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रूस की जिद के पीछे क्या है कारण, वह क्यों अपनी सुरक्षा से समझौता नहीं करने वाला? जानें विशेषज्ञ की राय - रूस की जिद के पीछे क्या है कारण

अंतरराष्ट्रीय दबाव और रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के (sanctions imposed on Russia) बावजूद राष्ट्रपति पुतिन किसी भी तरह से यूक्रेन पर हमला करने से चूक नहीं रहे हैं. इस बीच कीव ने कर्फ्यू सख्त कर दिया है क्योंकि रूसी सेना सड़कों पर पहुंच चुकी है और देश को रूसी आक्रमण से बचाने के लिए यूक्रेन हर संभव (Ukraine by all means) उपाय कर रहा है.

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रसिया
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Published : Feb 26, 2022, 10:56 PM IST

Updated : Feb 27, 2022, 4:22 PM IST

नई दिल्ली: विशेषज्ञों का मानना है कि रूस अपनी सुरक्षा के अलावा किसी और चीज से समझौता नहीं करने वाला है. ईटीवी भारत ने जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय नई दिल्ली में रूसी अध्ययन की अध्यक्ष अर्चना उपाध्याय (Archana Upadhyay Russian Studies) से विशेष रूप से बात की है. उन्होंने कई अहम बातें बताईं, जो मौजूदा घटनाक्रम को सही तरीके से समझाती हैं.

जब उनसे पूछा गया कि पुतिन, यूक्रेन क्यों चाहते हैं? क्या यूक्रेन खत्म हो जाएगा? तो उन्होंने कहा कि युद्ध हो रहा है. रूस हमेशा अपने निकट में विकास के प्रति बहुत संवेदनशील रहा है. यूक्रेन केवल कोई देश नहीं है बल्किय यूक्रेन रूसी संघ की सीमा में बहुत ही महत्वपूर्ण देश है. वहां होने वाली कोई भी घटना सीधे रूस की सुरक्षा और भलाई को प्रभावित करती है. यही कारण है कि मॉस्को, हमेशा यूक्रेन में क्रेमलिन समर्थक शासन के लिए बहुत उत्सुक रहा है.

पिछले कुछ दिनों में जो घटनाक्रम हो रहा है, उसे देखते हुए यह बिल्कुल स्पष्ट कहा जा सकता है कि रूस अपनी सुरक्षा से कम पर कुछ भी समझौता नहीं करने जा रहा है. उसे अपने आप को पूरी तरह से सुरक्षित करना है लेकिन यह कैसे संभव है? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि रूस एक ऐसी सरकार स्थापित करेगा जो रूस समर्थक शासन क्रेमलिन के अनुकूल हो. यह निश्चित रूप से पश्चिमी दुनिया, यूरोपीय संघ, अमेरिका और नाटो के लिए भी एक बड़ा संदेश होगा.

रूस क्यों अपनी सुरक्षा से समझौता नहीं करने वाला? जानें विशेषज्ञ की राय

यूक्रेन संकट पर भारत की स्थिति अब तक अद्वितीय क्यों रही है? क्या भारत तनाव को कम करने में अहम भूमिका निभा सकता है? इस पर अर्चना उपाध्याय ने कहा कि भारत ने बहुत ही व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया है. चूंकि भारत, रूस के साथ विशेष संबंध साझा करता है, इसलिए वह रूस के साथ अपने संबंधों को खतरे में डालने का जोखिम नहीं उठा सकता. इसके अलावा हम सभी जानते हैं कि रूस, चीन और भारत के साथ जो विशेष संबंध साझा करता है, वह निश्चित रूप से चीन के साथ सर्वोत्तम शर्तों की तरह से नहीं है.

निश्चित रूप से भारत बहुत उत्सुक है कि युद्ध समाप्त हो जाए और बातचीत से समझौता होना चाहिए जो संबंधित दोनों पक्षों के हित में हो. रूस के साथ भारत के विशेष संबंधों की बात करें तो भारत का करीब 60% रक्षा हार्डवेयर रूस से आता है. इसलिए भारत बहुत सतर्क रहेगा. यूएनएससी में मतदान से दूर रहने का मतलब यह नहीं है कि भारत, यूक्रेन में जो हो रहा है उसका समर्थन कर रहा है. लेकिन इसका मतलब यह है कि हां भारत का एक दृष्टिकोण है और देश उसके हित में काम कर रहा है, जो किसी भी देश को करना चाहिए.

