ग्वालियर। सिंधिया राज परिवार के मुखिया और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने परिवार की 300 साल पुरानी परंपरागत शमी पूजा करने पहुंचे. सिंधिया परिवार में शमी वृक्ष की पूजा विजय का प्रतीक मानी जाती है और पीढ़ी दर पीढ़ी सिंधिया परिवार यह पूजा करता रहा है. इसी कड़ी में सोमवार को सिंधिया अपने बेटे महान आर्यमन सिंधिया के साथ शाही पोशाक में दशहरा मैदान पहुंचे. जहां बड़ी संख्या में लोग पहले से मौजूद थे. इसके अलावा सिंधिया राज परिवार से जुड़े सरदार और महल से जुड़े सभी सदस्य इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आए.
आज भी जारी है परंपरा: देश में रियासतें भले ही खत्म हो गयी हों, लेकिन रियासतकालीन परम्पराओं का निर्वाह ग्वालियर में आज भी जारी है. जिसका उदाहरण है ग्वालियर में सिंधिया परिवार. आज दशहरा पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राजशाही पोशाक में शमी पूजन किया. साथ ही अपने महल में राजशाही अंदाज में दरबार भी लगाया. जिसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि ''मेरे देश और राज्य में सुख शांती हो, जीवन में खुशहाली आएं, यही कामना है. साथ ही वासुदेव कुटुब की तरह मेरे देश में अमन चेन कायम रहे है."
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने की शाही पूजा: यह नजारा ग्वालियर के मांढरे की माता का है. जहां राजशाही पोशाक में ज्योतिरादित्य सिंधिया पहुंचे. ज्योतिरादित्य, सिंधिया घराने की 9वीं पीढ़ी का नेतृत्व कर रहे हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया परंपरागत वेश-भूषा में शमी पूजन स्थल मांढरे की माता पर पहुंचे. लोगों से मिलने के बाद शमी वृक्ष की पूजा की जाती है. इसके बाद म्यांन से तलवार निकालकर जैसे ही शमी वृक्ष को लगाते हैं, हजारों की तादाद में मौजूद लोग पत्तियां लूटने के लिए टूट पड़ते हैं. लोग पत्तियों को सोने के प्रतीक के रूप में ले जाते हैं.
शस्त्रों की होती थी पूजा: सिंधिया परिवार के मराठा सरदारों के मुताबिक, दशहरे पर शमी पूजन की परंपरा सदियों पुरानी है. उस वक्त महाराजा अपने लाव-लश्कर व सरदारों के साथ महल से निकलते थे. सवारी गोरखी पहुंचती थी. यहां देव दर्शन बाद यहां शस्त्रों की पूजा होती थी. दोपहर तक यह सिलसिला चलता था. महाराज आते वक्त बग्घी पर सवार रहते थे. लौटते समय हाथी के हौदे पर बैठकर जाते थे. शाम को शमी वृक्ष की पूजा के बाद महाराज गोरखी में देव दर्शन के लिए जाते थे. वही परम्परा आज भी जारी है.
300 साल पुरानी है परंपरा: सिंधिया राज परिवार के नजदीक रहे विधायक तथा अनेक पदों पर रहे ब्रिगेडियर नरसिंह राव पंवार (अब स्वर्गीय) के अनुसार सिंधिया राजवंश की यह परम्परा लगभग 300 साल पुरानी है. पहले इनकी राजधानी उज्जैन में थी तब वहां यह परम्परा शुरू हुई. लेकिन महादजी सिंधिया ने पानीपत युद्ध में जीत के बाद ग्वालियर को अपना केंद्र बनाया. लेकिन मुगलों के बढ़ते प्रभाव को रोकने और देशी राजाओं के नित नए होने वाले विद्रोहों को ख़त्म करने की दृष्टि से महाराजा दौलत राव सिंधिया ने लश्कर शहर बसाकर ग्वालियर को राजधानी के रूप में स्थापित किया. शाही दशहरे के आयोजन की परम्परा भी उन्होंने ही शुरू की. स्वतंत्रता पूर्व तक यहां महाराज को इक्कीस तोपों की सलामी भी दी जाती थी.
