जॉइन कर लिया.
ओ पी चौटाला के उत्तराधिकार की लड़ाई में INLD ही सिकुड़ गई
इंडियन नेशनल लोकदल की अग्निपरीक्षा उस समय शुरू हुई, जब ओमप्रकाश चौटाला को शिक्षक भर्ती मामले में सजा हो गई. 2014 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद उनके दोनों बेटों अजय चौटाला और अभय चौटाला में मतभेद हो गया. देवीलाल की विरासत हथियाने की लड़ाई सड़क पर आ गई. दोनों भाइयों और उनके बेटों के बीच वाकयुद्ध भी हुआ. 2018 में ओमप्रकाश चौटाला अपने छोटे बेटे अभय चौटाला के साथ खड़े हुए. उन्होंने अजय सिंह चौटाला और उनके बेटों, दुष्यंत और दिग्विजय को पार्टी से निकाल दिया. 17 नवंबर 2018 को अजय चौटाला ने जींद में रैली कर जननायक जनता पार्टी बनाने का एलान कर दिया . फिलहाल दुष्यंत की जेजेपी हरियाणा में बीजेपी के साथ सरकार में है.
महाराष्ट्र : विरासत को लेकर राज ठाकरे और उद्भव में भी नहीं बनी
जब महाराष्ट्र में बाला साहेब ठाकरे का दौर था, तब मुंबई और शिवसेना में राज ठाकरे की तूती बोलती थी. बोलने की मुखर शैली और दबंगई के बीच शिव सैनिक भी राज ठाकरे में बाला साहेब की छवि देखते थे. बाला साहेब ने अपने बेटे उद्भव ठाकरे को राजनीति में सक्रिय किया. उद्धव और राज आपस में चचेरे-मौसेरे भाई हैं. राज बाला साहेब के छोटे भाई श्रीकांत ठाकरे के बेटे हैं. साल 2002 में बीएमसी के चुनावों में शिवसेना की जीत मिली. बाला साहेब ठाकरे ने उद्धव को इस जीत का श्रेय देते हुए 2003 में शिवसेना का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया. 2004 में उद्धव को शिवसेना का अध्यक्ष घोषित किया गए. राज ठाकरे को यह उत्तराधिकार रास नहीं आया और 2006 में वह शिवसेना से अलग हो गए. उन्होंने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाई.
तेलंगाना में तय है वारिस, विवाद की संभावना नहीं
दक्षिण भारत के राज्य तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव (KCR) के बेटे और बेटी सक्रिय राजनीति में है. मगर अघोषित तौर पर केसीआर ने अपने बेटे के. टी. रामराव ( KTR) को उत्तराधिकार दे दिया है. के टी रामराव अपने पिता की सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. उनकी बहन के. कविता विधायक हैं. आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाई. एस. राजशेखर रेड्डी ने भी अपने बेटे एक वाई.एस.जगन मोहन रेड्डी को विरासत सौंप दी थी. वाईएसआर के असामयिक निधन के बाद कांग्रेस ने जब जगन के विरासत पर सवाल उठाया. तब जगन ने वाईएसआर कांग्रेस बनाई. अभी जगन आंध्र के सीएम हैं. उनकी बहन वाई एस शर्मीला ने तेलंगाना में नई पार्टी बनाई है.
जिनकी एक संतान राजनीति में है, वहां नहीं है झंझट
भारत में कई क्षेत्रीय दल एक परिवार की बदौलत चल रहे हैं. उनमें जम्मू कश्मीर के पीडीपी, नेशनल कांन्फ्रेंस, पंजाब का अकाली दल और झारखंड मे झारखंड मुक्ति मोर्चा भी शामिल है. इन दलों में अभी तक विरासत को लेकर कलह सामने नहीं आया.मुफ्ती मुहम्मद सईद ने अपने राजनीतिक जीवन में ही महबूबा मुफ्ती को पार्टी का मुखिया बना दिया. उमर अब्दुल्ला भी नैशनल कॉन्फ्रेंस के सदर आसानी से बन गए. उनका पार्टी के भीतर कोई विरोध नहीं हुआ.
समाजवादी पार्टी में भी हुई थी कब्जे की जंग
2017 के विधानसभा चुनाव से पहले उत्तरप्रदेश की समाजवादी पार्टी में खूब नूराकुश्ती हुई. मुलायम सिंह के भाई शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश पार्टी में वर्चस्व को लेकर सामने आ गए. माना जाता है कि जब बात मुलायम सिंह तक पहुंची तो वह बेटे अखिलेश के पक्ष में खड़े हुए. चुनाव के बाद शिवपाल समाजवादी पार्टी से अलग हो गए. उन्होंने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) (Pragatisheel Samajwadi Party Lohia) बना ली. हालांकि मुलायम सिंह यादव 2012 में ही अखिलेश यादव को सीएम बनाकर विरासत सौंप चुके थे. उनके छोटे बेटे प्रतीक यादव राजनीति में एक्टिव नहीं हैं. प्रतीक मुलायम सिंह की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता के बेटे हैं. प्रतीक की पत्नी अपर्णा बिष्ट यादव एक सक्रिय राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं.
बैचलर राजनेताओं ने रिश्तेदारों को बनाया राजनीतिक वारिस !
भारतीय राजनीति में कई ऐसे राजनेता भी हैं, जिन्होंने परिवार तो नहीं बसाया, मगर अपने करीबी रिश्तेदार के लिए वारिस बनने का रास्ता खोल दिया. इनमें पहला नाम है बसपा सुप्रीमो मायावती का. उन्होंने लोकसभा चुनाव के बाद भाई आनंद कुमार को एक बार फिर पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया है जबकि भतीजे आकाश आनंद को राष्ट्रीय समन्वयक की जिम्मेदारी दी. इसी तरह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने भतीजे को ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के यूथ विंग का अध्यक्ष बनाकर उत्तराधिकारी बनने का रास्ता खोल दिया.