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सीलिंग करने से पहले नोटिस नहीं देने के प्रावधान को चुनौती, MCD और NDMC को नोटिस जारी - DELHI HIGH COURT ON SEALING ISSUE

सीलिंग करने से पहले नोटिस नहीं देने के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी.

सीलिंग करने से पहले नोटिस नहीं देने के प्रावधान को चुनौती
सीलिंग करने से पहले नोटिस नहीं देने के प्रावधान को चुनौती (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Feb 13, 2025, 8:37 AM IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने अनाधिकृत निर्माण की सीलिंग के नियमों को चुनौती देने वाली याचिका पर दिल्ली नगर निगम और नई दिल्ली नगर पालिका परिषद को नोटिस जारी किया है. चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय की अध्यक्षता वाली बेंच ने नोटिस जारी किया. मामले की अगली सुनवाई 2 अप्रैल को होगी. याचिका वकील अमित साहनी ने दायर किया है. याचिका में कहा गया है कि सीलिंग आदेश की तामील किए बिना परिसर को सील करना मनमाना और असंवैधानिक है.

याचिका में कहा गया है कि ये प्रावधान प्रभावित व्यक्तियों को उनके वैधानिक अधिकारों से वंचित करता है. याचिका में कहा गया है कि नियमों में विसंगति के कारण, संबंधित अधिनियम के तहत पारित अंतिम सीलिंग आदेश की प्रति परिसर को सील करने से पहले प्रभावित व्यक्ति को उपलब्ध नहीं कराई जाती है. ऐसा करना नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है. याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता ने इस मसले पर 7 जनवरी को दिल्ली नगर निगम और नई दिल्ली नगर पालिका परिषद को एक प्रतिवेदन दिया था. लेकिन कोई सकारात्मक जवाब नहीं आया. जिसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

महिला आरक्षण पर केंद्र सरकार को नोटिस: दिल्ली हाईकोर्ट ने लोकसभा और विधानसभाओं में 33 फीसदी महिला आरक्षण के कानून में परिसीमन के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और अटार्नी जनरल को नोटिस जारी किया है. चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय की अध्यक्षता वाली बेंच ने मामले की अगली सुनवाई 9 अप्रैल को करने का आदेश दिया. याचिका नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वूमन ने दायर किया था. याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 334ए (आई) महिलाओं के आरक्षण पर रोक लगा रहा है. इस अनुच्छेद में परिसीमन का प्रावधान है.

नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमन की याचिका में मांग की गई है कि लोकसभा और विधानसभाओं में 33 फीसदी महिला आरक्षण वाले कानून में परिसीमन करने के प्रावधान को हटाया जाए. बता दें कि 2023 में संसद ने महिला आरक्षण को लेकर कानून पारित किया था. इस कानून में परिसीमन के बाद महिला आरक्षण लागू करने का प्रावधान किया गया है. याचिका में कहा गया है कि एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षण के लिए कोई पूर्व शर्त नहीं रखी गई है जबकि महिला आरक्षण के लिए परिसीमन की पूर्व शर्त रखी गई है.

नीट की परीक्षा को दो बार आयोजित करने की मांग पर सुनवाई करने से इनकार: दिल्ली हाईकोर्ट ने नीट की परीक्षा जेईई की तरह साल में दो बार आयोजित करने की मांग पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि नीट की परीक्षा साल में दो बार आयोजित करना है या नहीं ये प्रशासनिक और नीतिगत मामला है और इसमें कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकती है. हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को अपना प्रतिवेदन संबंधित प्राधिकार के समक्ष रखने की अनुमति दे दी.