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका ने इराक में करीब 10 वर्षों तक जो किया उससे भारत बहुत खुश नहीं था. फिर भी भारत ने अमेरिका के साथ अपने संबंधों को बेहतर बनाए रखा. इस दुनिया के हर देश को इस पर ध्यान देना होगा, जहां उनके राष्ट्रीय हित, निहित हैं और भारत कोई अपवाद नहीं है. आगे आने वाले भू-राजनीतिक निहितार्थ क्या होंगे? इस पर अर्चना उपाध्याय ने कहा कि किसी भी प्रकार की शत्रुतापूर्ण विदेशी उपस्थिति एक ऐसी चीज है जिसके बारे में रूस शुरू से ही बहुत खुला है और वह उसका विरोध करता रहा है. रूस की सीमा में नाटो की उपस्थिति निश्चित रूप से मित्रवत उपस्थिति नहीं है और रूसी हर संभव मंच पर इसे जोर शोर से बता रहे हैं.

नाटो बलों की उपस्थिति और उनकी सैन्य तैनाती रूस के बेहद करीब है. नाटो सेनाएं न केवल रूस की राजधानी मास्को बल्कि यूक्रेन के पूर्वी हिस्से के भी बहुत करीब हैं. जब रूस ने यह महसूस किया कि पश्चिम, नाटो और यूरोपीय संघ रूस की चिंताओं को तवज्जो नहीं दे रहे हैं, तो उसने वही किया जो उसका करना था. हालांकि अब बातचीत ही समाधान का एकमात्र रास्ता है क्योंकि दोनों पक्षों के लोग हताहत होंगे. इसके अलावा यह बड़ी मानवीय त्रासदी है क्योंकि करीब 50 लाख शरणार्थी पहले से ही यूक्रेन के पड़ोसी देशों में हैं.

यह यूक्रेन पर भी बड़ा दबाव डालने वाला है क्योंकि दुनिया अभी भी कोरोना महामारी के हमले से जूझ रही है. कहा जा सकता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यूरोप में यह सबसे बड़ा युद्ध है. इसका असर यूरोप के हर देश और पूरी दुनिया पर पड़ने वाला है. पहले से ही कच्चे तेल की कीमतें बढ़ रही हैं और भारत की अर्थव्यवस्था भी इससे अछूती नहीं रहने वाली है. रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों को देखते हुए, जहां तक ​​हमारे सैन्य सामान का संबंध है तो क्या इससे भारत के लिए और कठिनाई होगी?

यह भी पढ़ें- रोमानिया से भारतीयों को लेकर पहला विमान मुंबई पहुंचा, दूसरी फ्लाइट सुबह तक पहुंचेगी दिल्ली

यह भी पढ़ें- यूक्रेन के राष्ट्रपति ने पीएम मोदी से बात की, UNSC में भारत से राजनीतिक समर्थन मांगा

इस सवाल पर अर्चना उपाध्याय ने कहा कि भारत इसके बारे में चिंतित है यह और इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत को रक्षा खरीद के अपने स्रोतों में विविधता लानी पड़ेगी. यूक्रेन को अमेरिका ने कैसे छोड़ दिया है? यह भी भारत सहित सभी के लिए एक बड़ा सबक है क्योंकि आखिरकार आपको अपने पैरों पर ही खड़ा होना होगा. अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी. चाहे सहयोगी या दोस्त कितने भी अच्छे क्यों न हों, आपकी लड़ाई आपकी अपनी लड़ाई है.

नई दिल्ली: विशेषज्ञों का मानना है कि रूस अपनी सुरक्षा के अलावा किसी और चीज से समझौता नहीं करने वाला है. ईटीवी भारत ने जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय नई दिल्ली में रूसी अध्ययन की अध्यक्ष अर्चना उपाध्याय (Archana Upadhyay Russian Studies) से विशेष रूप से बात की है. उन्होंने कई अहम बातें बताईं, जो मौजूदा घटनाक्रम को सही तरीके से समझाती हैं.

जब उनसे पूछा गया कि पुतिन, यूक्रेन क्यों चाहते हैं? क्या यूक्रेन खत्म हो जाएगा? तो उन्होंने कहा कि युद्ध हो रहा है. रूस हमेशा अपने निकट में विकास के प्रति बहुत संवेदनशील रहा है. यूक्रेन केवल कोई देश नहीं है बल्किय यूक्रेन रूसी संघ की सीमा में बहुत ही महत्वपूर्ण देश है. वहां होने वाली कोई भी घटना सीधे रूस की सुरक्षा और भलाई को प्रभावित करती है. यही कारण है कि मॉस्को, हमेशा यूक्रेन में क्रेमलिन समर्थक शासन के लिए बहुत उत्सुक रहा है.

पिछले कुछ दिनों में जो घटनाक्रम हो रहा है, उसे देखते हुए यह बिल्कुल स्पष्ट कहा जा सकता है कि रूस अपनी सुरक्षा से कम पर कुछ भी समझौता नहीं करने जा रहा है. उसे अपने आप को पूरी तरह से सुरक्षित करना है लेकिन यह कैसे संभव है? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि रूस एक ऐसी सरकार स्थापित करेगा जो रूस समर्थक शासन क्रेमलिन के अनुकूल हो. यह निश्चित रूप से पश्चिमी दुनिया, यूरोपीय संघ, अमेरिका और नाटो के लिए भी एक बड़ा संदेश होगा.

