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नुपूर प्रकरण : सुप्रीम कोर्ट के वकील ने पूर्व जज ढींगरा पर अवमानना का मामला चलाने के लिए AG को लिखी चिट्ठी

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Published : Jul 6, 2022, 7:08 PM IST

Updated : Jul 6, 2022, 9:17 PM IST

नुपूर शर्मा मामले में सुप्रीम कोर्ट के 'ओरल ऑब्जर्वेशन' को चुनौती दी जा सकती है या नहीं ? क्या आप सुप्रीम कोर्ट के जज की आलोचना कर सकते हैं ? और किसी ने ऐसा किया, तो क्या उसके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जा सकती है या नहीं ? इन सारे सवालों का जवाब जानने के लिए पढ़ें सुप्रीम कोर्ट के वकील सीआर जय सुकीन का एक साक्षात्कार. उनसे बातचीत की है ईटीवी भारत नेशनल ब्यूरो चीफ राकेश त्रिपाठी ने. सुकीन ने हाईकोर्ट के पूर्व जज एसएन ढींगरा के खिलाफ अवमानना चलाने के लिए अटॉर्नी जनरल को चिट्ठी लिखी है. ढींगरा ने सुप्रीम कोर्ट के उस जज के खिलाफ टिप्पणी की, जिन्होंने नुपूर शर्मा प्रकरण पर सख्त टिप्पणी की थी.

SC
सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएन ढींगरा के खिलाफ अवमानना ​​के मामले में अटॉर्नी जनरल से सहमति मांगने के पीछे आपकी क्या दलील थी ?

दरअसल सुप्रीम कोर्ट भारतीय संविधान के अनुसार चलता है. और इस शपथ का कोई त्याग नहीं कर सकता है. यदि आप न्यायालय के आदेश से संतुष्ट नहीं हैं, तो आप अपील करने जाते हैं. आप रिव्यू पिटीशन के लिए जा सकते हैं. आप सीधे अदालत की आलोचना नहीं कर सकते. यहां तक ​​कि सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों ने भी कोई आदेश पारित नहीं किया. उन्होंने मौखिक रूप से ही कुछ टिप्पणी की. जब बहस चल रही हो, वकील उपस्थित रहते हैं, यह बहुत ही सामान्य बात है कि न्यायाधीश टिप्पणी करते हैं. आप मौखिक अवलोकन (ओरल ऑब्जर्वेशन) की भी आलोचना नहीं कर सकते. सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसएन ढींगरा ने 'गैरकानूनी' शब्द का प्रयोग किया, अमन लेखी ने 'अनुचित' शब्द का प्रयोग किया. यह भारतीय न्यायपालिका के लिए बहुत बड़ी क्षति है.

जस्टिस ढींगरा ने कहा कि अगर जज को इतना ही सरोकार था, तो उन्होंने अपनी राय लिखित में क्यों नहीं दी ?

क्योंकि जब भी कोर्ट मामले की सुनवाई कर रहा होता है, तो वे सभी एंगल से मुक्त होते हैं. इसे ही मौखिक अवलोकन कहा जाता है. इसके बाद वह आदेश देते हैं.

लेकिन जस्टिस ढींगरा ने कहा कि उन्होंने अपने आदेश में यह नहीं लिखा कि देश में जो कुछ हो रहा है उसके लिए नूपुर शर्मा जिम्मेदार हैं. जस्टिस ढींगरा ने जो सवाल किया, वह यह था कि उन्होंने अपनी राय लिखित में क्यों नहीं दी ?

हां, उन्होंने लिखित में ऑर्डर नहीं दिया. आम तौर पर किसी भी अदालत की सुनवाई अलग होती है और आदेश अलग होता है. आप अदालत की कार्यवाही के लिए बाध्य नहीं कर सकते. कार्यवाही का अर्थ है तर्क, गवाहों को साझा करना और अन्य कार्यवाही. लेकिन आदेश कुछ अलग है.

न्यायमूर्ति ढींगरा ने कहा कि माननीय न्यायाधीश को अपने आदेशों में टिप्पणियों को लिखना चाहिए था. यह मौखिक क्यों था ?

जस्टिस धींगरा ने सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ 'गैरकानूनी' शब्द का इस्तेमाल किया, जो स्वीकार्य नहीं है. क्योंकि न्यायाधीश सुनवाई के दौरान सभी टिप्पणियों को ऑर्डर में शामिल नहीं कर सकते. ऑर्डर में तो सिर्फ निष्कर्ष होता है.

क्या टिप्पणियों को समाप्त करने के लिए लिखित में उच्चतम न्यायालय की किसी अन्य पीठ में चुनौती दी जा सकती है ?

हां, आप समीक्षा याचिका दायर कर सकते हैं, मुख्य न्यायाधीश से संपर्क करके समीक्षा याचिका पर सुनवाई कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट में यही नियम है.

आपके कहने का मतलब यह है कि अब जब जजों ने मौखिक रूप से अपनी बात रखी है, तो नूपुर मुख्य न्यायाधीश से अपील नहीं कर सकती हैं ?

वह मुख्य न्यायाधीश की अदालत नहीं जा सकतीं हैं. वह कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दाखिल कर सकती हैं. लेकिन चूंकि अवलोकन मौखिक रूप से किए गए हैं, इसलिए इसे समाप्त नहीं किया जा सकता है. यदि कोई न्यायाधीश मौखिक रूप से कुछ व्यक्त करता है, तो उसे लागू नहीं किया जा सकता है. आप मौखिक अवलोकन को चुनौती नहीं दे सकते.

अब आगे क्या होगा ?

