भोपाल। मध्य प्रदेश में सत्तारूढ़ दल बीजेपी को विधानसभा चुनाव की जीत की राह आसान दिखाई नहीं दे रही है. पार्टी लगातार चिंतन-मंथन में जुटी है. लेकिन बीजेपी में पुराने चावलों से उबाल आ रहा है. पार्टी इस बार भी 70 पार नेताओं का टिकट काटेगी. ऐसे में 60 से 70 विधायकों का टिकट कटना तय माना जा रहा है. हाल ही में बीजेपी कार्यसमिति की बैठक के बाद दिग्गजों के बीच पार्टी के तीसरे सर्वे को लेकर बातचीत हुई. बातचीत में विधायकों का सर्वे कार्ड रखा गया, जिसमें माना जा रहा है कि 60 से 70 विधायक अपना विधानसभा चुनाव हार रहे हैं. लिहाजा पार्टी करीब 70 विधायकों का टिकट काटने के मूड में है.
बीजेपी कैसे झेलेगी बुजुर्गों का गुस्सा: प्रदेश बीजेपी के लिए इतनी बड़ी मात्रा में टिकट काटना चौंकाने वाला फैसला होगा. खासतौर से उन बुजुर्ग चेहरों के लिए ये मायूस करने वाला फैसला होगा, जो चार बार के विधायक हैं और जिनकी उम्र 70 पार है. नाराज चेहरों को समझाने के लिए पार्टी ने दिग्गजों को मोर्चा संभालने की जिम्मेदारी दी है. लेकिन पार्टी के सामने अब दिक्कत यह है कि टिकट काटने के बाद उनका गुस्सा झेलना पड़ेगा. दूसरी तरफ पुराने नेताओं की नाराजगी को कंट्रोल करने के लिए पार्टी की एक विंग को लगा दिया गया है, जिसमें केंद्रीय मंत्री और पार्टी के दिग्गज हैं. पार्टी को जो रिपोर्ट मिली है, उसके मुताबिक इन नेताओं का हारना तय है. इसलिए पार्टी यहां से नए चेहरों को उतारेगी. हालांकि बीजेपी पुराने नेताओं की नाराजगी दूर करने के लिए अपने क्राइटेरिया में थोड़ा बदलाव कर सकती है.
बुजुर्गों को विकल्प देने पर विचार : इस बात पर मंथन चल रहा है कि जो पुराने दिग्गज हैं और जिनका टिकट कटना है, उनकी जगह उनके रिश्तेदार या फिर बेटे को टिकट दिया जा सकता है. लेकिन यह तभी होगा जब वहां पर कोई विकल्प पार्टी के पास नहीं बचेगा.नहीं तो पार्टी नए चेहरे को मैदान में उतारेगी. बीजेपी महामंत्री भगवानदास सबनानी का कहना है कि किसको टिकट मिलेगा, किसका कटेगा. यह प्रदेश बीजेपी तय नहीं करती बल्कि पार्टी का संसदीय बोर्ड यह फैसला करता है. जहां तक बुजुर्गों के टिकट कटने का सवाल है तो यह फैसला हाईकमान करता है. प्रदेश बीजेपी यहां से रिपोर्ट बनाकर भेजती है.
बीजेपी में अंतर्कलह : वहीं, राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक चुनावी साल में जिस तरह से बीजेपी में अंदरूनी विरोध खुलकर सामने आ रहा है, यदि उसे नहीं थामा गया तो पार्टी को 24 से 30 सीटों का नुकसान उठाना पड़ सकता है. दीपक जोशी का कांग्रेस में जाना, साथ ही असंतुष्टों का अब खुलकर पार्टी के सामने बोलना. सत्यनारायण सत्तन, भंवर सिंह शेखावत, पार्टी के पूर्व वरिष्ठ नेता रघुनंदन शर्मा ने पार्टी की रीतिनीति पर अब सीधे तौर पर सवाल उठाया है और पार्टी को दो टूक कह दिया है कि अब बीजेपी बदल गई है. द्रौपदी की तरह हो गई है. बीजेपी के सामने दिक्कत यह है कि जो लोग कांग्रेस से आए हैं, उन विधायकों के क्षेत्र में सबसे ज्यादा चुनौतियां हैं. 24 से 30 सीटों पर बीजेपी को इन्हीं समीकरण के चलते नुकसान उठाना पड़ सकता है. बीजेपी के सर्वे में एक बात और सामने आई है कि कांग्रेस से बीजेपी में आए 14 नेताओं की रिपोर्ट निगेटिव है, ये सभी सिंधिया समर्थक हैं. क्षेत्र में जनता इनसे नाराज है.
