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रहन-सहन और खान पान के जरिए बीमारियां होगी कंट्रोल, पेरिस की INRAE और बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज करेगा शोध - सागर न्यूज

फ्रांस के पेरिस में स्थित INRAE और सागर की बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञ डाक्टर जल्द ही एक अध्ययन शुरू करने जा रहे हैं. जिसके जरिए वो यह पता लगाएगें कि लोगों के रहन-सहन, खान-पान और जीवन चर्या के कारण कौन सी बीमारियां हैं.

Sagar Bundelkhand Medical College research
जीवनशैली पर नया शोध
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Published : May 29, 2023, 3:44 PM IST

सागर और पेरिस की INRAE करेगी शोध

सागर। कई ऐसी बीमारियां मानव शरीर के लिए परेशानी का सबब बनती है. जिनका इलाज रहन-सहन, खानपान और लाइफस्टाइल में परिवर्तन कर किया जा सकता है. मेडिकल साइंस की पुरानी इलाज की पद्धतियों के कारण हम कुछ समय के लिए इन बीमारियों पर नियंत्रण तो कर लेतें है, लेकिन पूरी तरह से बीमारी से मुक्ति नहीं पा सकते हैं. अब फ्रांस के पेरिस में स्थित INRAE (National Research Institute for Agriculture, Food and the Environment) और सागर की बुंदेलखंड मेडिकल कालेज के विशेषज्ञ डाक्टर जल्द ही एक अध्ययन शुरू करने जा रहे हैं. जिसके जरिए वो यह पता लगाएगें कि लोगों के रहन-सहन, खान-पान और जीवन चर्या के कारण कौन सी बीमारियां हैं. जो लोगों को परेशानी का सबब बनती है और इन बीमारियों को दवाईयों और मंहगें इलाज की अपेक्षा खान-पान और रहन- सहन से कैंसे कंट्रोल किया जा सकता है. फिलहाल बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज और INRAE (National Research Institute for Agriculture, Food and the Environment) की बातचीत अंतिम दौर में है. इस रिसर्च के जरिए ग्रामीण और प्राकृतिक वातावरण में रहने वाले और शहर में रहने वाले लोगों का अध्ययन किया जाएगा और कई बीमारियों के नियंत्रण के लिए इलाज विकसित किया जाएगा.

माइक्रोबायोम आधारित इलाज पर अध्ययन: बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुमित रावत बताते हैं कि मेडिकल साइंस में इलाज की पुरानी पद्धतियां ज्यादातर हार्मोन और केमिकल आधारित होती हैं. मेडिकल साइंस में 12-13 हार्मोन और 15- 20 केमिकल की खोज की गयी है. अभी तक ग्लूकोस और यूरिया जैसे दूसरे केमिकल्स पर आधारित इलाज होता था, लेकिन मेडिकल साइंस दूसरे तरीके से बीमारियों के इलाज पर शोध और अध्ययन कर रही है. हमारे शरीर में जो बैक्टीरिया मौजूद होते हैं, जो हमारे त्वचा, मुंह और आंत में पाए जाते हैं, इनको माइक्रोबायोम बोलते हैं. शरीर की अपनी कोशिकाओं के अलावा शरीर के अंदर मौजूद बैक्टीरिया की कोशिकाएं शरीर के अंदर सक्रिय रसायन बनाते हैं. इनकी संख्या लगभग दो हजार तक हो सकती है. हमारे शरीर के केमिकल और बैक्टीरिया के केमिकल मानव शरीर के स्वास्थ्य पर प्रभाव डालते हैं. इस मामले में फ्रांस का जो INRAE (National Research Institute for Agriculture, Food and the Environment) संस्थान है. वहां के वैज्ञानिकों का दुनिया में जाना माना नाम है और पिछले 5 सालों में उन्होंने अलग तरह की रिसर्च करके सबका ध्यान खींचा है. हमारी INRAE से बातचीत चल रही है कि हम इनके साथ क्या काम कर सकते हैं या फिर उनकी पद्धति के अनुसार भारतीय परिवेश में कैसे अध्ययन कर सकते हैं.

