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मध्य प्रदेश में नहीं मिली एंबुलेंस, थैले में शव रख तय किया 150 किलोमीटर का सफर, इस पिता की बेबसी देखिए

मध्य प्रदेश के जबलपुर से इंसानियत को शर्मसार कर देने वाला मामला सामने आया है. मृत नवजात के शव को ले जाने के लिए जब कोई साधन नहीं मिला तो पिता थैले में बच्चे का शव रखकर अपने घर डिंडौरी पहुंचा.

ambulance was not available in jabalpur
जबलपुर में थैले में नवजात बेटे का शव
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Published : Jun 16, 2023, 2:09 PM IST

Updated : Jun 16, 2023, 11:10 PM IST

थैले में नवजात बेटे का शव रखकर घर पहुंचा पिता

जबलपुर। डिंडोरी के गरीब पिता को अपने मृत नवजात के शव को ले जाने के लिए जब कोई साधन नहीं मिला तो वह बच्चे का शव थैले में रख कर ले गया. घटना गुरुवार रात की है. जब डिंडोरी से आए परिवार के नवजात बेटे की जबलपुर मेडिकल कॉलेज में इलाज के दौरान मौत हो गई. उन्हें बच्चे के शव को वापस डिंडोरी ले जाने के लिए कोई साधन नहीं मिला. गरीब पिता के पास शव को ले जाने के लिए दूसरा कोई विकल्प नहीं था, इसलिए थैले में बच्चे के शव को रखकर अपने घर ले गए.

मेडिकल कॉलेज में नवजात की मौत: 13 जून को डिंडौरी के सहजपुरी गांव में रहने वाली जमनी बाई को प्रसव पीड़ा होने पर डिंडौरी जिला चिकित्सालय में भर्ती कराया गया था. प्रसव के बाद नवजात शिशु की हालत बिगड़ने पर उसे जबलपुर मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया था. जहां उपचार के दौरान नवजात की मौत हो गई. गरीब परिजनों ने डिंडौरी वापस आने के लिए मेडिकल कॉलेज प्रबंधन से शव वाहन का इंतजाम कराने की मिन्नतें की. लेकिन प्रबंधन द्वारा शव वाहन उपलब्ध नहीं कराया गया.

डॉ. संजय मिश्रा

थैले में शव रख घर पहुंचा परिवार: मेडिकल कॉलेज से नवजात का शव ऑटो में रखकर परिजन जैसे-तैसे जबलपुर बस स्टैंड पहुंचे. इसके बाद शव को थैले में छुपाकर बस में 150 किलोमीटर का सफर तय करके देर रात डिंडौरी पहुंचे. थैले में शव रखकर परिजन डिंडौरी बस स्टैंड पर रिश्तेदारों के इंतजार में यहां-वहां भटक रहे थे. लेकिन डिंडौरी में भी कोई उनकी मदद के लिए सामने नहीं आया.

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अक्सर गरीबों को नहीं मिलता शव वाहन: मीडिया कर्मियों ने जब बच्चे के परिजन सूरजतिया बाई से पूछा कि वह बच्चे का शव थैले में रखकर क्यों लाए तो उन्होंने बताया कि ''उनके पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं था. डिंडोरी से उन्हें गांव तक जाने के लिए कोई साधन नहीं मिल रहा था कोई भी बच्चे के शव को अपने वाहन में ले जाने को तैयार नहीं था.'' बता दें कि सूरजतिया बाई के साथ जो घटना घटी वह कुछ अनोखी नहीं है. अकसर गरीबों को अपने मृत परिजनों को ले जाने में बड़ी समस्या का सामना करना पड़ता है

जिंदा ही किया गया था डिस्चार्ज: जबलपुर स्वास्थ्य विभाग के क्षेत्रीय संचालक डॉ. संजय मिश्रा का कहना है कि डिंडोरी के नवजात शिशु को मेडिकल कॉलेज से जिंदा ही डिस्चार्ज किया गया था. परिवार के लोगों ने इस बात की लिखित स्वीकृति दी थी कि वह बच्चे को घर वापस ले जाना चाहते हैं. बच्चे की मृत्यु मेडिकल कॉलेज में नहीं हुई इस बात की जानकारी स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी को मेडिकल कॉलेज के प्रबंधन ने दी है लेकिन इसके बाद भी स्वास्थ्य विभाग के संचालक डॉक्टर संजय मिश्रा ने इस मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं. उनका कहना है कि यदि कहीं लापरवाही बरती गई होगी तो दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा.