तलवार से काटते ही लूटी जाती हैं शमी की पत्तियां: दशहरा पर सिंधिया परिवार का मुखिया दशहरा पूजन के बाद शमी वृक्ष की एक डाल अपनी तलवार से काटता है और फिर उसकी पत्तियां लूटी जातीं हैं. ग्वालियर के शाही दशहरा मैदान में पहले शमी का विशाल वृक्ष होता था लेकिन अब सारे पेड़ काट दिए गए और इसकी बड़े मैदान में भी अनेक भवन बन गए हैं. अब थोड़ा स्थान ही सुरक्षित रह गया है, इसलिए सिंधिया के पहुंचने से पहले कारिंदे शमी वृक्ष की पत्तियों से लदी एक बड़ी डाल काटकर यहां पेड़ की तरह स्थापित करते हैं और उसकी ही पूजा होती है. उसके बाद पत्तियां लूटी जाती हैं.
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एक किवदंती यह भी: शमी की पत्तियों की किवदंती महाभारत के सोने के आर्थिक सम्पन्नता काल से जुड़ी है. माना जाता है कि दशहरे के दिन ही पांडव अपना वनवास काल पूरा करके हस्तिनापुर लौटे थे और वन गमन से पूर्व अपने अस्त्र शमी वृक्ष में ही छुपाकर रख गए थे. लौटकर वे उसी वृक्ष के पास सबसे पहले गए लेकिन जब वे अपना राज पाठ संभालने हस्तिनापुर पहुंचते इससे पहले ही कौरवों ने राज सौंपने से इंकार कर दिया. लेकिन वहां की प्रजा शहर से बाहर स्थित उसी शमी वृक्ष के पास पहुंच गयी. पांडव राज की परम्परानुसार महाराज दशहरा पर बधाई देने आने वालों को कोई न कोई कीमती उपहार देते थे. लेकिन उस दशहरा पर उनके पास कुछ भी नहीं था तो अर्जुन ने पूजन के बाद शमी पेड़ की डंडी पर तलवार से प्रहार किया और प्रजा और राजा दोनों ने एक दूसरे को इसकी पत्तिया भेंट स्वरुप दी. क्योंकि उनके पास उपहार देने के लिए और कुछ था ही नहीं. तभी से इसे सोना कहा जाता है और आज भी लोग वर्ष भर तक इसे अपने सोने-चांदी के आभूषणों के साथ रखते हैं. मान्यता है कि सोने की पत्तियां खजाने में रखने से खजाने में सम्पन्नता निरंतर रहती है.
सिंधिया रियासत में आज क्या-क्या हुआ
- सिंधिया रिसायत की कुलदेवी का मंदिर मांढ़रे की माता पर है. इस मंदिर में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने विधिविधान से पूजा की, इस दौरान मराठा सरदार भी उनके साथ रहे.
- पूजा खत्म कर मराठा सरदार उनका आर्शीवाद लेने के लिए बाकायदा शाही परंपरा का अभिवादन मुजरा करते हैं.
- पूजा के बाद सिंधिया वापस जयविलास पैलेस पहुंचते हैं, दशहरे का का दरबार भी लगाते हैं.
- दशहरे के दरबार में मराठा सरदारों के वंशजों को ही जाने की अनुमति है. हालांकि अब कुछ गणमान्य नागरिकों भी इस शाही दरबार में आमंत्रित किया जाता है.
- दशहरे की शाम ज्योतिरादित्य ने मांढरे की माता मंदिर में कुलदेवी का आशीर्वाद लिया, और बाद शमी पूजन किया.
- इसके बाद आमजन और मराठा सरदारों के परिवारों को स्वर्ण मुद्रा के तौर पर शमी के पत्ते लुटाए.
- शमी पूजन के बाद जैसे ही ज्योतिरादित्य नें शमी वृक्ष से तलवार छुआई, आम जन उसके पत्ते लूटने टूट पड़े.
- दशहरे के दिन दानवीर दानव राज बलि ने अपनी प्रजा को शमी वृक्ष पर बैठ कर ही स्वर्ण मुद्राओं के रूप में अपना पूरा खजाना लुटा दिया था. इसी प्रतीक के तौर पर सिंधिया राजवंश इस परंपरा का निर्वाह करता आ रहा है.