भोपाल। कमलनाथ के करीबी कहे जाने वाले नरेंद्र सलूजा के बीजेपी में शामिल होने के बाद अब कांग्रेस ने ये साफ किया है कि सलूजा ने पार्टी नही छोड़ी, उन्हें तो 13 नवम्बर को ही पार्टी विरोधी गतिविधियों की वजह से कांग्रेस के निष्कासित किया जा चुका था.
दूसरी पार्टी के संपर्क में थे सलूजा: कांग्रेस के मीडिया विभाग की ओर से जारी बयान में ये बताया गया है कि पार्टी विरोधी गतिविधियों की वजह से 13 नवम्बर को सलूजा को निष्कासित कर दिया गया था. कांग्रेस की ओर से ये भी कहा गया है कि सलूजा लगातार दूसरी पार्टी के संपर्क में थे और पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त थे, जब इसकी जानकारी पार्टी को मिली तो उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया. इसके अलावा बयान में कहा गया कि पार्टी में अनुशासित कार्यकर्ताओं का पूरा सम्मान है, लेकिन अनुशासनहीनता और गद्दारी करने वाले व्यक्ति के लिए पार्टी में कोई जगह नहीं है. पार्टी के मीडिया विभाग के अध्यक्ष के के मिश्रा ने कहा कि, "पार्टी से निकाले गए गद्दार, वहां जा सकते हैं जहां जाने के बाद सार्वजनिक मंच से उहें विभीषण कहा जाता है."
सलूजा ने थामा बीजेपी का हाथ: नरेंद्र सलूजा ने इंदौर खालसा कॉलेज में हुए घटनाक्रम का जिक्र करते हुए कहा कि, उसमें जो 84 दंगों का सच सामने आया, उसके बाद उनका मन व्यथित हुआ. उन्होंने कहा कि, "मैं जिस धर्म में आस्था रखता हूं, उस धर्म के मेरे लोगों की हत्या के आरोपियों के सच ने मेरी आंखे खोल दीं. मैं ऐसे संगठन (कांग्रेस) के साथ कार्य नहीं कर सकता था. मैं एक कार्यकर्ता के रूप में बीजेपी में शामिल हुआ हूं, पार्टी जो जिम्मेदारी देगी निभाऊंगा."
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सलूजा पर साजिश रचने का था आरोप: असल में इंदौर में प्रकाश पर्व के आयोजन के दौरान जो विवाद हुआ उसके बाद से सलूजा कटघरे में आ गये थे, उन पर साजिश करने के आरोप लगाए गए थे. उसके बाद बताया जाता है कि सलूजा को पीसीसी मुख्यालय में एंट्री पर भी रोक लगा दी गई थी, हांलाकि ये पहला मौका नहीं है सलूजा पहले भी तेवर दिखा चुके हैं और उनकी कांग्रेस में आस्था संदिग्ध रही है. इसके पहले जब मध्यप्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग का अध्यक्ष के के मिश्रा को बनाया गया था, तब भी सलूजा ने मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था, हांलाकि बाद में उन्हें मान मनौव्वल के बाद ले आया गया था.