कोर्ट ने कहा कि अगर संबंधित प्राधिकार के पास कोई प्रतिवेदन दिया जाता है तो प्राधिकार इस पर कानून के मुताबिक उचित फैसला करेगा. कोर्ट ने कहा कि ऐसी कई परीक्षाएं हैं, जिनमें उम्मीदवारों को कई मौके नहीं मिलते हैं. याचिका एक कोचिंग सेंटर के शिक्षक ने दायर किया था. याचिका में कहा गया था कि जेईई की मुख्य परीक्षा कई शिफ्टों में आयोजित की गई थी. इस परीक्षा के दौरान परीक्षार्थियों को मनोवैज्ञानिक दबाव कम करने कर अपना ग्रेड सुधारने कई मौके मिले थे. याचिका में कहा गया था कि जेईई की तरह नीट की परीक्षा में शामिल होने के लिए परीक्षार्थियों को केवल एक मौका मिला. नीट के परीक्षार्थियों को भी साल में कम से कम एक और मौका जरुर मिलना चाहिए.

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याचिका में कहा गया है कि ये प्रावधान प्रभावित व्यक्तियों को उनके वैधानिक अधिकारों से वंचित करता है. याचिका में कहा गया है कि नियमों में विसंगति के कारण, संबंधित अधिनियम के तहत पारित अंतिम सीलिंग आदेश की प्रति परिसर को सील करने से पहले प्रभावित व्यक्ति को उपलब्ध नहीं कराई जाती है. ऐसा करना नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है. याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता ने इस मसले पर 7 जनवरी को दिल्ली नगर निगम और नई दिल्ली नगर पालिका परिषद को एक प्रतिवेदन दिया था. लेकिन कोई सकारात्मक जवाब नहीं आया. जिसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

महिला आरक्षण पर केंद्र सरकार को नोटिस: दिल्ली हाईकोर्ट ने लोकसभा और विधानसभाओं में 33 फीसदी महिला आरक्षण के कानून में परिसीमन के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और अटार्नी जनरल को नोटिस जारी किया है. चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय की अध्यक्षता वाली बेंच ने मामले की अगली सुनवाई 9 अप्रैल को करने का आदेश दिया. याचिका नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वूमन ने दायर किया था. याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 334ए (आई) महिलाओं के आरक्षण पर रोक लगा रहा है. इस अनुच्छेद में परिसीमन का प्रावधान है.

नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमन की याचिका में मांग की गई है कि लोकसभा और विधानसभाओं में 33 फीसदी महिला आरक्षण वाले कानून में परिसीमन करने के प्रावधान को हटाया जाए. बता दें कि 2023 में संसद ने महिला आरक्षण को लेकर कानून पारित किया था. इस कानून में परिसीमन के बाद महिला आरक्षण लागू करने का प्रावधान किया गया है. याचिका में कहा गया है कि एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षण के लिए कोई पूर्व शर्त नहीं रखी गई है जबकि महिला आरक्षण के लिए परिसीमन की पूर्व शर्त रखी गई है.

नीट की परीक्षा को दो बार आयोजित करने की मांग पर सुनवाई करने से इनकार: दिल्ली हाईकोर्ट ने नीट की परीक्षा जेईई की तरह साल में दो बार आयोजित करने की मांग पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि नीट की परीक्षा साल में दो बार आयोजित करना है या नहीं ये प्रशासनिक और नीतिगत मामला है और इसमें कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकती है. हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को अपना प्रतिवेदन संबंधित प्राधिकार के समक्ष रखने की अनुमति दे दी.

कोर्ट ने कहा कि अगर संबंधित प्राधिकार के पास कोई प्रतिवेदन दिया जाता है तो प्राधिकार इस पर कानून के मुताबिक उचित फैसला करेगा. कोर्ट ने कहा कि ऐसी कई परीक्षाएं हैं, जिनमें उम्मीदवारों को कई मौके नहीं मिलते हैं. याचिका एक कोचिंग सेंटर के शिक्षक ने दायर किया था. याचिका में कहा गया था कि जेईई की मुख्य परीक्षा कई शिफ्टों में आयोजित की गई थी. इस परीक्षा के दौरान परीक्षार्थियों को मनोवैज्ञानिक दबाव कम करने कर अपना ग्रेड सुधारने कई मौके मिले थे. याचिका में कहा गया था कि जेईई की तरह नीट की परीक्षा में शामिल होने के लिए परीक्षार्थियों को केवल एक मौका मिला. नीट के परीक्षार्थियों को भी साल में कम से कम एक और मौका जरुर मिलना चाहिए.

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