हैदराबाद : दिवाली में अब बेरियम से बनने वाले पटाखे फूटेंगे नहीं. पटाखे वाली दिवाली के लिए बैचेन रहने वालों के लिए ग्रीन क्रैकर्स का विकल्प मौजूद है. एयर पल्यूशन को देखते हुए 9 राज्यों में पटाखे पर पाबंदी लगा दी गई है. त्योहार के दिन जश्न मनाने के लिए 2 घंटे की छूट दी गई है, मगर इस दौरान हरित पटाखे यानी ग्रीन क्रैकर्स ही छोड़ने होंगे.
पहले जान लें किन राज्यों में लगा बैन : मध्यप्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, राजस्थान और पंजाब में दीपावली पर सिर्फ दो घंटे यानी रात 8 से 10 बजे तक ग्रीन पटाखों जलाने की अनुमति दी गई है. ओडिशा और दिल्ली में पटाखे बैन कर दिए गए हैं. पश्चिम बंगाल में भी दिवाली पर रात 8 से 10 बजे और छठ पूजा पर शाम 6 से 8 बजे तक ग्रीन पटाखे जलाने की अनुमति दी गई है. यह नियम छठ पूजा, क्रिसमस और न्यू ईयर सेलिब्रेशन के दौरान भी लागू रहेगा. बिहार के चार शहरों पटना, गया, मुजफ्फरपुर और वैशाली और उत्तरप्रदेश के एनसीआर में पटाखे फोड़ने पर बैन लगा दिया गया है. हरियाणा ने भी दिल्ली से सटे एनसीआर में पटाखों पर प्रतिबंध लगाया है.
क्या हैं ग्रीन क्रैकर्स, यह कितना सुरक्षित है: पटाखों पर नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के प्रतिबंध के बाद 2018 में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान संस्थान-राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान (CSIR-NEERI) ने शोध शुरू किया. उन्होंने श्वास, सफल और स्टार सीरीज (SWAS, SAFAL, STAR) के तहत ऐसे पटाखे विकसित किए, जिनकी आवाज और रोशनी सामान्य क्रैकर्स की तरह हैं मगर उससे जानलेवा गैस बहुत कम निकलती है. इससे सामान्य से 30 से 40 फीसद तक प्रदूषण कम होता है. इन पटाखों में हानिकारक एल्युमिनियम, बेरियम, पोटेशियम नाइट्रोजन व कार्बन का प्रयोग बहुत कम होता है. इसे फोड़ने पर 125 डीबी या 145 डीबी से अधिक का साउंड भी नहीं होता है. कुल मिलाकर ये पटाखे पर्यावरण को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. ये सारे पटाखे पेट्रोलियम और विस्फोटक सुरक्षा संगठन (PESO ) से मंजूरी के बाद बाजार में उतारे गए हैं.
SWAS पटाखे - इन क्रैकर्स को सेफ वॉटर रिलीजर कहा जाता है. जलने के बाद इसमें पानी के कण पैदा होते हैं, जिसमें सल्फ़र और नाइट्रोजन के कण घुल जाते हैं.
STAR पटाखे: स्टार क्रैकर्स में पोटेशियम नाइट्रेट और सल्फर के उपयोग नहीं होता है, जिससे जलने के बाद सल्फ़र और नाइट्रोजन कम मात्रा में निकलती है.
SAFAL पटाखे: इनमें एल्यूमीनियम का इस्तेमाल बहुत ही कम होता है. नीरी के मुताबिक, इसमें सामान्य पटाखों से 50 फीसदी कम एल्युमीनियम का उपयोग होता है.
इसके अलावा CSIR-NEERI ने अरोमा क्रैकर्स भी बाजार में उतारे हैं. जलाने के बाद इन पटाखों से बारुद की गंध के बजाय अच्छी खुशबू आती है.
ग्रीन पटाखों की कैटेगरी फुलझड़ी, फ्लॉवर पॉट, स्काईशॉट जैसे सभी तरह के क्रैकर्स मिलते हैं.
जान लें कि कहां मिलेंगे ये ग्रीन क्रैकर्स : अब ग्रीन क्रैकर्स सभी दुकानों पर उपलब्ध होंगे. आप ग्रीन पटाखे के चिह्न देखकर इसकी पहचान कर सकते हैं. इसके अलावा सरकार की ओर से रजिस्टर्ड दुकान पर ये क्रैकर्स मिल जाएंगे. ऑनलाइन सामान बेचने वाली ई-कॉमर्स कंपनी भी ग्रीन पटाखे बेच रही है. यह अभी थोड़े महंगे हैं. जिन पटाखों के लिए 200 रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं, उस कैटिगरी के ग्रीन पटाखों के लिए 270-300 रुपये खर्च करने पड़ेंगे. एक्सपर्ट के मुताबिक, मार्केट डिमांड के हिसाब से अभी ग्रीन पटाखों की सप्लाई कम है. 2020 तक 1600 कंपनियों में से सिर्फ 350 को ग्रीन क्रैकर्स बनाने का लाइसेंस मिला था.
दो साल में आधे से भी कम हो गई पटाखा इंडस्ट्री : 2019 तक शिवकाशी से ही 6000 करोड़ रुपये के पटाखे बेचे जाते थे. 2020 में कोरोना के कारण यह इंडस्ट्री करीब 3000 करोड़ पर सिमट गई. फाइनेंशियल एक्सप्रेस को इंडियन फायरवर्क्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के महासचिव टी कन्नन ने बताया कि प्रतिबंधों के कारण इस कारण शिवकाशी का पटाखा कारोबार इस साल करीब 1,500 करोड़ रुपये तक ही पहुंच पाएगा. बता दें भारत में 90 फीसदी पटाखे शिवकाशी (तमिलनाडु) के 1100 रजिस्टर्ड फैक्ट्रियों में बनते हैं. अब यहां की फैक्ट्रियां भी ग्रीन पटाखे बना रही हैं. उम्मीद जताई जा रही है अगले दो साल में वहां से सौ प्रतिशत ईको फ्रेंडली पटाखे ही बनेंगे.
भारत का ग्रीन पटाखा वाला आइडिया ग्लोबल हुआ तो..: ग्रीन पटाखे का आइडिया भारत का है. अभी तक दुनिया के अन्य देश इस दिशा में आगे नहीं बढ़े हैं. अगर CSIR-NEERI के प्रोडक्ट पोटैशियम और बेरियम वाले पटाखों का विकल्प बनते हैं तो यह भारत के पास दुनिया के बाजार तक पहुंचने का मौका होगा. कोयला संकट के उद्योगों के बंद होने और कोरोना के कारण चाइनीज पटाखों का दबदबा भी कम हो रहा है. अगर श्वास, सफल और स्टार सीरीज के ईको फ्रेंडली पटाखों को दुनिया के बाज़ारों में उतारा जाता है तो भारतीय क्रैकर्स इंड्स्ट्री को राहत मिल जाएगी.