पटना : बिहार में सत्ताधारी गठबंधन दलों के बीच सबकुछ ठीकठाक नहीं है. जनता दल यू और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के बीच रह-रहकर ऐसे बयान आ जाते हैं, जो गठबंधन के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े कर दे रहे हैं. यह कहना कि ऐसे बयान छोटे-मोटे नेताओं द्वारा दिए जा रहे हैं, पूरी तरह से गलत है. जब बयान बिहार भाजपा के अध्यक्ष और जदयू के वरिष्ठ नेता उपेंद्र कुशवाहा द्वारा दिया जा रहा हो, तो समझिए स्थिति गंभीर है. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री के साथ जेडीयू के नेता ट्विटर-ट्विटर खेलेंगे, तो बिहार के 76 लाख बीजेपी कार्यकर्ता इसका जवाब देना जानते हैं.
जायसवाल ने ये भी कहा कि माननीय जी (नीतीश कुमार) को यह समझ आ गया कि एनडीए गठबंधन का निर्णय केंद्र द्वारा है और बिल्कुल मजबूत है, इसलिए हम सभी को साथ चलना है. फिर बार-बार महोदय मुझे और केंद्रीय नेतृत्व को टैग करके न जाने क्यों प्रश्न करते हैं. एनडीए गठबंधन को मजबूत रखने के लिए हम सभी को मर्यादाओं का ख्याल रखना चाहिए. यह एकतरफा अब नहीं चलेगा. इस मर्यादा की पहली शर्त है कि देश के प्रधानमंत्री से ट्विटर-ट्विटर न खेलें. प्रधानमंत्री जी प्रत्येक भाजपा कार्यकर्ता के गौरव भी हैं और अभिमान भी. उनसे अगर कोई बात कहनी हो तो जैसा माननीय ने लिखा है कि बिल्कुल सीधी बातचीत होनी चाहिए.
इसके जवाब में जेडीयू विधायक संजीव कुमार (JDU MLA Sanjeev Kumar) ने इस तरह से खुलेआम बयानबाजी न करने की नसीहत दी है. उन्होंने कहा कि शराबबंदी कानून को बिहार में कड़ाई से लागू किया जा रहा है. नालंदा में भी पुलिस कार्रवाई कर रही है. ऐसे में बीजेपी नेता गठबंधन में रहकर जिस तरह से सरकार के विरोध में बयानबाजी कर रहे हैं, वह ठीक नहीं है.
आपको बता दें कि भाजपा और जेडीयू के बीच शराबबंदी और इतिहासकार दया प्रकाश सिन्हा की टिप्पणी को माध्यम बनाकर एक दूसरे पर राजनीतिक बयानबाजी की जा रही है. जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि संजय जायसवाल क्या बोलते हैं, कई बार उनको भी समझ में नहीं आता होगा. अब शराबबंदी को लेकर उन्होंने पूछा है कि पार्टी कार्रवाई करेगी कि नहीं. उन्हें बताना चाहता हूं कि शराबबंदी मामले में पार्टी नहीं, सरकार कार्रवाई करती है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जरूर कार्रवाई करेंगे और सरकार में तो उनकी पार्टी भी शामिल है.
कुशवाहा के जवाब में बिहार बीजेपी के प्रवक्ता अरविंद सिंह ने जेडीयू नेता उपेंद्र कुशवाहा की 'मंथरा' से तुलना (Upendra Kushwaha Compared to Manthara) करते हुए कहा कि वे बीजेपी और जेडीयू के बीच 'मंथरा' का काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि वे किसी दूसरे दल का सुपारी लेकर जेडीयू में बैठे हैं और एनडीए का सर्वनाश करने पर तुले हैं.
पद्म पुरस्कार को लेकर संजय जायसवाल ने कहा कि 74 वर्ष में एक घटना नहीं हुई जब किसी पद्मम पुरस्कार की वापसी हुई हो. पहलवान सुशील कुमार पर हत्या के आरोप सिद्ध हो चुके हैं, उसके बावजूद राष्ट्रपति ने उनका पदक वापस नहीं लिया, क्योंकि पुरस्कार वापसी मसले पर कोई निश्चित मापदंड नहीं है. जबकि चाहे वो हरिद्वार में घटित धर्म संसद हो या सैकड़ों हेट स्पीच, सरकार न केवल इन पर संज्ञान लेती है, बल्कि बड़े से बड़े व्यक्ति को भी जेल में डालने से हिचकती नहीं है. इसलिए सबसे पहले बिहार सरकार दया प्रकाश सिन्हा को मेरे FIR के आलोक में गिरफ्तार करे और फास्ट ट्रैक कोर्ट से तुरंत सजा दिलवाये. उसके बाद बिहार सरकार का एक प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति के पास जाकर हम सभी की बात रखें कि एक सजायाफ्ता मुजरिम का पद्मश्री पुरस्कार वापस लिया जाए.
जेडीयू नेता उपेंद्र कुशवाहा ने लिखा, 'गठबंधन के संदर्भ में दिए गए आपके वक्तव्य से मैं पूरी तरह सहमत हूँ. (गठबंधन ठीक तरह से चले, यह राज्यहित में आवश्यक है और इसे जारी रखना हमारा-आपका कर्तव्य है) लेकिन सम्राट अशोक वाले मुद्दे पर हम आपकी राय से सहमत नहीं हो सकते, क्योंकि इस सन्दर्भ में आपका वक्तव्य पूर्णतः गोल मटोल एवं भटकाव पैदा करने वाला है (आपने लिखा है कि आपकी पार्टी भारतीय राजाओं के स्वर्णिम इतिहास में कोई छेड़छाड़ बर्दास्त नहीं कर सकती). मेरा सवाल है कि आप दया प्रकाश सिन्हा के द्वारा घोर और अमर्यादित भाषा में सम्राट अशोक और औरंगजेब की तुलना को इतिहास में छेड़छाड़ मानते हैं या नहीं.'
दरअसल, पद्मश्री से सम्मानित दया प्रकाश सिन्हा ने सम्राट अशोक पर विवादित बयान देते हुए उनकी तुलना औरंगजेब से कर दी. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार दया प्रकाश सिन्हा ने कहा था, 'सम्राट अशोक क्रूर, कामुक और बदसूरत थे. उन्होंने अशोक को भाई का हत्यारा बताकर उनकी तुलना क्रूर औरंगजेब से कर दी. उन्होंने कहा कि सम्राट अशोक बेहद बदसूरत और कामुक थे. देश के विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में सम्राट अशोक के उजले पक्ष को ही शामिल किया गया है, जबकि उनकी असलियत इससे अलग भी थी. श्रीलंका के तीन बौद्ध ग्रंथों का उन्होंने हवाला देकर ये बयान दिया था.'
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