शोध क्यों जरूरी

कैसे अध्ययन करेंगे दोनों संस्थान: बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ सुमित रावत रिसर्च के बारे में बताते हैं कि जैसे हमारे देश में अलग-अलग वातावरण में लोग रहते हैं. जैसे आदिवासी लोग जंगल या प्राकृतिक वातावरण में रहते हैं, उन्हें आमतौर पर कम बीमारियां होती हैं, क्योंकि उनका भोजन संतुलित और उनकी दिनचर्या काफी संतुलित होती है. वह रात को जल्दी सो जाते हैं और सुबह जल्दी उठते हैं और उनकी जिंदगी में तनाव काफी कम होता है. दूसरी तरफ शहरों में हमारी दिनचर्या ये है कि हमें दौड़ते हुए ट्रेन पकड़ना है, भागते हुए नाश्ता करना है. इस तरह हमारी दिनचर्या दौड़ भाग की बन गयी है. वहीं प्रतिस्पर्धा के माहौल के कारण शहरी लोग काफी तनावग्रस्त होते हैं. उनमें कम्पटीशन, प्रमोशन और लाइफस्टाइल को लेकर तरह-तरह के तनाव होते हैं. इस तरह की चीजें हमारी लाइफ स्टाइल को काफी प्रभावित कर हमारे शरीर का माइक्रोबायोम को परिवर्तित करती हैं. लाइफस्टाइल के कारण माइक्रोबायोम की विविधता प्रभावित होती है. एक स्वस्थ आदमी के शरीर में 200 तरह के बैक्टीरिया होते हैं, जो शरीर के लिए महत्वपूर्ण केमिकल से बनाते हैं. इसके विपरीत बीमार व्यक्ति में सिर्फ 8 से 10 बैक्टीरिया बचते हैं, वह भी कुछ काम के नहीं होते हैं. इस रिसर्च के जरिए हम अध्ययन करेंगे कि किस तरह से हम स्वस्थ जीवन की तरफ जा सकते हैं और कैसे लंबे समय तक बीमारियों से बच सकते हैं.

कुछ खबरें यहां पढ़ें:

INRAE और बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज की बातचीत अंतिम दौर में: INRAE (National Research Institute for Agriculture, Food and the Environment) पेरिस और बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज सागर के बीच तय हुआ है कि INRAE के डॉक्टर और वैज्ञानिक भारत आएंगे और अपनी पद्धति से भारतीय जनसंख्या और परिवेश पर शोध और अध्ययन करेंगे. हम मिलकर पता लगाने की कोशिश करेंगे कि लंबे समय के लिए बीमारियों से बचाव कैसे कर सकते हैं, क्योंकि टेबलेट और इलाज के दूसरे तरीकों से हम दो-चार दिन के लिए बीमारी को नियंत्रित कर सकते हैं, लेकिन बीमारी को खत्म नहीं कर सकते हैं. जिस तरह से ब्लड प्रेशर कम करना या डायबिटीज को कंट्रोल करना काफी मुश्किल होता है. इस रिसर्च का उपयोग इन बीमारियों से लंबे समय कैसे बच सकते है, इसके लिए करेंगे. फिलहाल हमारी बातचीत चल रही है. वहीं भारत और फ्रांस के बीच जी-20 के तहत रिसर्च के लिए अनुबंध है. इसका फायदा भी हमें मिलेगा और जल्द हम अध्ययन शुरू कर देंगे.

सागर और पेरिस की INRAE करेगी शोध

सागर। कई ऐसी बीमारियां मानव शरीर के लिए परेशानी का सबब बनती है. जिनका इलाज रहन-सहन, खानपान और लाइफस्टाइल में परिवर्तन कर किया जा सकता है. मेडिकल साइंस की पुरानी इलाज की पद्धतियों के कारण हम कुछ समय के लिए इन बीमारियों पर नियंत्रण तो कर लेतें है, लेकिन पूरी तरह से बीमारी से मुक्ति नहीं पा सकते हैं. अब फ्रांस के पेरिस में स्थित INRAE (National Research Institute for Agriculture, Food and the Environment) और सागर की बुंदेलखंड मेडिकल कालेज के विशेषज्ञ डाक्टर जल्द ही एक अध्ययन शुरू करने जा रहे हैं. जिसके जरिए वो यह पता लगाएगें कि लोगों के रहन-सहन, खान-पान और जीवन चर्या के कारण कौन सी बीमारियां हैं. जो लोगों को परेशानी का सबब बनती है और इन बीमारियों को दवाईयों और मंहगें इलाज की अपेक्षा खान-पान और रहन- सहन से कैंसे कंट्रोल किया जा सकता है. फिलहाल बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज और INRAE (National Research Institute for Agriculture, Food and the Environment) की बातचीत अंतिम दौर में है. इस रिसर्च के जरिए ग्रामीण और प्राकृतिक वातावरण में रहने वाले और शहर में रहने वाले लोगों का अध्ययन किया जाएगा और कई बीमारियों के नियंत्रण के लिए इलाज विकसित किया जाएगा.