चूंकि नूपुर शर्मा ने अपनी याचिका वापस ले ली है, इसलिए वह समीक्षा याचिका दायर नहीं कर सकती हैं. लेकिन वह अपनी शिकायत पर विचार करने के लिए फिर से सुप्रीम कोर्ट में नई याचिका दायर कर सकती हैं. मौखिक टिप्पणियों को कोई चुनौती नहीं दे सकता. अटॉर्नी जनरल ने अभी तक अपनी सहमति नहीं दी है. मुझे विश्वास है कि वह दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एसएन ढींगरा के खिलाफ मामला दर्ज करने की सहमति देंगे.

ये भी पढ़ें : नूपुर मामले में 117 रिटायर्ड जज-नौकरशाह व सैन्य अधिकारियों ने जारी किया बयान

नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएन ढींगरा के खिलाफ अवमानना ​​के मामले में अटॉर्नी जनरल से सहमति मांगने के पीछे आपकी क्या दलील थी ?

दरअसल सुप्रीम कोर्ट भारतीय संविधान के अनुसार चलता है. और इस शपथ का कोई त्याग नहीं कर सकता है. यदि आप न्यायालय के आदेश से संतुष्ट नहीं हैं, तो आप अपील करने जाते हैं. आप रिव्यू पिटीशन के लिए जा सकते हैं. आप सीधे अदालत की आलोचना नहीं कर सकते. यहां तक ​​कि सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों ने भी कोई आदेश पारित नहीं किया. उन्होंने मौखिक रूप से ही कुछ टिप्पणी की. जब बहस चल रही हो, वकील उपस्थित रहते हैं, यह बहुत ही सामान्य बात है कि न्यायाधीश टिप्पणी करते हैं. आप मौखिक अवलोकन (ओरल ऑब्जर्वेशन) की भी आलोचना नहीं कर सकते. सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसएन ढींगरा ने 'गैरकानूनी' शब्द का प्रयोग किया, अमन लेखी ने 'अनुचित' शब्द का प्रयोग किया. यह भारतीय न्यायपालिका के लिए बहुत बड़ी क्षति है.

जस्टिस ढींगरा ने कहा कि अगर जज को इतना ही सरोकार था, तो उन्होंने अपनी राय लिखित में क्यों नहीं दी ?

क्योंकि जब भी कोर्ट मामले की सुनवाई कर रहा होता है, तो वे सभी एंगल से मुक्त होते हैं. इसे ही मौखिक अवलोकन कहा जाता है. इसके बाद वह आदेश देते हैं.

लेकिन जस्टिस ढींगरा ने कहा कि उन्होंने अपने आदेश में यह नहीं लिखा कि देश में जो कुछ हो रहा है उसके लिए नूपुर शर्मा जिम्मेदार हैं. जस्टिस ढींगरा ने जो सवाल किया, वह यह था कि उन्होंने अपनी राय लिखित में क्यों नहीं दी ?

हां, उन्होंने लिखित में ऑर्डर नहीं दिया. आम तौर पर किसी भी अदालत की सुनवाई अलग होती है और आदेश अलग होता है. आप अदालत की कार्यवाही के लिए बाध्य नहीं कर सकते. कार्यवाही का अर्थ है तर्क, गवाहों को साझा करना और अन्य कार्यवाही. लेकिन आदेश कुछ अलग है.

न्यायमूर्ति ढींगरा ने कहा कि माननीय न्यायाधीश को अपने आदेशों में टिप्पणियों को लिखना चाहिए था. यह मौखिक क्यों था ?

जस्टिस धींगरा ने सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ 'गैरकानूनी' शब्द का इस्तेमाल किया, जो स्वीकार्य नहीं है. क्योंकि न्यायाधीश सुनवाई के दौरान सभी टिप्पणियों को ऑर्डर में शामिल नहीं कर सकते. ऑर्डर में तो सिर्फ निष्कर्ष होता है.

क्या टिप्पणियों को समाप्त करने के लिए लिखित में उच्चतम न्यायालय की किसी अन्य पीठ में चुनौती दी जा सकती है ?

हां, आप समीक्षा याचिका दायर कर सकते हैं, मुख्य न्यायाधीश से संपर्क करके समीक्षा याचिका पर सुनवाई कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट में यही नियम है.

आपके कहने का मतलब यह है कि अब जब जजों ने मौखिक रूप से अपनी बात रखी है, तो नूपुर मुख्य न्यायाधीश से अपील नहीं कर सकती हैं ?

वह मुख्य न्यायाधीश की अदालत नहीं जा सकतीं हैं. वह कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दाखिल कर सकती हैं. लेकिन चूंकि अवलोकन मौखिक रूप से किए गए हैं, इसलिए इसे समाप्त नहीं किया जा सकता है. यदि कोई न्यायाधीश मौखिक रूप से कुछ व्यक्त करता है, तो उसे लागू नहीं किया जा सकता है. आप मौखिक अवलोकन को चुनौती नहीं दे सकते.

अब आगे क्या होगा ?

चूंकि नूपुर शर्मा ने अपनी याचिका वापस ले ली है, इसलिए वह समीक्षा याचिका दायर नहीं कर सकती हैं. लेकिन वह अपनी शिकायत पर विचार करने के लिए फिर से सुप्रीम कोर्ट में नई याचिका दायर कर सकती हैं. मौखिक टिप्पणियों को कोई चुनौती नहीं दे सकता. अटॉर्नी जनरल ने अभी तक अपनी सहमति नहीं दी है. मुझे विश्वास है कि वह दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एसएन ढींगरा के खिलाफ मामला दर्ज करने की सहमति देंगे.

ये भी पढ़ें : नूपुर मामले में 117 रिटायर्ड जज-नौकरशाह व सैन्य अधिकारियों ने जारी किया बयान

Last Updated : Jul 6, 2022, 9:17 PM IST
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