प्रशासन, सरकार और समाज के मुंह पर करारा तमाचा: मेडिकल कॉलेज के आसपास एक पूरा रैकेट काम करता है जो बॉडी को ले जाने में लंबी चौड़ी रकम मांगता है. लेकिन गरीब लोगों के पास शव वाहन के लिए पैसे नहीं होते हैं, जिस कारण उनके सामने बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है. यह घटना प्रशासन, सरकार और समाज के मुंह पर एक करारा तमाचा है जो गरीबों की मदद के दावे करते हैं.

थैले में नवजात बेटे का शव रखकर घर पहुंचा पिता

जबलपुर। डिंडोरी के गरीब पिता को अपने मृत नवजात के शव को ले जाने के लिए जब कोई साधन नहीं मिला तो वह बच्चे का शव थैले में रख कर ले गया. घटना गुरुवार रात की है. जब डिंडोरी से आए परिवार के नवजात बेटे की जबलपुर मेडिकल कॉलेज में इलाज के दौरान मौत हो गई. उन्हें बच्चे के शव को वापस डिंडोरी ले जाने के लिए कोई साधन नहीं मिला. गरीब पिता के पास शव को ले जाने के लिए दूसरा कोई विकल्प नहीं था, इसलिए थैले में बच्चे के शव को रखकर अपने घर ले गए.

मेडिकल कॉलेज में नवजात की मौत: 13 जून को डिंडौरी के सहजपुरी गांव में रहने वाली जमनी बाई को प्रसव पीड़ा होने पर डिंडौरी जिला चिकित्सालय में भर्ती कराया गया था. प्रसव के बाद नवजात शिशु की हालत बिगड़ने पर उसे जबलपुर मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया था. जहां उपचार के दौरान नवजात की मौत हो गई. गरीब परिजनों ने डिंडौरी वापस आने के लिए मेडिकल कॉलेज प्रबंधन से शव वाहन का इंतजाम कराने की मिन्नतें की. लेकिन प्रबंधन द्वारा शव वाहन उपलब्ध नहीं कराया गया.

डॉ. संजय मिश्रा

थैले में शव रख घर पहुंचा परिवार: मेडिकल कॉलेज से नवजात का शव ऑटो में रखकर परिजन जैसे-तैसे जबलपुर बस स्टैंड पहुंचे. इसके बाद शव को थैले में छुपाकर बस में 150 किलोमीटर का सफर तय करके देर रात डिंडौरी पहुंचे. थैले में शव रखकर परिजन डिंडौरी बस स्टैंड पर रिश्तेदारों के इंतजार में यहां-वहां भटक रहे थे. लेकिन डिंडौरी में भी कोई उनकी मदद के लिए सामने नहीं आया.

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अक्सर गरीबों को नहीं मिलता शव वाहन: मीडिया कर्मियों ने जब बच्चे के परिजन सूरजतिया बाई से पूछा कि वह बच्चे का शव थैले में रखकर क्यों लाए तो उन्होंने बताया कि ''उनके पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं था. डिंडोरी से उन्हें गांव तक जाने के लिए कोई साधन नहीं मिल रहा था कोई भी बच्चे के शव को अपने वाहन में ले जाने को तैयार नहीं था.'' बता दें कि सूरजतिया बाई के साथ जो घटना घटी वह कुछ अनोखी नहीं है. अकसर गरीबों को अपने मृत परिजनों को ले जाने में बड़ी समस्या का सामना करना पड़ता है

जिंदा ही किया गया था डिस्चार्ज: जबलपुर स्वास्थ्य विभाग के क्षेत्रीय संचालक डॉ. संजय मिश्रा का कहना है कि डिंडोरी के नवजात शिशु को मेडिकल कॉलेज से जिंदा ही डिस्चार्ज किया गया था. परिवार के लोगों ने इस बात की लिखित स्वीकृति दी थी कि वह बच्चे को घर वापस ले जाना चाहते हैं. बच्चे की मृत्यु मेडिकल कॉलेज में नहीं हुई इस बात की जानकारी स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी को मेडिकल कॉलेज के प्रबंधन ने दी है लेकिन इसके बाद भी स्वास्थ्य विभाग के संचालक डॉक्टर संजय मिश्रा ने इस मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं. उनका कहना है कि यदि कहीं लापरवाही बरती गई होगी तो दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा.

प्रशासन, सरकार और समाज के मुंह पर करारा तमाचा: मेडिकल कॉलेज के आसपास एक पूरा रैकेट काम करता है जो बॉडी को ले जाने में लंबी चौड़ी रकम मांगता है. लेकिन गरीब लोगों के पास शव वाहन के लिए पैसे नहीं होते हैं, जिस कारण उनके सामने बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है. यह घटना प्रशासन, सरकार और समाज के मुंह पर एक करारा तमाचा है जो गरीबों की मदद के दावे करते हैं.

Last Updated : Jun 16, 2023, 11:10 PM IST
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