वीडी व शिवराज से नहीं माने असंतुष्ट नेता : दीपक जोशी के एपिसोड के बाद बीजेपी से नाराज नेताओं को मनाने की जिम्मेदारी अब संघ पर छोड़ दी गई है. राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिव प्रकाश, क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल ने नाराज नेताओं से संवाद करना शुरू कर दिया है और पुराने बुजुर्ग चेहरों को मनाने का क्रम जारी है. अनूप मिश्रा के भी तेवर साफ दिखाई दे रहे हैं. उन्होंने भी तय कर लिया है कि ग्वालियर दक्षिण सीट से वह हर हाल में चुनाव लड़ेंगे. वहीं गौरीशंकर बिसेन चाहते हैं कि उनकी बेटी मौसमी बिसेन को टिकट मिले और इसके लिए उन्होंने लॉबिंग भी शुरू कर दी है. पार्टी के वरिष्ठ नेता जयंत मलैया, गौरीशंकर शेजवार, हिम्मत कोठारी, अनूप मिश्रा ऐसे नेता है, जिन्हें उम्र का हवाला देकर दरकिनार कर दिया गया है और पार्टी ने यह भी ऐलान कर दिया है कि वंशवाद नहीं चलेगा. लिहाजा अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिए ये नेता बगावत पर उतारू हैं. पार्टी में युवा जिला अध्यक्षों को बनाए जाने पर भी अंतर्विरोध सामने आ रहा है. 55 की उम्र के क्राइटेरिया के चलते पुराने चेहरों को जिला अध्यक्ष नहीं बनाया गया है. इससे भी पार्टी में खिलाफत सामने आने लगी है.
कांग्रेस में भी टिकट को लेकर फार्मूला तय : मध्यप्रदेश में कर्नाटक के चुनाव परिणाम से कांग्रेस उत्साहित है. कर्नाटक फार्मूला मध्यप्रदेश में कांग्रेस अपने विधायकों के चयन में अपनाएगी. सूत्रों की मानें तो कमलनाथ ने तकरीबन 65 विधायकों को मैदान में चुनावी तैयारी के लिए भेज दिया है. माना जा रहा है कि अगस्त के पहले सप्ताह में यह नाम कांग्रेस जारी कर देगी. दूसरी तरफ अभी कांग्रेस के पास 95 विधायकों पर फिर से सर्वे होगा. उससे मिले फीडबैक के बाद इन विधायकों के भविष्य का फैसला लिया जाएगा. ऐसे में तकरीबन 30 विधायकों पर फिलहाल तलवार लटक रही है. पार्टी के मुताबिक कांग्रेस में जो टिकट फार्मूला होगा वह कर्नाटक पैटर्न पर होगा.
3 चरणों में प्रत्याशियों का ऐलान : इस बार पार्टी 3 चरणों में अपने प्रत्याशियों का ऐलान करेगी. कांग्रेस की लिस्ट में उन विधायकों को शामिल किया जाएगा, जो 2018 में बहुत कम अंतर से हारे हैं. साथ ही वे चेहरे जो बीजेपी से आए हैं, उनको प्राथमिकता दी जाएगी. पार्टी सूत्रों के मुताबिक कमलनाथ ने सर्वे करा लिए हैं और अब दिग्विजय सिंह की सर्वे रिपोर्ट और उनका विधायकों के बारे में फीडबैक मिलने के बाद फिर से चुनाव लड़ने के लिए हरी झंडी दे दी जाएगी. हालांकि कांग्रेस अपने पत्ते नहीं खोल रही है. कांग्रेस मीडिया सेल के अध्यक्ष केके मिश्रा का कहना है कि वह अभी फार्मूला का जिक्र नहीं करेंगे लेकिन यह जरूर है कि कमलनाथ ही मुख्यमंत्री होंगे.
कांग्रेस से दीपक जोशी मैदान में उतरेंगे : दीपक जोशी कह चुके हैं कि पार्टी कहेगी तो वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने बुधनी से चुनाव लड़ सकते हैं. लेकिन जानकारों के मुताबिक दीपक जोशी बागली या हाट पिपलिया से ही चुनाव लड़ने को प्राथमिकता में रखेंगे और पार्टी को भी लग रहा है की दीपक जोशी को इन सीटों से उतारा जाए तो कांग्रेस को 1 सीट और मिल जाएगी.
कांग्रेस ने ऑब्जर्वर नियुक्त किए : लगातार हार वाली सीटों के लिए कांग्रेस ने ऑब्जर्वर नियुक्त किए हैं. कांग्रेस संगठन में 66 सीटों के लिए दूसरे राज्य के नेताओं को ऑब्जर्वर नियुक्त किया है. इन सीटों पर कमलनाथ के साथ-साथ दिग्विजय सिंह भी लगातार दौरा कर रहे हैं. यहां पर मंडलम स्तर तक कांग्रेस बैठकें कर चुकी है. अर्जुन मोरवडिया को मालवा और निमाड़ का पर्यवेक्षक नियुक्त किया है, ये गुजरात कांग्रेस में पूर्व अध्यक्ष हैं. कुलदीप राठौर को ग्वालियर चंबल का पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया है, ये हिमाचल के पूर्व अध्यक्ष हैं. प्रदीप टम्टा के पास महाकौशल और विंध्य की जिम्मेदारी है. ये उत्तराखंड कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष हैं. सुभाष चोपड़ा को भोपाल और नर्मदापुरम की जिम्मेदारी दी गई है. वे दिल्ली कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष हैं.