मऊ: जिले की एमपी-एमएलए कोर्ट ने बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी को एक लाख रुपये के मुचलके पर बुधवार को जमानत दे दी. अदालत ने उनको तुरंत रिहा करने का आदेश दिया है. मुख्तार अंसारी के खिलाफ वर्ष 2011 में दक्षिण टोला थाने में गवाह और सरकारी गनर के हत्या का मामला दर्ज हुआ था. हत्या मऊ में एआरटीओ कार्यालय पर हुई थी. इसमें मुख्तार अंसारी को आरोपी बनाया गया था और गैंगस्टर एक्ट लगा था. इस मामले में कोर्ट ने मुख्तार अंसारी को जमानत दी है.
मुख्तार के वकील दरोगा सिंह के अनुसार कोर्ट ने कहा कि गैंगस्टर एक्ट में मात्र 10 साल की सजा होती है और मुख्तार 10 वर्ष से अधिक समय से जेल में बंद है. ऐसे में उनको 1 लाख रुपये के मुचलके पर बांदा जेल से तत्काल रिहा करें. मुख्तार अंसारी को केवल 2011 में हुए हत्याकांड के मामले में रिहाई मिली है. इसके अलावा भी मुख्तार अंसारी के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज हैं. ऐसे में मुख्तार अंसारी का रिहा होना अभी मुश्किल नजर आ रहा है.
कौन है माफिया मुख्तार अंसारी
मुख्तार अंसारी का जन्म उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में हुआ है. मुख्तार को राजनीति विरासत में मिली है. उनके दादा मुख्तार अहमद अंसारी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे. उनके पिता एक कम्युनिस्ट नेता थे. कॉलेज में ही पढ़ाई लिखाई में ठीक मुख्तार ने अपने लिए अलग राह चुनी. उन्होंने 90 के दशक में अपना गैंग शुरू किया. अब आपको बता दे कि 1970 के दौर में जब पूर्वांचल के विकास के लिए सरकार ने योजनाएं शुरू की, तो 90 का दशक आते-आते मुख्तार ने जमीन कब्जाने के लिए अपना गैंग बना लिया. उसके सामने माफिया ब्रजेश सिंह सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरे. यहीं से मुख्तार और ब्रजेश सिंह के बीच गैंगवार शुरू हुआ.
अपराध की दुनिया में कदम
1988 में पहली बार हत्या के एक मामले में मुख्तार का नाम आया. हालांकि उनके खिलाफ कोई पुख्ता सबूत पुलिस के हाथ नहीं लग पाया. लेकिन इससे पूर्वांचल का ये माफिया चर्चाओं में आ गया. 1990 के दशक में मुख्तार अंसारी जमीनी कारोबार और ठेकों को लेकर अपराध की दुनिया में कदम रख चुका था. उसके नाम का सिक्का पूर्वांचल के मऊ, गाजीपुर, वाराणसी और जौनपुर में चलता था.
मुख्तार का राजनीतिक सफर
मुख्तार ने अपनी अपराधिक छवि को सुधारने के लिए राजनीति में कदम रखा. साल 1995 में मुख्तार अंसारी राजनीति की मुख्य धारा में शामिल हुआ. 1996 में पहली बार वो विधानसभा के लिए चुना गया. उसके बाद से ही राजनीतिक संरक्षण पाकर उसने ब्रजेश सिंह की सत्ता को हिलाना शुरू कर दिया. साल 2002 आते-आते ये दोनों पूर्वांचल के सबसे बड़े गिरोह बन गए. इसी दौरान मुख्तार के काफिले पर हमला हुआ. दोनों ओर से गोलीबारी हुई. हमले में मुख्तार के तीन लोग मारे गये. खबर ये भी आई कि ब्रजेश सिंह इस हमले में घायल हो गये. उसके मारे जाने की अफवाह भी उड़ी.
इसके बाद बाहुबली मुख्तार अंसारी पूर्वांचल में अकेले ही गैंग लीडर बनकर उभरा.लेकिन कुछ दिनों बाद इस गैंगवार में ब्रजेश सिंह के जिंदा होने की पुष्टि हो गई. जिसका नतीजा हुआ कि फिर से दोनों ही गुटों में संघर्ष छिड़ गया. अंसारी के राजनीतिक संरक्षण का सामना करने के लिए ब्रजेश सिंह ने बीजेपी के बाहुबली नेता कृष्णानंद राय का दामन थाम लिया. उसने उनके चुनाव अभियान का समर्थन भी किया. जिसके बाद राय ने 2002 में उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में मोहम्मदाबाद से मुख्तार अंसारी के भाई और पांच बार के विधायक अफजल अंसारी को हरा दिया. जिसके बाद मुख्तार ने दावा किया कि कृष्णानंद राय ने ब्रजेश सिंह के गिरोह को सरकारी ठेके दिलाने के लिए अपने राजनीतिक कार्यालय का इस्तेमाल किया और उन्हें खत्म करने की योजना बनायी.
पिछले 14 सालों से मुख्तार अंसारी जेल में ही बंद है. मर्डर, किडनैपिंग और एक्सटॉर्शन जैसे कई संगीन वारदातों के आरोप में मुख्तार अंसारी के खिलाफ 40 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं. फिर भी दबंगई इतनी है कि जेल में रहते हुए भी न सिर्फ चुनाव जीतता है. बल्कि अपने गैंग को भी चलाता है. 2005 में मुख्तार को पर मऊ में हिंसा भड़काने के आरोप लगे. साथ ही जेल में रहते हुए बीजेपी नेता कृष्णानंद राय की 7 साथियों समेत हत्या का इल्जाम भी अंसारी पर लगा है.