माइक्रोबायोम आधारित इलाज पर अध्ययन: बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुमित रावत बताते हैं कि मेडिकल साइंस में इलाज की पुरानी पद्धतियां ज्यादातर हार्मोन और केमिकल आधारित होती हैं. मेडिकल साइंस में 12-13 हार्मोन और 15- 20 केमिकल की खोज की गयी है. अभी तक ग्लूकोस और यूरिया जैसे दूसरे केमिकल्स पर आधारित इलाज होता था, लेकिन मेडिकल साइंस दूसरे तरीके से बीमारियों के इलाज पर शोध और अध्ययन कर रही है. हमारे शरीर में जो बैक्टीरिया मौजूद होते हैं, जो हमारे त्वचा, मुंह और आंत में पाए जाते हैं, इनको माइक्रोबायोम बोलते हैं. शरीर की अपनी कोशिकाओं के अलावा शरीर के अंदर मौजूद बैक्टीरिया की कोशिकाएं शरीर के अंदर सक्रिय रसायन बनाते हैं. इनकी संख्या लगभग दो हजार तक हो सकती है. हमारे शरीर के केमिकल और बैक्टीरिया के केमिकल मानव शरीर के स्वास्थ्य पर प्रभाव डालते हैं. इस मामले में फ्रांस का जो INRAE (National Research Institute for Agriculture, Food and the Environment) संस्थान है. वहां के वैज्ञानिकों का दुनिया में जाना माना नाम है और पिछले 5 सालों में उन्होंने अलग तरह की रिसर्च करके सबका ध्यान खींचा है. हमारी INRAE से बातचीत चल रही है कि हम इनके साथ क्या काम कर सकते हैं या फिर उनकी पद्धति के अनुसार भारतीय परिवेश में कैसे अध्ययन कर सकते हैं.

शोध क्यों जरूरी

कैसे अध्ययन करेंगे दोनों संस्थान: बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ सुमित रावत रिसर्च के बारे में बताते हैं कि जैसे हमारे देश में अलग-अलग वातावरण में लोग रहते हैं. जैसे आदिवासी लोग जंगल या प्राकृतिक वातावरण में रहते हैं, उन्हें आमतौर पर कम बीमारियां होती हैं, क्योंकि उनका भोजन संतुलित और उनकी दिनचर्या काफी संतुलित होती है. वह रात को जल्दी सो जाते हैं और सुबह जल्दी उठते हैं और उनकी जिंदगी में तनाव काफी कम होता है. दूसरी तरफ शहरों में हमारी दिनचर्या ये है कि हमें दौड़ते हुए ट्रेन पकड़ना है, भागते हुए नाश्ता करना है. इस तरह हमारी दिनचर्या दौड़ भाग की बन गयी है. वहीं प्रतिस्पर्धा के माहौल के कारण शहरी लोग काफी तनावग्रस्त होते हैं. उनमें कम्पटीशन, प्रमोशन और लाइफस्टाइल को लेकर तरह-तरह के तनाव होते हैं. इस तरह की चीजें हमारी लाइफ स्टाइल को काफी प्रभावित कर हमारे शरीर का माइक्रोबायोम को परिवर्तित करती हैं. लाइफस्टाइल के कारण माइक्रोबायोम की विविधता प्रभावित होती है. एक स्वस्थ आदमी के शरीर में 200 तरह के बैक्टीरिया होते हैं, जो शरीर के लिए महत्वपूर्ण केमिकल से बनाते हैं. इसके विपरीत बीमार व्यक्ति में सिर्फ 8 से 10 बैक्टीरिया बचते हैं, वह भी कुछ काम के नहीं होते हैं. इस रिसर्च के जरिए हम अध्ययन करेंगे कि किस तरह से हम स्वस्थ जीवन की तरफ जा सकते हैं और कैसे लंबे समय तक बीमारियों से बच सकते हैं.

कुछ खबरें यहां पढ़ें:

INRAE और बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज की बातचीत अंतिम दौर में: INRAE (National Research Institute for Agriculture, Food and the Environment) पेरिस और बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज सागर के बीच तय हुआ है कि INRAE के डॉक्टर और वैज्ञानिक भारत आएंगे और अपनी पद्धति से भारतीय जनसंख्या और परिवेश पर शोध और अध्ययन करेंगे. हम मिलकर पता लगाने की कोशिश करेंगे कि लंबे समय के लिए बीमारियों से बचाव कैसे कर सकते हैं, क्योंकि टेबलेट और इलाज के दूसरे तरीकों से हम दो-चार दिन के लिए बीमारी को नियंत्रित कर सकते हैं, लेकिन बीमारी को खत्म नहीं कर सकते हैं. जिस तरह से ब्लड प्रेशर कम करना या डायबिटीज को कंट्रोल करना काफी मुश्किल होता है. इस रिसर्च का उपयोग इन बीमारियों से लंबे समय कैसे बच सकते है, इसके लिए करेंगे. फिलहाल हमारी बातचीत चल रही है. वहीं भारत और फ्रांस के बीच जी-20 के तहत रिसर्च के लिए अनुबंध है. इसका फायदा भी हमें मिलेगा और जल्द हम अध्ययन शुरू कर देंगे.

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