रूस क्यों अपनी सुरक्षा से समझौता नहीं करने वाला? जानें विशेषज्ञ की राय

यूक्रेन संकट पर भारत की स्थिति अब तक अद्वितीय क्यों रही है? क्या भारत तनाव को कम करने में अहम भूमिका निभा सकता है? इस पर अर्चना उपाध्याय ने कहा कि भारत ने बहुत ही व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया है. चूंकि भारत, रूस के साथ विशेष संबंध साझा करता है, इसलिए वह रूस के साथ अपने संबंधों को खतरे में डालने का जोखिम नहीं उठा सकता. इसके अलावा हम सभी जानते हैं कि रूस, चीन और भारत के साथ जो विशेष संबंध साझा करता है, वह निश्चित रूप से चीन के साथ सर्वोत्तम शर्तों की तरह से नहीं है.

निश्चित रूप से भारत बहुत उत्सुक है कि युद्ध समाप्त हो जाए और बातचीत से समझौता होना चाहिए जो संबंधित दोनों पक्षों के हित में हो. रूस के साथ भारत के विशेष संबंधों की बात करें तो भारत का करीब 60% रक्षा हार्डवेयर रूस से आता है. इसलिए भारत बहुत सतर्क रहेगा. यूएनएससी में मतदान से दूर रहने का मतलब यह नहीं है कि भारत, यूक्रेन में जो हो रहा है उसका समर्थन कर रहा है. लेकिन इसका मतलब यह है कि हां भारत का एक दृष्टिकोण है और देश उसके हित में काम कर रहा है, जो किसी भी देश को करना चाहिए.

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका ने इराक में करीब 10 वर्षों तक जो किया उससे भारत बहुत खुश नहीं था. फिर भी भारत ने अमेरिका के साथ अपने संबंधों को बेहतर बनाए रखा. इस दुनिया के हर देश को इस पर ध्यान देना होगा, जहां उनके राष्ट्रीय हित, निहित हैं और भारत कोई अपवाद नहीं है. आगे आने वाले भू-राजनीतिक निहितार्थ क्या होंगे? इस पर अर्चना उपाध्याय ने कहा कि किसी भी प्रकार की शत्रुतापूर्ण विदेशी उपस्थिति एक ऐसी चीज है जिसके बारे में रूस शुरू से ही बहुत खुला है और वह उसका विरोध करता रहा है. रूस की सीमा में नाटो की उपस्थिति निश्चित रूप से मित्रवत उपस्थिति नहीं है और रूसी हर संभव मंच पर इसे जोर शोर से बता रहे हैं.

नाटो बलों की उपस्थिति और उनकी सैन्य तैनाती रूस के बेहद करीब है. नाटो सेनाएं न केवल रूस की राजधानी मास्को बल्कि यूक्रेन के पूर्वी हिस्से के भी बहुत करीब हैं. जब रूस ने यह महसूस किया कि पश्चिम, नाटो और यूरोपीय संघ रूस की चिंताओं को तवज्जो नहीं दे रहे हैं, तो उसने वही किया जो उसका करना था. हालांकि अब बातचीत ही समाधान का एकमात्र रास्ता है क्योंकि दोनों पक्षों के लोग हताहत होंगे. इसके अलावा यह बड़ी मानवीय त्रासदी है क्योंकि करीब 50 लाख शरणार्थी पहले से ही यूक्रेन के पड़ोसी देशों में हैं.

यह यूक्रेन पर भी बड़ा दबाव डालने वाला है क्योंकि दुनिया अभी भी कोरोना महामारी के हमले से जूझ रही है. कहा जा सकता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यूरोप में यह सबसे बड़ा युद्ध है. इसका असर यूरोप के हर देश और पूरी दुनिया पर पड़ने वाला है. पहले से ही कच्चे तेल की कीमतें बढ़ रही हैं और भारत की अर्थव्यवस्था भी इससे अछूती नहीं रहने वाली है. रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों को देखते हुए, जहां तक ​​हमारे सैन्य सामान का संबंध है तो क्या इससे भारत के लिए और कठिनाई होगी?

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इस सवाल पर अर्चना उपाध्याय ने कहा कि भारत इसके बारे में चिंतित है यह और इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत को रक्षा खरीद के अपने स्रोतों में विविधता लानी पड़ेगी. यूक्रेन को अमेरिका ने कैसे छोड़ दिया है? यह भी भारत सहित सभी के लिए एक बड़ा सबक है क्योंकि आखिरकार आपको अपने पैरों पर ही खड़ा होना होगा. अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी. चाहे सहयोगी या दोस्त कितने भी अच्छे क्यों न हों, आपकी लड़ाई आपकी अपनी लड़ाई है.

Last Updated : Feb 27, 2022, 4:22 PM IST
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