कोलकाता : पाकिस्तान के जनक मोहम्मद अली जिन्ना महान स्वतंत्रता सेनानी सुरेंद्र नाथ बनर्जी से काफी प्रभावित थे. जिन्ना ने कई मौकों पर इसका जिक्र किया था. अपने अलग-अलग लेखों और भाषणों में वह अक्सर उनका नाम लिया करते थे. जिन्ना ने यह स्वीकार किया था कि वह सुरेंद्र नाथ बनर्जी की राजनीतिक सोच की प्रक्रिया के काफी कायल थे.
जाहिर है, यह जानकर हर कोई हैरान है, आखिर जिन्ना बनर्जी की इतनी तारीफ क्यों करते थे. और इतने ही अधिक प्रभावित थे, तो जिन्ना ने देश को विभाजित करने वाला विचार क्यों अपनाया. इस विषय पर ईटीवी भारत ने इतिहासज्ञों से विशेष बातचीत की. उनका मानना है कि कांग्रेस ने स्वतंत्रता से पहले दोनों नेताओं की उपेक्षा की थी. संभवतः यह एक कारण था कि दोनों नेता बौद्धिक स्तर पर एक दूसरे के करीब आए थे.
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इतिहास के जानकारों का कहना है कि यह सही है कि जिन्ना ने धर्म के जरिए राजनीतिक दूरी तय की, लेकिन यह भी उतना ही बड़ा सच है कि जिन्ना शुरुआती दिनों में लिबरल डेमोक्रेसी के पक्षधर थे. और सुरेंद्र नाथ बनर्जी भी लिबरल डेमोक्रेसी के पक्षधर थे.
रबिन्द्र भारती यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आशीष दास ने ईटीवी भारत को बताया कि दोनों ही नेता, जिन्ना और बनर्जी, स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में कांग्रेस द्वारा पीछे किए गए. उनकी अनदेखी की गई. यह एक बड़ी वजह थी कि दोनों नेता एक दूसरे के करीब आए.
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दास ने कहा कि दूसरी वजह है लिबरल डेमोक्रेसी के प्रति समान सोच. उन्होंने कहा कि यह सही है कि जिन्ना ने बाद में धर्म के रास्ते राजनीतिक सफर आगे बढ़ाने का फैसला किया, लेकिन यह भी सच है कि वह लिबरल डेमोक्रेसी में विश्वास करते थे. खुद जिन्ना ने जब लिबरल डेमोक्रेसी के रास्ते का त्याग किया, तो उनका दर्द छलका था. इसलिए उन्होंने बार-बार सुरेंद्र नाथ बनर्जी का जिक्र किया.
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दूसरी इतिहासकार तनिका सरकार की भी ऐसी ही राय रखती हैं. उन्होंने कहा कि यह निश्चित तौर पर सही है कि बनर्जी ने जिन्ना की राजनीतिक सोच को काफी हद तक प्रभावित किया था, और दोनों के बीच कॉमन फैक्टर लिबरल डेमोक्रेसी थी. हां, ये अलग बात है कि बाद में जिन्ना ने अपना रास्ता अलग चुन लिया. लेकिन इसके बावजूद उन्हें जब भी मौका मिला, उनकी पीड़ा झलकती रही. वह बार-बार बनर्जी का जिक्र करते रहे.
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